संघ द्वारा शिक्षित-प्रशिक्षित बिहार का सुशील कुमार मोदी भी अनर्गल प्रलाप करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी विवेकानंद के सपनों को साकार कर रहे हैं. अब भला दुनिया में कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो इस बात को स्वीकार कर लेगा ? सारे संघी और भाजपाई सत्ता के मद में इस कदर अंधे हो गए हैं कि वे दिन को रात और रात को दिन कहते हुए भी न हिचकते हैं और न ही शरमाते हैं. अपनी जमीर और अपना ज्ञान न जाने किसके हाथों गिरवी रख दिया है कि उनके मुंह से जब भी कोई बात निकलती है, उटपटांग ही होती है. अब यह सुशील कुमार शिंदे विवेकानंद को नरेन्द्र मोदी बना रहा है या फिर नरेंद्र मोदी को विवेकानंद बना रहा है ? उसे तो यह भी पता नहीं होगा कि वह ऐसा कहकर विवेकानंद को न सिर्फ अपमानित कर रहा है, बल्कि उस महान मनीषी को नरेन्द्र मोदी के समकक्ष खड़ा कर रहा है.
क्या विवेकानंद के यही सपने थे कि भारत को सांप्रदायिकता के जहर में घोल दिया जाए ? सांप्रदायिकता को भारतीय राजनीति का आधारभूत तत्त्व बना दिया जाए ? धर्म और राष्ट्र के नाम पर पूरे भारत की संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों को पूंजीपतियों के हाथों कौड़ियों के मोल बेच दिया जाए ? देश के बहुसंख्यक लोगों को मूर्ख बनाए रखने के लिए शिक्षण संस्थाओं को बर्बाद कर दिया जाए ? लोगों को इलाज बिना रोग से मारने के लिए अस्पतालों का निजीकरण कर दिया जाए ? सारे सरकारी उद्योगों और लोक उपक्रमों, कल-कारखानों, कंपनियों और आवागमन के साधनों को पूंजीपतियों के हवाले कर दिया जाए ? किसानों और मजदूरों के हाथ से खेत, काम और अधिकार छीनकर उन्हें हमेशा के लिए गुलाम बना दिया जाए और भारत का शासन-प्रशासन संविधान और लोकतंत्र से परे मनुस्मृति के अनुसार चलाया जाए ?
क्या विवेकानंद ने यह भी कहा था कि भारत में इंसान की जिंदगी से ज्यादा महत्वपूर्ण पशुओं की जिंदगी होगी ? क्या विवेकानंद ने यह भी कहा था कि भारत में थोड़े-से पूंजीपतियों के हाथों में भारत की सारी संपत्ति केन्द्रित होगी और बहुसंख्यक भारतीय गरीब, लाचार और भीखमंगे होंगे ? क्या विवेकानंद ने मोदी से यह भी कहा था कि तुम गोधरा काण्ड और गुजरात से नरसंहार कराके राजसत्ता का सुख भोग करो ? क्या कहीं भी ऐसा विवेकानंद ने लिखा है कि नेताओं, पूंजीपतियों, नौकरशाहों, दलालों, ठेकेदारों, गुंडों, माफियाओं, फिल्मी कलाकारों और क्रिकेट खिलाड़ियों को छोड़कर बाकी भारतीयों को जलालत की जिंदगी जीनी पड़ेगी ? क्या विवेकानंद ने यह भी कहा था कि भारत का प्रधानमंत्री तो अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह सुख-भोग करे और जीवनशैली अपनाए और भारत की जनता मजलूमों की जिंदगी जिए ?
क्या सुशील कुमार मोदी, तुम लोगों को भारत के महान विभूतियों को अपमानित करने में तनिक भी शर्म नहीं आती है ? तुम लोग खुद तो कभी महान बन नहीं सके, महान व्यक्तियों को अपमानित तो मत करो. वैसे इतना जान लो कि महान व्यक्ति तुम्हारे जैसे लोगों द्वारा अपमानित किए जाने से अपमानित नहीं होते. हां, भारत जरूर अपमानित हो जाता है कि कैसा यह देश है, जहां के लोग अपनी महान विभूतियों की इज्जत करना भी नहीं जानते.
- राम अयोध्या सिंह
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