Home ब्लॉग स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उनकी नजर में ‘हिन्दुत्व’

स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उनकी नजर में ‘हिन्दुत्व’

13 second read
2
0
2,377

[आरएसएस ब्रांड बीजेपी देश भर में हिन्दुत्व के नाम पर कोहराम मचाये हुए है. चूंकि इनके पास देश के बड़े औद्यौगिक घरानों अंबानी अदानी की सेवा में बिछे रहने के अलावा जनता के हित में काम करने के लिए कुछ भी नहीं है इसलिए वे देश भर में नफरत के शोले भड़का रहे हैं, जिसमें वे देश की विशाल आबादी दलित, पिछड़े, अछूत, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिलाओं के खिलाफ सवर्ण ब्राह्मणवादी ताकतों को भड़का कर गाय-गोबर आदि के नाम पर आये दिन सरकारी पुलिस-फौज के संरक्षण में हमले किये और कराये जा रहे हैं. गुजरात में ऊना के दलितों पर सवर्ण ब्राह्मणवादी ताकतों के हमले और उसके बाद उभरे प्रतिरोध के स्वर ने भाजपा के गुजरात माॅडल का पोल खोल कर रख दिया है. इससे घबराये भाजपा की केन्द्र सरकार अब वह हिन्दुत्व की आड़ में मनुस्मृति को लागू करने की पूरी मंशा के तहत् बहुसंख्यक देशवासियों के खिलाफ जंग छेड़ दिया है.

ऐसे वक्त में हम हिन्दु धर्म के महान् विद्वान सन्यासी स्वामी विवेकानन्द के जन्म-दिवस 12 जनवरी के पूर्वसंध्या पर शत्-शत् नमन करते हुए हिन्दुत्व के संदर्भ में उनके विचारों को यहां रेखांकित कर रहे हैं, जो सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे पास आया है, इसे गिरराज वेद ने संकलित किया है. उनके इस लेख में केवल हमने शाब्दिक अशुद्धि को ही ठीक करने का प्रयास किया है-सं.]

स्वामी विवेकानन्द भारतीय इतिहास के एक ऐसे महापुरुष हैं जिनके साथ ना तो इतिहासकारों ने न्याय किया और न ही आम लोगों ने. स्वामी विवेकानन्द की पहचान सिर्फ शिकागो वक्ता और हिंदू धर्म के प्रचारक के रुप में सीमित कर दी गयी ताकि उनके जीवन का वास्तविक संदेश और चिंतन कभी आम लोग जान ही नहीं पाये.

स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व वह हिन्दुत्व नहीं है जिससे आज लोग डरने लगे है. स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व … प्रेम, समानता, शारीरिक सुदृढ़ता और मेहनत पर आधारित था.

स्वामी विवेकानन्द को शूद्र इसलिए नहीं अपना पाये क्योंकि वे सवर्ण थे और सवर्ण स्वामी विवेकानन्द से इसलिए नफरत करते थे कि वो शूद्रों को भी अपने जैसा समझते थे. उनके साथ बैठकर खाना खाते थे.

स्वामी विवेकानन्द आज के हिन्दूवादियों की तरह मूढ़ नहीं थे, जो सिर्फ धर्म को जीने का आधार माने. उनका धर्म समझने के लिए धर्मग्रंथों से पहले इंसानियत को समझना होगा.

स्वामी विवेकानन्द, बुद्ध, कबीर, नानक की परम्परा के सन्यासी थे लेकिन दुर्भाग्यवश उनके चिंतन को कट्टर हिन्दुत्व के चिंतन तक ही सीमित कर दिया गया.

वसंत पोद्दार अपनी पुस्तक ‘योद्धा सन्यासी’ में एक प्रसंग लिखते हैं कि – ‘जब कलकता में भयंकर अकाल पड़ा उस वक्त गौ-सेवा दल का एक कार्यकर्ता स्वामी विवेकानन्द जी के पास आया और बोला, स्वामी जी सूखे कि वजह से गायें मर रही है. गायों को बचाने के लिए हम चंदा इकट्ठा कर रहे है. आप भी सहयोग दीजिए.

