दिल्ली की चुनी हुई आम आदमी पार्टी की सरकार को पंगु बना देने और दिल्ली की हर जनोपयोगी नीतियों का दिल्ली के एलजियों के द्वारा खुल्लम-खुल्ला विरोध करने का साहस केन्द्र की मोदी सरकार के बदौलत ही संभव हो पाया था. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने जब एलजी के काम-काज या कहा जाये खुलेआम गुण्डागर्दी पर तीखा प्रहार किया और उसे संविधान के दायरे से बाहर बताया, तब निश्चित रूप से यह टिपण्णी सीधे केन्द्र के अपढ़ और मूर्खता का नित नये प्रतिमान कायम करने वाले प्रधानमंत्री मोदी की जनविरोधी नीतियों पर करारा तमाचा जड़ता है, जो खुद को प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की तर्ज पर प्रधान सेवक और चौकीदार कहते नहीं थकते, जिसने देश को अराजकता के दौर में घसीट लिया है.
‘शिक्षित नागरिक ही विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करता है’ कि अवधारणा को लेकर दिल्ली में प्रचण्ड मतों से सत्ता पर लौटी आम आदमी पार्टी की सरकार की लंबी लकीर के सामने बौनी नजर आ रही ढ़पोरशंखी केन्द्र की मोदी सरकार अपने बौनापन को छुपाने के लिए आम आदमी पार्टी की जनोपयोगी नीतियों पर ही हमला करना शुरू कर दिया, जिसका परिणाम दिल्ली सहित देश भर में अराजकता का डरावना स्वरूप फैल गया.
सुप्रीम कोर्ट के सबसे बड़े संविधान पीठ के निर्णय ने न केवल दलाल एलजी के रवैये और केन्द्र की मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों पर ही तीखा प्रहार किया है बल्कि दिल्ली हाई कार्ट के दलाल चरित्र का भी भण्डाफोर कर दिया है, जिसने पुरानी राजशाही यानी गुलामी के दौर को देश में एक बार फिर स्थापित करने की घटिया राजनीति को स्थापित करने की कोशिश की और एक चुनी हुई सरकार को महज फरयादी बना दिया. हाई कोर्ट के उक्त दलाल जजों ने एलजी को दिल्ली का सर्वेसर्वा बताने के एवज में कितने करोड़ रूपयों की घूस खाई या जज लोया के आत्मा का दर्शन किये, यह तो नहीं पता, पर उनकी घटिया हरकतों के कारण दिल्ली की जनता का पूरा तीन साल बर्बाद हो गया, उसकी भरपाई कौन भरेगा ?
निश्चित तौर पर देश की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को फरयादी बना देने वाले हाई कोर्ट के दलाल जजों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और एलजी अनिल बैजल के खिलाफ एक चुनी हुई सरकार को तंगोतबाह करने और आम आदमी के विरूद्ध साजिश रच कर लोकतंत्र को खतरे में डालने के अपराध में उन्हें उनके पद से बेईज्जत कर अविलम्ब बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाना चाहिए.
देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खत्म करने और नौकरशाहों को चुनी हुई सरकार के खिलाफ काम करने के लिए उकसाने के अपराध में दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर अविलम्ब बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाना और नौकरशाहों के तंत्र में उन तमाम जनविरोधी ताकतों पर कार्रवाई आज की फौरी मांग है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में जिन चीजों का पूरी तरह से दिन की उजाले की तरह स्पष्ट कर दिया है, वह है –
- दिल्ली मंत्रिमंडल को सभी फैसलों की जानकारी उपराज्यपाल को देनी चाहिए, लेकिन हर मामले में उपराज्यपाल की सहमति ज़रूरी नहीं. इतना ही नहीं राज्य सरकार को बिना किसी दखल के काम करने की आज़ादी हो.
