भूख
भूख पुरानी नहीं पड़ती बासी रोटी की तरह भूख से सनी कविताएंं भी डेग डेग पर गुंंथी रहती हैं तुम्हारे मन, शरीर में आटे में नमक की तरह उनकी विद्रूप भंगिमाएंं पिचके हुए पेट को शरीर, मन के मानचित्र से अलग-थलग करने का बस एक भोंडा प्रयास है उनकी कोशिश है कि शरीर को रोटी ख़रीदने के सिक्के में ढालकर …