‘स्वामी जी ने उससे पूछा- अकाल कि वजह से तो इंसान भी मर रहे है. क्या आप उनके लिए भी खाने कि व्यवस्था कर रहे हो ?

‘गौसेवक ने कहा- नहीं स्वामी जी, इंसानों को तो उनके पापों की सजा मिल रही है लेकिन गाय को बचाना जरूरी है. वो हमारी मां हैं. ‘स्वामी जी ने कहा- हां, जरुर गाय तुम्हारी मां होगी, वरना तुम्हारे जैसे पुत्र किसी इंसान की कोख से पैदा नहीं हो सकते.’

आज जब पाखंडी हिन्दूवादी गाय के नाम पर आतंक मचाते हैं और साथ ही स्वामी जी को हिन्दुत्व का सबसे बड़ा सन्यासी घोषित करते हैं, तब इनकी मूर्खता पर हंसी आती है. आज गौ-आतंकी हिन्दू दल को स्वामी जी का चिंतन पढ़ना चाहिए. वो ऐसे सन्यासी थे जो खुलकर स्वीकार करते थे और अपने भाषणों में अक्सर इसका जिक्र भी करते थे कि ‘भारत में गाय का मांस खाना हर हिन्दू के लिए अनिवार्य था.’

कैलिफोर्निया में एक भाषण देते वक्त उन्होंने कहा था, ‘आप लोग यह जानकर चकित रह जाएंगे कि पुराने संस्कारों के अनुसार जो गौमांस नहीं खाता था, वह अच्छा हिन्दू नहीं था. कुछ विशेष अवसरों पर हमें सांड को मारकर उसे खाना होता था.’ (स्वामी स्वामी विवेकानन्द का संपूर्ण साहित्य- वॉल्यूम 3, पृष्ठ 536)

स्वामी जी मानते थे कि मांसाहार शरीर को शक्ति देने के लिए जरूरी है. वे युवाओं से मांस खाने की अपील करते थे और खुद भी जमकर खाते थे. वे अक्सर कहते थे कि- ‘अब देश के लोगों को मछली-मांस खिलाकर उद्यमशील बना डालना होगा, जगाना होगा, तत्पर बनाना होगा, नहीं तो धीरे-धीरे देश के सभी लोग पेड़-पत्थरों की तरह जड़ बन जायेंगे. इसीलिये कह रहा हूँ कि मछली और मांस खूब खाना.’ (स्वामी विवेकानन्द साहित्य भाग -6, पृष्ठ 144)

जब वे अमेरिका की यात्रा पर थे और भारत के कुछ धर्माधीषों ने विदेश में उनके मांस खाने को लेकर सवाल उठाया तो उनका जवाब था- ‘यदि भारत के लोग चाहते हैं कि मैं मांसाहार न करूं, तो उनसे कहो कि एक रसोईया भेज दें और पर्याप्त धन सामग्री भी.’ ( स्वामी स्वामी विवेकानन्द साहित्य , भाग -4, पृष्ठ -344)

धर्मग्रन्थों को पढ़ना तो वो नितांत मूर्खता समझते थे. स्वामी जी अक्सर युवाओं से कहते थे- ‘तुम गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलो.’

… ज्यादा ना लिखकर बस इतना ही कहूंगा कि … आज हिन्दुत्व के नाम पर नफरत फैलाने और स्वामी विवेकानन्द को हिन्दुत्व का ब्रांड अम्बेसडर मानने वालों को स्वामी विवेकानन्द जी को पढ़ने और समझने की बहुत जरुरत है.

