सुब्रतो चटर्जी
- एकेश्वरवाद
- जो शिव हैं, वही शनि हैं और जो परम ब्रह्म हैं वही सृष्टि, स्थिति और मृत्यु हैं.
- जो ईश्वर हैं, वही अल्लाह हैं और जो अल्लाह हैं वही गॉड या यहोवा हैं.
- ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ! जो particle है वही universe है. जो अंश है, वही पूर्ण है.
- ईश्वर एक है, नाम अनेक.
उपरोक्त बकवास सुनते हुए और बिना प्रश्न किए मानते हुए मानव सभ्यता का एक बड़ा हिस्सा आज अपनी जवानी के उस दौर में है, जहां एक तरफ़ ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले लोगों की एक श्रेणी है और दूसरी तरफ़ ईश्वर को मानने वाले लोगों की अलग श्रेणी है.
ईश्वर को मानने वाले और नहीं मानने वाले भी दो अलग-अलग श्रेणियों में बंटे हुए हैं. एक तरफ़ वे लोग हैं जो अपने विचारों और व्यवहारों में ईश्वर को मानते हैं और दूसरी तरफ़ वे लोग जो अपने विचारों और व्यवहारों में इसे नहीं मानते. एक sub altern group है, जो ईश्वर को विचारों में मानते हैं, लेकिन व्यवहारों में नहीं, ये पाखंडी कहलाते हैं.
ईश्वर को विचार और व्यवहार में नहीं मानने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन जहां पर भी वे एक समूह के रूप में हैं, वहां पर हम सामाजिक और आर्थिक रूप में दुनिया के सबसे बेहतरीन देशों को पाते हैं और ईश्वरवादी देशों के लोगों का सपना इन्हीं देशों में जाकर बसने की है.
आज जो भारत से प्रतिदिन क़रीब पांच सौ अमीर रोज़ देश छोड़ कर भाग रहे हैं, वे ऐसे देशों में जा रहे हैं जो सही मायने में secular देश हैं. ब्रिटेन इसका एक उदाहरण है, जहां पर एक हिंदू आज प्रधानमंत्री बना है.
पलायन का यह सिलसिला तब से ज़ोर पकड़ा है जब से भारत में हिंदुत्ववादी सरकार आई है और अकलियतों के हत्यारों को माला पहनाकर स्वागत करने का रिवाज शुरू हुआ है. सेक्युलर शब्द को संविधान से हटाए बिना मन, कर्म और वचन से इसे मिटाने की कोशिश में प्रयास मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी नकारात्मक उपलब्धि रही है.
भारत की गिरती हुई अर्थव्यवस्था के पीछे भी सेक्युलर सोच को तिलांजलि देना एक कारण है, जिस विषय पर फिर कभी. फ़िलहाल, एकेश्वरवाद और फासीवाद के गठजोड़ के बारे.
एकेश्वरवाद के मूल में केंद्रीयकरण की एक सोच है, जिसे समझने की ज़रूरत है. रूप और तत्व की द्वंद्वात्मक व्याख्या को तिलांजलि देकर रूप की विविधता को तात्विक एकता की बलि चढ़ा कर एक ऐसे तिलिस्म को बुना जाता है, जो कालांतर में व्यक्ति केंद्रित हो जाता है और अधिनायकवाद को जन्म देता है. यही धारणा राजतंत्र के मूल में रहता है, जहां राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है.
लेकिन अधिनायकवाद इससे आगे की चीज़ है, इसमें रामलला का हाथ पकड़ कर दुनिया का सबसे बड़ा क्रिमिनल उनके घर पहुंचाता है और ईश्वरवादी गोबरपट्टी उस पर लहालोट हो जाता है. दूसरी तरफ़ एक क्रिमिनल तड़ीपार चुनाव जीतने के लिए 1 जनवरी 2024 तक राम मंदिर पूरा करने का झूठा वादा जोंबियों की भीड़ के सामने करता है और भाड़े की भीड़ की तालियां बटोर लेता है.
इसी तिलिस्म के पीछे छुपकर जीएसटी के माध्यम से देश के फ़ेडरल सिस्टम को ध्वस्त कर दिया जाता है और दक्षिणपंथी दलों की क्या बात करें, तथाकथित कम्युनिस्ट पार्टियां भी इसका विरोध नहीं कर पाती.
एक देश एक क़ानून के नारे के पीछे छुपा असल एजेंडा NRC और CAA जैसे क़ानूनों को बना कर क्रिमिनल योगी के अस्सी बनाम बीस के रास्ते चल कर देश की बीस प्रतिशत आबादी को पहले चुनावी राजनीति में महत्वहीन करना है और प्रकारांतर में उनको second grade citizen बना देना है.
ये ठीक उसी तरह का खेल है जिसे हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ खेला था. नस्लीय श्रेष्ठता का बोध आज communal superiority के रूप में उपस्थित हुआ है. फासीवाद हरेक युग में अपना चेहरा बदल लेता है.
मोदी सरकार के पिछले आठ सालों में सिर्फ़ एक व्यक्ति को केंद्र में रख कर सारी बहस या गुणगान होता रहा है, वह व्यक्ति है खुद नरेंद्र मोदी. कभी सोचा है कि इसका कारण क्या है ?
एक बार एक फ्रॉड बंगाली बाबा को कहते हुए सुना था कि ईश्वर हैं और ईश्वर नहीं हैं, दोनों वाक्यों में ईश्वर मौजूद हैं. मतलब पलायन या मुक्ति का कोई पथ नहीं है. आपकी सोच, आपके विचार आचार, आपका जीवन बस एक व्यक्ति की परिक्रमा कर रहा है, ठीक उसी तरह से जैसे एकेश्वरवाद आपको एक काल्पनिक ईश्वर के चारों तरफ़ परिक्रमा कराता है.
अस्थिर संसार में एक स्थिर बिंदु की तलाश सिर्फ़ ध्रुवतारा को ही आसमान में स्थापित नहीं करता वरन धरती पर भी एक नायक की तलाश में रहता है और यहीं पर अधिनायकवाद स्वीकृत और स्थापित हो जाता है.
हरे राम हरे राम, हरे कृष्ण हरे कृष्ण
राम राम हरे हरे, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
जीसस द सेवियर !
अल्लाह हू अकबर ।
कोई प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है क्या ? अविकसित, अतार्किक, अज्ञानी मस्तिष्क की जीवन की कठिन परिस्थितियों में एक तारणहार की तलाश में करुण पुकार ! भोले बाबा पार करेगा !
यही भाग्यवाद, ईश्वरवाद के मूल में है और इसी बिंदु पर आकर दरअसल ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ जैसे भजनों के पीछे से एकेश्वरवाद को स्थापित किया जाता है, जो कि कालांतर में राजनीतिक ज़मीन पर अधिनायकवाद को स्थापित करता है. मेरे विचार से गांधीवाद में ही मूलतः फासीवाद के बीज छुपे हुए हैं, जैसे एकेश्वरवाद में गांधीवाद के बीज छुपे हुए हैं.
समय समय पर इस विषय पर तात्विक विश्लेषण करता रहूंगा. फ़िलहाल आप राजकपूर की एक फ़िल्म के एक गीत को याद कीजिए –
आसमां पर है ख़ुदा और जमीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
ठीक इसके सौ साल पहले लिखा गया –
God is above in the Heaven
All is right with the World.
फिर क्या वजह रही कि शैलेंद्र ने अपनी धारदार कलम की एक खरोंच से जिस मृत धारणा को दफ़ना दिया था, हम उसे आज पुनर्जीवित करने की कोशिश में हैं ? सोचिएगा ज़रूर.
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