हाशिये पर…
और इस तरह धीरे धीरे उन्होंने धकेल दिया मुझे हाशिये पर फुटपाथ की ज़िंदगी पर छपे रिसालों में छपी हुई मेरी कविताएं चकले पर रात बीताने वालों को पसंद नहीं आई ये और बात है कि आमदनी घटने के बाद ज़्यादातर लोगों ने यहां अपने घरों को ही मुफ़्त का चकला समझ लिया जहां आदमी का शरीर बस एक कशकोल …