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…यानी आप संविधान का पालन करेंगे तो आपको अदालतें धमकायेगी !

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औरतें जब अपराध करती हैं या अपराध का समर्थन करती हैं, तब उस पर खुलकर आलोचना करने से सभी रंगत के लोग भागते क्यों हैं ? क्रिमिनल तो क्रिमिनल है, स्त्री होने से वह अपराधी के दोष से मुक्त नहीं हो जाती. हमने गुजरात के 2002 के दंगों में दंगा करती, लूटपाट करती औरतें देखी थी. उसके बाद अगस्त 2017 में बलात्कार की हिमायत में बडी संख्या में औरतों को देखा तो लगा कि संघ सफल है, उसने औरतों को बदल दिया. औरत के विलोम रुप को राजनीति का बडा प्रयोग बना दिया.
मैंने कभी इतनी औरतें बलात्कार के खिलाफ दिए जजमेंट के विरोध में हरियाणा की सडकों पर नहीं देखी. शर्म आती है बाबा की भक्त औरतें इस कदर बर्बर हैं कि वे बलात्कार के पक्ष में खड़ी हैं. औरतों का यह बर्बर चेहरा ही हमें सारी दुनिया में लज्जित करने के लिए काफी है. बर्बर औरतें जब निर्मित की जा रही हों तो उन पर बहस क्यों नहीं होती ?
स्त्री के बर्बर रुपों को हमने छिपाया है, अब वह खुलेआम हिंदुत्व की हिमायत कर रही हैं. आसाराम से लेकर राम रहीम तक के बलात्कार की हिमायत में हजारों की संख्या में सडकों पर निकल रही हैं. बर्बर स्त्री नया फिनोमिना है, उस पर खुलकर बहस करनी चाहिए. सबसे खतरनाक है औरतों का बडी संख्या में बलात्कारी और दंगाईयों की हिमायत में उतरना.

– जगदीश्वर चतुर्वेदी

...यानी आप संविधान का पालन करेंगे तो आपको अदालतें धमकायेगी !
…यानी आप संविधान का पालन करेंगे तो आपको अदालतें धमकायेगी !
हिमांशु कुमार

गुरमीत सिंह के यहां दो सौ से ज्यादा कुंवारी लड़कियों को सेवा के लिए रखा जाता था. यानी वह रोज़ ही एक नयी लडकी से बलात्कार करता था और ऐसा वह सत्ताईस सालों से कर रहा था. वह अपने खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की हत्याएं करवाता था. वह धर्म का प्रवचन देता था. जो इंसान किसी दुसरे की भावना नहीं समझ सकता बल्कि सामने वाले को सिर्फ एक वस्तु समझता हो, वह कैसा इंसान होगा ?

डेरे के उसके अनुयायी जो कत्ल करते थे, हथियार इकट्ठा करते थे और इस इंसान के कहने से हत्या की योजना बनाते थे, वह लोग भी क्या गुरमीत सिंह को भगवान मानते होंगे ? क्या पुलिस अधिकारियों, राजनेताओं को यह सब पता नहीं होगा ? यह लोग यह सब जान कर भी इस गुरमीत सिंह के सामने झुक कर प्रणाम करते थे ?

बलात्कार करने को कोई बड़ी बात ना मानने वाले यह नेता, पुलिस अधिकारी और अफसर लोग प्रदेश की लड़कियों के बारे में क्या सोच रखते होंगे ? हरियाणा में औसतन रोज़ एक दलित लडकी से बड़ी जाति के दबंगों द्वारा बलात्कार किया जाता है. इनमें से ज्यादातर लोग या तो पकड़े ही नहीं जाते या आराम से छूट जाते हैं,

यह वही हरियाणा है जहां एक आदिवासी लडकी के साथ सीआरपीएफ के अफसरों द्वारा बलात्कार पर आधारित मह्श्वेता देवी के उपन्यास पर बने नाटक आयोजित करने वाली प्रोफेसर को नक्सली कह कर प्रताड़ित किया गया. मैंने हरियाणा में खुद बलात्कार पीड़ित महिलाओं को लेकर पुलिस के पास लड़ाई किया है,

एफआईआर होने के बाद जब मैं दोनों पीड़ित महिलाओं को लेकर एसपी से मिलने गया तो दोनों बलात्कारी सवर्ण पुरुष एसपी के रूम में बैठे मिले. जो समाज ज्यादा वीरता, ताकत, दम मर्दानगी की पूजा करता है वह हमेशा औरतों, दलितों और कमजोरों के खिलाफ होता है क्योंकि आपको अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए कोई कमज़ोर तो चाहिये ही. पूरा राष्ट्रवाद का किला इसी नकली ताकत पर खड़ा किया जाता है.

