'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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करोना काल में प्रवासी मजदूर

हम नहीं चाहते थे मरना डंगर/बाड़ों में तूड़ी के ढेरों में ट्यूबवेल के कोठों में होटलों में /ढाबों में तहखानों में/ कारखानों में शराब के खोखों में नई-पुरानी इमारतों में ईंट के भट्टों में सिमेंट के स्टोरों में रेत के ढेरों में शरणार्थी कैंपों में मंदिर/गुरुद्वारों में थानों में/ जेलों में पुलिस की वैनों में हम तो मरना चाहते थे …

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