'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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भेड़िया गुर्राता है तुम मशाल जलाओ !

पारंपरिक तय प्रतिमानों से पैदा हुई रिक्ति को हम नवीन विचार बोध, न‌ई मानवीय सौंदर्य दृष्टि से ही भर सकते हैं. जागृत चेतना, जड़बुद्धि विकारों की पराधीनता को अस्वीकार करेगा. जब वह अपने आस-पड़ोस घर-परिवार, रिश्ते-नाते की जिजीविषा के हिस्से आए ऐतिहासिक हार अथवा कि निज सुख-दुःख की सीमाओं को लांघ, बढ़ने लगता है तथा और…आगे के सफर से मुखातिब …

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