जैसे लोहे का स्वाद
घोड़े से पूछो
वैसे ही रोटी का स्वाद
भूखे से पूछो
छत का स्वाद
बेघर से पूछो
और
कपड़ों के स्वाद
नंगों से पूछो
जब इस पूछने की प्रक्रिया से
निवृत्ति मिले
तब भूखे, बेघर और नंगा रह कर
रोटी, कपड़ा और मकान को
महसूस करो
कभी-कभी तुम्हें
हरेक पल एक तंदूर लगेगा
हरेक आदमी भी तंदूर लगेगा
घास, पेड़ पौधे, पत्थर
सब कुछ रोटी लगेगी
और तुम बन कर रह जाओगे
महज़ एक भूख
हड्डियों के ढांचे से लटकते उतरन के अंदर
बदन कसमसा जाता है
क़मीज़ को शाल बनाने के लिए
पतलून को चादर बनाने के लिए
क्योंकि
मकानों के जंगल के बीच
जब ढूंढना पड़ता है
एक अदद फ़र्श
रात बिताने के लिए
किसी बनिये की बंद दुकान के सामने
तो आवारा कुत्तों की ताकीद पर
नींद में भी जागना पड़ता है
स्वाद तो बस एक ग्रंथि है
तुम चाहो तो इस ग्रंथि की
बलि दे सकते हो
निर्वाण में जाकर
ऐसा कहते हैं वे
जिन्होंने कभी
नियम नहीं देखा
- सुब्रतो चटर्जी
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