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टेलीप्रॉम्प्टर प्रकरण : बिना स्क्रिप्ट के मोदी एक शब्द भी नहीं बोल सकते

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राहुल गांधी ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिना टेलीप्रॉम्प्टर के एक शब्द भी नहीं बोल सकते, और नरेन्द्र मोदी ने यह साबित कर दिया कि वह सच में बिना टेलीप्रॉम्प्टर के एक शब्द भी नहीं बोल सकते. यही सच है ‘हम भारतीयों का टेम्परामेंट और हम भारतीयों का टैलेंट का, जिसे…’ मोदी ने अंतराष्ट्रीय मंच पर उजागर कर दिया है. यानी हम मंदबुद्धि भारतीयों ने अपने ही जैसा एक मंदबुद्धि दलाल को अपना प्रतिनिधि चुन लिया है.

टेलीप्रॉम्प्टर प्रकरण : बिना स्क्रिप्ट के मोदी एक शब्द भी नहीं बोल सकते

girish malviyaगिरिश मालवीय

बिना स्क्रिप्ट के मोदी दो शब्द भी नहीं बोल सकते, यह बात कल टेलीप्रॉम्प्टर प्रकरण में साबित हो गयी. जिसे आप मोदी का प्रभावी भाषण समझते हैं, वह पूरी स्क्रिप्ट राइटर की मेहनत का परिणाम है और इस बात की पोल न खुल जाए इसलिए मोदी ने पिछले सात सालों में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है.

टेलीप्रॉम्प्टर वाले प्रकरण में हमें यह समझना चाहिए कि टेक्निकल मिस्टेक होना कोई बड़ी बात नहीं है, होता रहता है तो फिर इतना बड़ा बवाल क्यों हो रहा है ?

दरअसल मीडिया में मोदी की छवि को ‘लार्जर देन लाइफ’ बना कर पेश किया जाता रहा है. प्रोपेगैंडा वीडियो के जरिए मोदी खुद अपने आपको बड़े वक्ता के रुप मे पेश करते आए हैं, इसकी झलक आपको अक्षय कुमार के इस PR वाले इंटरव्यू में देखने को मिलेगी, जिसमें मोदी अपनी भाषण कला की डींगें हांक रहे हैं.

अब आप यह जान लीजिए कि मोदी सरकार किस प्रकार से अपने इवेंट आयोजित करती है, कैसे टीवी इवेंट के जरिए उनकी छवि गढ़ी जाती है ताकि मोदी की छवि एक बड़े महान भाषणबाज की बनी रहे. जो आप अब पढ़ने जा रहे हैं यह पोस्ट इंग्लिश में थी जिसको मैं हिंदी में लिख रहा हूं.

यह आलेख एक दक्षिण भारतीय मित्र विकनेश ने 24 दिसम्बर, 2018 को लिखा था. उन्होंने इस आलेख में अपने कॉलेज की एक इवेंट कथा शेयर की है, जिससे पता चलता है कि किस तरह मोदी सरकार अपना पीआर अजेंडा चलाती है.

‘हम देखते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री अचानक पूछे जाने वाले प्रश्नों का जवाब देने में असमर्थ हैं.  मैं अपना उदाहरण आपके सामने रखता हूं. हम हैकथॉन के समापन समारोह के लिए अहमदाबाद में थे. लंच के बाद हमें बताया गया कि प्रधानमंत्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छात्रों को संबोधित करेंगे.

मुझे लगा कि वह छात्रों से सीधे सवाल करेंगे लेकिन मैं गलत था. वास्तविक कार्यक्रम से चार घण्टा पहले कुछ अधिकारी आए और हमारे प्रोग्राम को कुछ समय के लिए रोकने के लिए कहा. उन्होंने हर टीम से टीम में जाना शुरू किया और पूछा कि ‘क्या किसी को प्रधानमंत्री जी से कोई सवाल है ?’ और चूंकि हम दक्षिण भारत से थे इसलिए उन्होंने विशेष रूप से हमारी टीम को निशाना बनाया और हमसे पूछा कि ‘क्या कोई हिंदी जानता है ?’

हमारी टीम में एकमात्र हिंदी भाषी व्यक्ति ‘अग्रवाल’ था, इस कारण उन्हें निराशा हुई. उन्होंने इस आइडिया को ड्राप कर दिया. (शायद कोई दक्षिण भारतीय मिलता और हिंदी में तारीफ करता तो ज्यादा असर पड़ता.)