यकीन मानिए, अगर भगवा गैंग ने स्वामी जी को समझ लिया तो … भगतसिंह, सुभाष चंद्र बोस, डॉ.अम्बेडकर और सरदार पटेल की तरह उनको भी नहीं पचा पायेंगे.’

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

2 Comments

  1. S. Chatterjee

    January 11, 2018 at 6:29 pm

    Hinduism, as a way of life, contains many contradictions but it doesn’t promote bigotry and hatred of any kind whatsoever. Swami Vivekananda was the supreme rational mind who strove to break the shackles of prejudice, ignorance and superstition prevelant among the Hindus. The Hinduism of the rabid saffron gang has nothing to do with the basic precepts of our religion and culture.
    A well documented article

    Reply

  2. अशोक कुमार

    December 17, 2019 at 3:08 pm

    यह कहना सही नहीं होगा कि स्वामी विवेकानंद नानक, कबीर और बुद्ध की परंपरा के संन्यासी थे क्योंकि आध्यात्मिक परंपरा के मुताबिक वे कोई बुद्धत्व या शिवत्व को उपलब्ध व्यक्ति नहीं थे । दूसरी बात, हिंदुत्व के बारे में चाहे जो भी कहा जाए, कितना भी उसमें सुधार करने की कोशिश कर ली जाए लेकिन वर्तमान हिंदुत्व ब्राह्मणवाद और मनुवाद पर ही आधारित है । इसीलिए यह हिंदुत्व दलित, स्त्री, मज़दूर, किसान, वंचितों और समाज के अन्य श्रमजीवी वर्ग विरोधी सामाजिक व्यवस्था है । यह हिंदुत्व केवल शोषकों के ही हितों का पोषण करने वाली विचारधारा का ही नाम है । समाज के किसी भी अन्य वर्ग के लिए इसमें कोई स्थान नहीं । लेकिन इस पूंजीवादी व्यवस्था में ब्राह्मणवाद, मनुवाद, रामराज्य या वर्णव्यवस्था जैसी व्यवस्था को अंजाम नहीं दिया जा सकता क्योंकि अब इतिहास को घसीट कर अतीत में नहीं ले जाया जा सकता । इसीलिए इस हिंदुत्व के अंतर्गत अब सड़ीगली और पतनशील वर्णव्यवस्था, ब्राह्मणवाद और मनुवाद पर आधारित कोई भी व्यवस्था संभव नहीं हो सकती । इसीलिए अब जो व्यवस्था, अगर संभव हुई तो वह आरएसएस की विचारधारा पर आधारित व्यवस्था ही हो सकती है । हिंदुत्व इसी आरएसएस की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है । इसे हिन्दू फासिज़्म भी कह सकते हैं । इसीलिए यह हिदुत्व अपने अस्तित्व के लिए वर्तमान में पूंजीवाद से गठजोड़ किए हुए है । इसीलिए आज सत्ता पर काबिज़ यह हिन्दू फासिस्ट शक्तियां पूंजीवाद के लिए काम करने में संलग्न दिखाई देती हैं । लेकिन पूंजीवाद के अपने लक्ष्य हैं वह इस हिंदुत्व का इस्तेमाल श्रमजीवीवर्ग को धर्म, जाति, वर्ण, हिन्दू, मुसलमान, मंदिर-मस्जिद, गाय-गोबर के नाम पर आपस मे लड़वाने और बांटने के लिए कर रहा है ताकि भारी मुनाफों के रूप में उसकी लूट और शोषण की प्रक्रिया अबाध गति से चलती रहे । अब पूंजीवादी व्यवस्था में कोई भी सुधार या विवेकानंद, नानक, कबीर अम्बेडकर, बुद्ध इत्यादि जैसे महापुरुषों के आध्यात्मिक और सुधारवादी फलसफ़ों से कुछ होने वाला नहीं है । अब सत्तापरिवर्तन नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का रास्ता ही एक मात्र रास्ता जनता के सामने रह गया प्रतीत होता है ।

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…