माओ त्से-तुंग की एक कविता : चिङकाङशान पर फिर से चढ़ते हुए[1]
बहुत दिनों से आकांक्षा रही है बादलों को छूने की और आज फिर से चढ़ रहा हूं चिङकाङशान पर. फिर से अपने उसी पुराने ठिकाने को देखने की गरज से आता हूं लम्बी दूरी तय करके, पाता हूं नये दृश्य पुराने दृश्यों की जगह पर. यहां-वहां गाते हैं ओरिओल, तीर की तरह उड़ते हैं अबाबील, सोते मचलते हैं और सड़क …