करोना काल में प्रवासी मजदूर
हम नहीं चाहते थे मरना डंगर/बाड़ों में तूड़ी के ढेरों में ट्यूबवेल के कोठों में होटलों में /ढाबों में तहखानों में/ कारखानों में शराब के खोखों में नई-पुरानी इमारतों में ईंट के भट्टों में सिमेंट के स्टोरों में रेत के ढेरों में शरणार्थी कैंपों में मंदिर/गुरुद्वारों में थानों में/ जेलों में पुलिस की वैनों में हम तो मरना चाहते थे …