'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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माओ त्से-तुंग की एक कविता : चिङकाङशान पर फिर से चढ़ते हुए[1]

बहुत दिनों से आकांक्षा रही है बादलों को छूने की और आज फिर से चढ़ रहा हूं चिङकाङशान पर. फिर से अपने उसी पुराने ठिकाने को देखने की गरज से आता हूं लम्बी दूरी तय करके, पाता हूं नये दृश्य पुराने दृश्यों की जगह पर. यहां-वहां गाते हैं ओरिओल, तीर की तरह उड़ते हैं अबाबील, सोते मचलते हैं और सड़क …

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