- दिल्ली को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का फैसला पहले ही आ चुका है. चीफ जस्टिस ने कहा कि हर फ़ैसले की जानकारी एलजी को दी जाए और उपराज्यपाल हर मामला राष्ट्रपति को न भेजें. हर मामले में सहमति ज़रूरी नहीं है.
- चीफ जस्टिस व दो अन्य न्यायमूर्तियों ने कहा, भूमि, पुलिस और लॉ एंड ऑर्डर को छोड़कर, जो केंद्र का एक्सक्लूसिव अधिकार है, दिल्ली सरकार को अन्य मामलों में कानून बनाने और प्रशासन करने की इजाज़त दी जानी चाहिए.
- चीफ जस्टिस व दो अन्य न्यायमूर्तियों ने कहा, LG सीमित सेंस के साथ प्रशासक हैं, वह राज्यपाल नहीं हैं, एलजी एक्समेंटिड क्षेत्रों को छोड़कर बाकी मामलों में दिल्ली सरकार की ‘एड एंड एडवाइस’ मानने के लिए बाध्य हैं.
- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, हमने सभी पहलुओं – संविधान, 239एए की व्याख्या, मंत्रिपरिषद की शक्तियां आदि – पर गौर किया है.
- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि लोकतंत्र में रियल पावर चुने हुए प्रतिनिधियों में होनी चाहिए. विधायिका के प्रति वो जवाबदेह हैं, लेकिन दिल्ली के स्पेशल स्टेट्स को देखते हुए बैलेंस बनाना जरूरी है. मूल कारक दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है. उन्होंने कहा कि एलजी को ये दिमाग में रखना चाहिए कि वो नहीं बल्कि कैबिनेट है, जो फैसले लेती है.
- जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा एलजी को दी गई ‘एड एंड एडवाइस’ पर बाध्यकारी है.
- सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला लिया कि उपराज्यपाल की सहमति जरूरी नहीं, लेकिन कैबिनेट को फैसलों कि जानकारी देनी होगी. इतना ही नहीं चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में अहम है इसलिए मंत्रिपरिषद के पास फैसले लेने का अधिकार है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और एलजी के बीच राय में अंतर वित्तीय, पॉलिसी और केंद्र को प्रभावित करने वाले मामलों में होनी चाहिए. कोई फैसला लेने से पहले एलजी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं, सिर्फ सूचना देने की जरूरत. छोटे-छोटे मामलों में मतभेद ना हो. राय में अंतर होने पर राष्ट्रपति को मामला भेजें उपराज्यपाल.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गए हैं. उप राज्यपाल को यांत्रिकी तरीके से कार्य नहीं करना चाहिए और ना ही उन्हें मंत्रिपरिषद के फैसलों को रोकना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सहित पांच वरिष्ठ जजों की संविधान पीठ द्वारा लिया गया यह फैसला इस मामले में ऐतिहासिक महत्व रखता है कि यह फैसला केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा संविधान के साथ खिलवाड़ करने और देश की जनता के लोकतांत्रिक चरित्र का पूरी निर्लज्जता के साथ मजाक उड़ाने की घृणित साजिश पर संविधान के मौजूदा वास्तविक स्वरूप को स्थापित करनेवाला साबित हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ का यह फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उपराज्यपाल अनिल बैजल, हाईकोर्ट के दलाल जज, नौकरशाह अंशु प्रकाश देश के लोकतंत्र को खतरे में डालने की साजिश का पक्का दस्तावेज है, जिस आधार पर इन तमाम दोषियों पर फौरन कार्रवाई की जानी चाहिए और फांसी तक की सजा निर्धारित करना चाहिए.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के ‘लोकतंत्र खतरे में है’ की चेतावनी को भी याद रखना जरूरी है कि किस प्रकार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जो इस ऐतिहासिक महत्व के फैसले में शामिल रहे हैं, भी देश की लोकतांत्रिक ढ़ांचे को तबाह करने में मोदी की दलालों में शामिल थे.
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