छप्पन इंच की छाती, उसी की भाषा में जवाब देना जुमले बोल कर नकली वीरता का आभास कराया जाता है. आप यह सब अपने बच्चों को बचपन से ही सिखाते हैं. आपके धार्मिक टीवी सीरियल में आपके बच्चे क्या देखते हैं ? यही ना कि आपके देवता सब को मार रहे, आप देवता वाले हैं और हारने वाला राक्षस आपका दुश्मन है. या हमारी सेना दुश्मन को मार रही है या हम क्रिकेट में पाकिस्तान को हरा रहे हैं ?

आपके बच्चों का दिमाग ताकत की पूजा करने वाला बन जाता है इसलिए इस समाज में जिसकी पास ताकत है, सब उसे पूजने लगते हैं. अलबत्ता आप कभी यह नहीं पूछते कि आपका ईश्वर बलात्कार पीड़ित लडकी की मदद कभी भी क्यों नहीं करता ? आपको ताकतवर ईश्वर की किसी भी गलत बात पर सवाल उठाने से डरा दिया जाता है और पूरा समाज सो जाता है.

पहले बलात्कारी की मदद करने वाले ईश्वर को दफा कीजिये, फिर राष्ट्र को ताकतवर बनाने की बात करने वाली राजनीति को दफा कीजिये, फिर अपने बच्चों को ताकत नहीं कमज़ोर और न्याय का साथ देने के बारे में बताइये और ऐसा खुद करके भी दिखाइये.

मेरी बेटियां जब देखती हैं कि पापा ने आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए अपना सब कुछ खत्म कर दिया तो मुझे अपनी बेटियों को यह बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि अन्याय के खिलाफ ज़रूर लड़ना चाहिए भले ही उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े.

मेरी नज़र में अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली दोनों लडकियां, आवाज़ उठाने वाला पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और फैसला देने वाला जज, इस समाज के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं बजाय कि एक बड़ा-सा झंडा लेकर अपनी कार के आगे बांध कर घूमते सेना की जय बोलते तथाकथित राष्ट्रवादियों से.

भारत में अभी भी राम रहीम और आसाराम के करोड़ों भक्त हैं. ढोंगी बाबाओं के भक्तों की मूर्खता यह है कि वे अपने बाबा को भगवान मानते हैं, और आप कह रहे हैं कि वे भक्त चूंकि आंख मूंद कर ऐसा मानते हैं इसलिए वे मूर्ख हैं, ध्यान से देखिये आप भी उतने ही बड़े मूर्ख हैं. आप भी आंख मूंद कर बहुत सारी बातों पर यकीन करते हैं.

मैंने पहले अपने आप से यही पूछना शुरू किया कि अंधश्रद्धा क्या होती है ? अंधश्रद्धा का अर्थ है बिना समझे आंख मूंद कर किसी बात को मान लेना. मैंने अपने बच्चों को बताया कि कोई उड़ने वाला बन्दर तुम्हारे आज के जीवन में बेहतरी नहीं ला सकता, कोई देवी देवता तुम्हारा ना भला कर सकता है ना बुरा कर सकता है, ईश्वर सिर्फ इंसान के दिमाग की उपज है. उसके बाद बच्चे अपना दिमाग लगा कर मेरी बात की जांच करते हैं. उनके बाकी के रिश्तेदार आज भी पूजा पाठ करते हैं.

बच्चे स्वतंत्र हैं कि वे चाहें तो उनके रास्ते पर चल कर पूजा पाठ में लग जाएं, लेकिन ज्ञान और समझ की यही खूबी है. यह एक बार आपमें आ जाती है तो बढ़ती ही जाती है. जैसे अगर आप सारी रात अंधरे में एक रस्सी को सांप समझते रहे हों, लेकिन तभी बिजली कडकी और आपने देखा कि वह सांप नहीं रस्सी है, उसके बाद उस रस्सी से नहीं डर सकते.

