ये कोई बाहर के लोग हैं या आक्रमणकारी हैं
ये कोई बाहर के लोग हैं या आक्रमणकारी हैं. इस देश के नहीं हो सकते. ये न कबीर को जानते हैं न जायसी, नानक या रैदास को. प्रेमचंद, रेणु या कृष्णचंदर के उपन्यासों-कहानियों में जो समाज दिखता है ये उससे भी नहीं आते हैं, इनके आसपास वो किरदार दिखते ही नहीं है. टैगौर की नज़रों से देखें तो ये इंसान …