हिमांशु कुमार
आज सुबह मेरे पास छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गोमपाड़ गांव से लक्ष्मी का फोन आया. उसने बताया कि सिंगाराम से रामबाबू को पुलिस पकड़ कर ले गई है. इन दोनों के बारे में जानने से पहले हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘मूलवासी बचाव मंच’ पर प्रतिबंध लगाने के बारे में.
अभी 2 दिन पहले एक आदेश जनता के बीच में सार्वजनिक किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार ने लिखा है कि माओवाद प्रभावित क्षेत्र में सरकार की योजनाओं और सुरक्षा बलों के कैंपों का यह संगठन विरोध करता है इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाता है.
चलिए ऊपर लिखे हुए दो नामों के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह लोग सरकारी योजनाओं और सुरक्षा बलों के कैंप का विरोध क्यों करते हैं.
मूलवासी बचाओ मंच सिलगेर में हुई गोलीबारी के बाद अस्तित्व में आया. यह कोरोना का वक्त था. सरकार ने स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल बंद करके बच्चों की छुट्टी कर दी थी. आदिवासी नौजवान अपने स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल से अपने गांव आए हुए थे और वहीं रह रहे थे.
ज्यादातर बच्चों के परिवार में से किसी न किसी सदस्य की या तो हत्या की जा चुकी है या उन्हें फर्जी मुकदमा में फंसा कर जेल में डाला जा चुका है. आप पूरे बीजापुर और सुकमा जिले में घूम लीजिए आपको हर गांव में ऐसी आने को कहानी मिल जाएंगी.
सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियां के मुनाफे के लिए इस इलाके में मौजूद खनिजों को खोज कर बेचने के मकसद से आदिवासियों को यहां से हटकर इन जमीनों को पूंजीपतियों को सौंपना चाहती है. अपने इस उद्देश्य के लिए सरकार सबसे पहले सिपाहियों को गांव में भेज कर एक पुलिस कैंप स्थापित करती है.
यह एक पांचवी अनुसूची वाला आदिवासी क्षेत्र है. यहां गांव में किसी भी जमीन पर कोई भी गतिविधि शुरू करने से पहले सरकार को ग्राम सभा से अनुमति लेने की संवैधानिक जरूरत है. लेकिन सरकार अवैध तरीके से आधी रात को बड़ी-बड़ी जेसीबी मशीन लाकर हजारों पेड़ रात में काटकर पुलिस कैंप स्थापित कर देती है.
ज्यादातर कैंप आदिवासियों की खेती की पट्टे वाली जमीनों पर बनाए गए हैं. मैं खुद ऐसे अनेकों आदिवासी स्त्री पुरुषों बुजुर्गों से मिला हूं जिन्होंने मुझे अपनी जमीनों के पट्टे दिखाए और बताया कि उनकी जमीन पर जबरदस्ती पुलिस कैंप स्थापित कर दिया गया है. मैंने खुद तहसीलदार जिला कलेक्टर और मुख्यमंत्री को इन आदिवासियों की तरफ से पत्र लिखने में मदद की लेकिन आज तक कोई जवाब भी नहीं आया.
इन गांव वालों को पुलिस का बहुत भयानक अनुभव है. पुलिस आती है तो वह महिलाओं से बलात्कार करती है, निर्दोषों को जेल में डालती है, निर्दोष आदिवासियों की हत्या कर दी जाती है. इसलिए जब भी कोई नया कैंप खोला जाता है यह लोग डर जाते हैं और उनकी पिछली यादें इन्हें उसका विरोध करने के लिए प्रेरणा देती हैं.
सिलगेर में जब जबरदस्ती सरकार ने कैंप स्थापित करने की कोशिश की तो आदिवासियों ने उसका विरोध किया. पुलिस ने गोली चलाई जिसमें तीन लोग मौके पर और एक महिला जो गर्भवती थी, वह घर जाकर मर गई. इस तरह कुल पांच आदिवासियों की मृत्यु हुई.
इस घटना के बाद आदिवासी नौजवानों ने तय किया कि वह एक संगठन बनाएंगे और इस तरह जबरदस्ती कैंप स्थापित करने और आदिवासियों की जमीनों को बड़ी कंपनियों के लिए हड़पने का विरोध करेंगे.
तब से यह आदिवासी बस्तर भर में जगह-जगह सरकार द्वारा जबरन बड़ी संख्या में पेड़ काटने, माइनिंग के लिए चौड़ी चौड़ी सड़के बनाने और पुलिस कैंप स्थापित करने का विरोध कर रहे हैं. और अब आप जानना चाहेंगे की लक्ष्मी और रामबाबू कौन है और वह क्यों मूलवासी बचाओ मंच के साथ है और पुलिस कैंप का विरोध कर रहे हैं ?
रामबाबू के गांव सिंगाराम में 2009 में पुलिस ने जाकर रामबाबू के पिता की हत्या कर दी थी. साथ में 18 और आदिवासियों को मार डाला था. चार लड़कियों के साथ बलात्कार करके उनके पेट फाड़ दिए थे. मैं इन आदिवासियों को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट गया था. पिछले साल इन लोगों की याचिका कोर्ट ने उठाकर फेंक दी.
लक्ष्मी की बेटी हिड़मे को 2016 में पुलिस वाले घर से खींच कर ले गए. पास की पहाड़ी में ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी योनि में चाकू डालकर पेट तक चीर दिया गया. उसके बाद हिड़मे के शरीर में कई गोलियां दागी गई और उसे नक्सली वर्दी पहनाकर फोटो खींची गई और दावा किया गया कि एक नक्सली कमांडर को मुठभेड़ में मार डाला गया है.
हिड़मे के शरीर में गोलियों के छेद थे लेकिन वर्दी में एक छेद नहीं था. यानी पहले उसे गोलियां मारी गई, बाद में वर्दी पहनाई गई थी. लक्ष्मी अपनी बेटी के लिए न्याय मांगने हाई कोर्ट गई लेकिन पुलिस ने कहा यह नकली मां है. यह मारी गई लड़की की मां ही नहीं है. याचिका खारिज कर दी गई. इसलिए लक्ष्मी पुलिस कैंप का विरोध करती है.
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