'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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मनुष्यता

मनुष्य के लिए भूख जितनी जरूरी है उतना ही जरूरी है अवसर की समानता उतनी ही ज़रूरी है प्रत्येक की गरिमा उतनी ही जरूरी है प्रत्येक के बीच समानता उतनी है जरूरी है प्रत्येक की स्वतंत्रता उतनी ही ज़रूरी है संसाधन बंटवारा में प्रत्येक के बीच एकरूपता उतनी ही जरूरी है सबके बीच मनुष्यता यह कोई जागरण नहीं प्रत्येक की …

भूख

भूख पुरानी नहीं पड़ती बासी रोटी की तरह भूख से सनी कविताएंं भी डेग डेग पर गुंंथी रहती हैं तुम्हारे मन, शरीर में आटे में नमक की तरह उनकी विद्रूप भंगिमाएंं पिचके हुए पेट को शरीर, मन के मानचित्र से अलग-थलग करने का बस एक भोंडा प्रयास है उनकी कोशिश है कि शरीर को रोटी ख़रीदने के सिक्के में ढालकर …

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