इसी तरह एक बार आप तर्क और समझ की रोशनी में बातों को देख लेते हैं तो फिर आप आंखें मूंद कर पहले की तरह अंधे बन कर उस बात को नहीं मान सकते. दुसरे की सत्ता आप पर तभी चल पाती है जब आप आंख मूंद कर उसके सामने झुक जाते हैं. वरना दुनिया में तो सभी बराबर हैं. तो अब जब किसी मूर्ति, किसी किताब, किसी मकान या किसी इंसान के आगे झुकें तो यह बात याद रखियेगा कि आपकी तरह ही करोड़ों लोग बाबाओं के सामने झुक जाते हैं.

भारत के संविधान में लिखा है कि हर नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक समझ बढाने के लिए काम करे लेकिन जब हमारे साथी अजीत सिंह साहनी ने अंधविश्वास के खिलाफ लिखा तो बजरंग दल के गुंडों ने उनके घर पर हमला कर दिया और पुलिस ने उनका लिखा हुआ हटाने के लिए कहा. यानी चूंकि आपके आसपास के अंधों को रोशनी से डर लगता है इसलिए आप अपनी रोशनी बुझा दीजिये.

इसी तरह से हमारे दोस्त बालेन्दु स्वामी ने जब अंधविश्वास के खिलाफ लिखा तो उन्हें धर्म का धंधा करने वाले धार्मिक पाखंडियों और सरकारी अधिकारीयों ने मिल कर उन पर हमला किया और उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया. स्वामी अग्निवेश ने बोल दिया कि अमरनाथ पर जो पिंड बनता है वह एक प्राकृतिक घटना है, उतनी ऊंचाई पर पानी टपकेगा तो जम ही जाएगा, सारी दुनिया में इस तरह की गुफाएं मौजूद हैं जहां इस तरह के पिंड बनते हैं.

इस बात पर स्वामी अग्निवेश के खिलाफ दो दो अदालतों ने वारंट जारी कर दिए और सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी अग्निवेश को इस तरह का बयान देने के लिए फटकार लगाईं. एक धार्मिक साधू ने स्वामी अग्निवेश का सर काट कर लाने वाले को दस लाख रूपये देने की घोषणा की और एक सभा में स्वामी अग्निवेश को मारा गया. यानी आप संविधान का पालन करेंगे तो आपको अदालत धमकायेगी.

संविधान कहता है कि हर नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह ‘वैज्ञानिक सोच का विकास करने’ के लिए काम करे, तो अब आज़ादी के बाद के हालत यह हैं कि अगर आप ‘वैज्ञानिक सोच का विकास करने’ के लिए काम करेंगे तो सरकार आपकी रक्षा नहीं करेगी, अदालत आपको फटकार लगाएगी, पुलिस आपको धमकायेगी.

ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि सभी सत्ताएं आपके मूर्ख होने के कारण ही चल रही हैं. सत्ता कभी नहीं चाहती कि नागरिक सवाल पूछने वाले और हर बात की समीक्षा करने वाले बने. क्योंकि आप अगर एक बात पर जागेंगे तो आप हर बात में जागने लगेंगे और अगर आप एक बात पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेते हैं, तो आप हर बात पर आंख मूंद कर विश्वास कर सकते हैं. आप या तो जागे हुए हो सकते हैं या सोये हुए हो सकते हैं, ऐसा नहीं हो सकता कि आप कहीं तो जाग जाएं और कहीं पर सो जाएं.

संविधान मुझसे कह रहा है कि यह मेरा कर्तव्य है कि मैं देश में ‘वैज्ञानिक सोच का विकास करने’ के लिए प्रयत्न करूं इसलिए मैं तर्क और विज्ञान की समझ की बात ज़रूर करूंगा. चाहे आप मेरे खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवा दें या मुझे अकेला छोड़ कर चले जाएं. जागने के बाद मैं अंधेरे की बातें नहीं कर सकता.

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ROHIT SHARMA

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