प्रोग्राम शुरू होने से 3 घंटे पहले कुर्सियों और स्टूडेंट्स के बैठने के क्रम को उन अधिकारियों ने बदल दिया और हमें ‘रिहर्सल’ के लिए बैठने के लिए कहा गया. ( इस बात की रिहर्सल कि प्रधानमंत्री से कैसे सवाल पूछे जाएं ? )

उसके बाद सभी टीमों में से 3 लड़कियों और 2 लड़कों का चयन किया गया. उन्हें आगे की पंक्ति में लाया गया. फिर हर स्टूडेंट को पूछने के लिए एक स्क्रिप्टेड प्रश्न दिया गया और यह भी बताया गया था कि प्रधानमंत्री जी के जवाब देने के बाद आपको कैसी प्रतिक्रया देनी हैं.

यहां तक कि उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ फॉलो अप वाले सवाल-जवाब भी सेट किए और ये भी बताया की प्रसारण के दौरान कब और कैसा हंसी मजाक करना है.

कमाल यह था कि प्रधानमंत्री के आने से 1 घंटा पहले ही वीडियो कॉन्फ्रेंस शुरू कर दी गयी. हमें बतख की तरह बैठे हुए तीन घण्टे से अधिक वक्त हो गया था लेकिन भाड़े से लाए कुछ लोग ‘मोदी-मोदी-मोदी’ के नारे लगा रहे थे. हम निराश हो चले थे. तभी अचानक एक चालीस साल के अंकल मंच पर प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि ‘आप मुझे प्रधानमंत्री मान कर अपना आखिरी रिहर्सल कर सकतें हैं.’

इसके बाद हमें अपने मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने को कहा गया. मैंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दृश्यों को देखा. इन चालीस साल के अंकिल ने प्रधानमंत्री की पूरी तरह से मिमिक्री करना शुरू कर दी. उन्होंने पहले से तैयार सवाल पर सटीक स्क्रिप्ट पढ़ते हुए जवाब दिये. यह वही सवाल जवाब थे, जिसे प्रधानमंत्री पढ़ने जा रहे थे.

पूरी प्लानिंग इतनी डिटेल में थी कि उन्होंने कोयम्बटूर से एक स्टूडेंट जिसका नाम विकास था, उसे सबसे आगे की लाइन में खींच लिया ताकि प्रधानमंत्री जी मजाक मजाक में बोल सके की ‘विकास’ दक्षिण तक पहुंच गया.

अब प्रोग्राम अपने टॉप पर था. प्रधानमंत्री पधार चुके थे. मोदींज्म का जादू सर चढ़ कर बोल रहा था. उन्होंने उन चुटकुलों और सवालों को हटा दिया गया जो काम के नहीं मालूम हो रहे थे.

खेल शुरू था. हमने कैमरे बाहर निकलते देखे. अब हम उनके दोनों तरफ दो टेलीप्रॉम्प्टर देख सकते थे. हमारे हॉल में उपस्थित भक्त श्रोताओं को पहले से ही पता था कि प्रधानसेवक क्या बताने जा रहे हैं इसलिए उनका उत्साह चरम पर था.

इस पूरी पीआर की नौटंकी को बहुत सावधानी से तैयार किया गया था और अगले दिन के लिए सुर्खियां तैयार थी कि हमारे प्रधानमंत्री ने छात्रों को एंटरप्रेन्योरशिप के लिए प्रेरित किया.

दरअसल सच तो यह है कि हमारे प्रधानसेवक के मुंह से निकलने वाली हर चीज स्क्रिप्टेड होती है. असलियत में वह बिना लिखी हुई स्क्रिप्ट के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते और शायद इसलिए अनस्क्रिप्टेड इंटरव्यू का सामना करने या प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की हिम्मत नहीं है.’

मोदी जी की वक्तृत्व कला की पूरी पोल खुल गई. हुआ ये कि मोदीजी दावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की लाइव वीडियो कांफ्रेंस में सामने बैठे बड़े-बड़े लोगों के सामने लम्बी लम्बी फेंक रहे थे, अचानक सामने टेलीप्रॉम्प्टर पर वाक्य आने बन्द हो गए, और मोदी जी को कुछ सुझा नहीं तो वे दावोस के मौसम का हाल पूछने लगे और आय बाय बोलने लगे.

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