धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम
[ इतिहास खुद को दुहराता है, यह कथन आज भी चरितार्थ है जब देश धार्मिक उन्माद में फंस कर अपना हित-अहित सब भूलकर धर्म के नाम पर सबकुछ कुर्बान कर देने पर उताबला हो गया है. भारतीय राजसत्ता का फासीवादी चरित्र हिन्दुत्ववादी मुखौटा ओढ़कर जब अपने ही देशवासी के खिलाफ षड्यंत्र करता नजर आता है और गरीबों-पीड़ितों के खून-पसीने के …