4 मई को खूबसूरत उत्तर-पूर्व राज्य मणिपुर में 3 महिलाओं ने दरिंदगी की जो इन्तेहा झेली, वैसा इस देश में कभी नहीं हुआ. इन्टरनेट बंद रहने की वज़ह से यह विडियो देश के लोगों को 20 जुलाई को देखने को मिला. इसे देखना, कहना और लिखना, बहुत मुश्किल काम है. 3 बेक़सूर महिलाओं को, बंदूक की नोक पर निर्वस्त्र होने को कहा जाता है, फिर सैकड़ों लोगों की भीड़ चीत्कार करते हुए, उनके शरीर को नोचती हुई, उन्हें खेतों में ले जाकर सामूहिक बलात्कार करती है. जिसने भी इस वीभत्स मंजर को देखा, वही गुस्से में उबल उठा. सारे देश में आक्रोश फूट पड़ा. फ़रीदाबाद में, ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ के नेतृत्व में 22 जुलाई को, शाम 6 बजे पंजाब रोलिंग चौक पर एक ज़बरदस्त आक्रोश प्रदर्शन हुआ जिसमें, औद्योगिक मज़दूरों के साथ, बड़ी तादाद में, महिलाओं ने भी शिरक़त की. गूंजते आक्रोशित नारों के बीच मोदी सरकार और मणिपुर सरकार का पुतला भी फूंका गया.
मणिपुर की ये बर्बरता की पराकाष्ठा भी अगर हमारी ज़हनियत को नहीं झकझोरती, तो समझ लेना होगा कि समाज संवेदनशून्य, लक्कड़ का एक गट्ठर हो चुका. पूरा समाज ही रुग्ण हो गया. ग़नीमत है कि अभी वैसा नहीं हुआ. समाज का एक छोटा-सा गलीज़ भक्त समुदाय ही पतन के उस स्तर को प्राप्त हुआ है, जिस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता. अंधेरे को अंधेरा कहने वाले लोग, समाज में अभी भी अच्छी ख़ासी तादाद में मौजूद हैं.
मगज़ में सबसे पहले कौंधने वाला सवाल है; हम ये कहां आ गए ? मणिपुर की महिलाओं पर हुई वहशी बर्बरता और उससे उपजे स्वाभाविक आक्रोश का ये आलम है कि पंजाब रोलिंग चौक के व्यस्त चौराहे से गुजरने वाले लोग अपनी साइकिल, बाइक, ऑटो रोककर, थोड़ी देर ही सही प्रदर्शन में अपनी भागीदारी कर रहे थे, उपस्थिति दर्ज़ करा रहे थे. प्रदर्शन का मुद्दा समझकर, उनके चेहरे पर उपजी ख़ुशी बता रही थी कि प्रदर्शन के नारे और ये तख्तियां उनके दिलो दिमाग को अंदर तक छू रहे थे.
‘मणिपुर के भाइयों-बहनों हम आपके साथ हैं’, ‘महिला सम्मान की लफ्फाज़ी करने वालो डूब मरो’, जात-धर्म में नहीं बटेंगे- एक रहे हैं, एक रहेंगे’, ‘मणिपुर की महिलाओं पर बर्बरता नहीं सहेंगे’, बलात्कारी हत्यारों को फूल मालाएं पहनाने वाली मोदी सरकार इस्तीफा दो’, ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेड़ा गर्क़ करने वाली मोदी सरकार शर्म करो’, ‘भाजपा की संस्कृति संस्कार- बलात्कारी हत्यारों से प्यार.’
‘वो, जो लंबी-लंबी छोड़ता है- मणिपुर जाने से डरता है’, ‘मणिपुर को जलता छोड़ने वाली, मोदी सरकार शर्म करो’, ‘राम रहीम फिर रिहा ! जो भी बलात्कारी हत्यारा है, मोदी सरकार को प्यारा है’, ‘मणिपुर की बहनों हम शर्मिंदा हैं- मोदी सरकार पर लानत है’, ‘मणिपुर 2.5 महीने से जल रहा है !! मोदी सरकार इस्तीफा दो !!’, ‘नरसंहार के हालात पैदा करने वाले, मणिपुर के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करो’, ‘मणिपुर आबादी 32 लाख; हत्याएं 160, घर जले 2,500, घरों से भागने को मज़बूर 60,000 – ये है मोदी का अमृत काल’.
