'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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ये कोई बाहर के लोग हैं या आक्रमणकारी हैं

ये कोई बाहर के लोग हैं या आक्रमणकारी हैं. इस देश के नहीं हो सकते. ये न कबीर को जानते हैं न जायसी, नानक या रैदास को. प्रेमचंद, रेणु या कृष्णचंदर के उपन्यासों-कहानियों में जो समाज दिखता है ये उससे भी नहीं आते हैं, इनके आसपास वो किरदार दिखते ही नहीं है. टैगौर की नज़रों से देखें तो ये इंसान …

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