भात दे हरामजादे
भात दे हरामजादे बहुत भूखा हूँ पेट के भीतर लगी है आग, शरीर की समस्त क्रियायों से ऊपर अनुभूत हो रही है हर क्षण सर्वग्रासी भूख अनावृष्टि जिस तरह चैत के खेतों में फैलाती है तपन उसी तरह भूख की ज्वाला से जल रही है देह दोनों शाम दो मुट्ठी मिले भात तो और माँग नहीं है; लोग तो बहुत …