जब किसी को श्रेष्ठता का पाठ पढ़ाकर,
श्रेष्ठताबोध से भर दिया जाय,
गर्व करने के लिए सिर पर,
धर्म और संस्कृति का बोझ धर दिया जाय,
तब आदमी समझ नहीं पाता कि
इस श्रेष्ठताबोध का करना क्या है,
धर्म और संस्कृति का बोझ धरना कहां है !
तब सशंकित वह,
शत्रु समझने लगता है सबको,
मणि विभूषित नाग की तरह,
अधिक क्रोधी, अधिक ज़हरीला हो जाता है
दरअस्ल श्रेष्ठताबोध एक घृणा मूलक विचार है,
जो आदमी को नरपिशाच बना देता है,
बदबूदार,
फिर वह छिः मानुस, छिः मानुस करता हुआ
नफरत में जीने को अभिशप्त हो जाता है.
- राजेश भारद्वाज
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