भेड़िया गुर्राता है तुम मशाल जलाओ !
पारंपरिक तय प्रतिमानों से पैदा हुई रिक्ति को हम नवीन विचार बोध, नई मानवीय सौंदर्य दृष्टि से ही भर सकते हैं. जागृत चेतना, जड़बुद्धि विकारों की पराधीनता को अस्वीकार करेगा. जब वह अपने आस-पड़ोस घर-परिवार, रिश्ते-नाते की जिजीविषा के हिस्से आए ऐतिहासिक हार अथवा कि निज सुख-दुःख की सीमाओं को लांघ, बढ़ने लगता है तथा और…आगे के सफर से मुखातिब …