इंतजार में सूर्य
जब देश और दुनिया की समूची प्रबुद्ध मनीषा गुजर रही हो मेनोपाॅज के दौर से जब बोझ व बंध्या हो गई हो उनकी कोख जब सृजन, ठहराव और असृजन का ही पर्याय बन गया हो जब रहनुमाओं की रहनुमाई दम तोड़ रही हो घने अंधकार वाली बंद गलियों में तब और तब मेरे दोस्त केवल तभी जरूरत है कि झोंका …