स्वच्छ भारत का अंतिम सिरे पर
कुछ कूड़े कर्कट से
परित्यक्त, प्रताड़ित
गृह निष्कासित बूढ़े
और ग़रीब लोग भी हैं
जिन्हें हम भिखारी भी कहते हैं
और उनको लाद कर
शहर के बाहर कूड़ेदान में
डंप करने के लिए
नगरपालिका की कूड़े ढोने वाली
गाड़ियाँ भी हैं
हमारे माननीय
सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री ने
गाँधी जी के चश्मे से
जिस दिन अस्वच्छ भारत को देखा था
उसी दिन क़सम खाई थी
और हरेक नगरपालिका के लिए
विशेष बजट बनाया था
कूड़े ढोने वाली गाड़ियों की
ख़रीद के लिए
उसी दिन से
फुटपाथ, झुग्गियों
और पुलों के नीचे गंदगी बढ़ाते
इन आदमी नुमा लोगों को
नए सिरे से बसाने की मुहिम शुरु हुई
बस एक कमी रह गईं
प्रधानमंत्री आवास योजना का
सारा बजट इसके विज्ञापनों ने खा लिया
और फिर
कूड़े के डंप को ही
प्रधानमंत्री आवास योजना से
जोड़ दिया गया
अच्छा हुआ गाँधी
जो तुम नहीं रहे
वरना तुम भी आज
उन गाड़ियों में ढो दिये जाते
क्योंकि,
वे तुम्हें उस आख़िरी आदमी के साथ पाते
जिनका होना अति हानिकारक है
एक स्वस्थ देश के लिए ।
- सुब्रतो चटर्जी
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