‘मज़दूर, महिलाओं के सम्मान के लिए लड़ना जानते हैं’, पुतले के ऊपर मोदी-वीरेन सिंह की संयुक्त तस्वीर के साथ लिखा हुआ था- ‘मणिपुर के गुनहगार, पूंजीपतियों के ताबेदार’, ‘2002 गुजरात, 2023 मणिपुर’, ‘अमर शहीदों का पैगाम- ज़ारी रखना है संग्राम’, ‘डबल इंजन की सरकार, मज़दूरों पर दोहरी मार’, ‘मोदी सरकार पर लानत है’, ‘कौन बनाता हिंदुस्तान- भारत का मज़दूर किसान’, ‘पूंजीवाद- साम्राज्यवाद-फ़ासीवाद, हो बर्बाद’. इन जोशपूर्ण आक्रोशित नारों से गुंजायमान सभा को क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के अध्यक्ष, कॉमरेड नरेश, महासचिव कॉमरेड सत्यवीर सिंह तथा आज़ाद नगर कमेटी के प्रमुख सदस्य कॉमरेड चंदन ने संबोधित किया.
मणिपुर में 4 मई को महिलाओं के साथ जो ना-काबिले बर्दाश्त घटना घटी और जिसके लिए देश के 140 करोड़ लोगों का सर शर्म से झुक गया है, सारी दुनिया जिस पर लानत भेज रही है; उसका सबसे पीड़ादायक पहलू है कि मोदी सरकार, उन आदमखोर, अमानवीय अपराधियों को भी बचाने की कोशिश कर रही है. ऐसा सोचने के ठोस कारण मौजूद हैं.
मणिपुर 3 मई से जल रहा है, क़ानून व्यवस्था ठप्प पड़ी है, राज्य सरकार पीड़ितों के साथ नहीं बल्कि दंगाईयों के साथ खड़ी नज़र आ रही है और प्रधानमंत्री मुंह सिए बैठे रहे, विदेश यात्राएं करते रहे. ये हरक़तें दंगाईयों का हौसला बढ़ाने वाली और पीड़ितों को खौफ़ज़दा करने वाली हैं. राज्य में अराजकता फ़ैलने के पूरे 72 दिन बाद, जब दुनियाभर में मणिपुर की हिंसा की तस्वीरें वायरल होने लगीं और जब, सुप्रीम कोर्ट को भी दख़ल लेनी पड़ी, कड़ा फैसला लेने की बात कही, तब मोदी जी को याद आया कि ‘मणिपुर से भी उनका पुराना नाता है’ !! लेकिन, मुंह खोला तो क्या बोला ?
‘राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मणिपुर में महिलाओं के साथ जो हुआ उससे मैं बहुत क्रोधित और दुःखी हूं’. जहां हथियार बंद आतंकी-दंगाई पुलिस थानों से हथियार लूट रहे हों, एक समुदाय के लोगों को मार रहे हों, पुलिस उनके साथ हो, घर जला रहे हों, 36 लाख की कुल आबादी में 60,000 लोग अपनी जान बचाने के लिए, घरों से भागने को मज़बूर हो गए हों, उस स्थिति की तुलना राजस्थान और छत्तिसगढ़ से करना, दंगाई हत्यारों, बलात्कारियों को बचाना ना कहा जाए, तो क्या कहा जाए ?
‘द टेलीग्राफ’ में छपा वह कार्टून, जिसमें 56 इंच मोटी चमड़ी वाला घड़ियाल मोटे-मोटे आंसू बहाता दिख रहा है, कितना सटीक है. सरकार द्वारा पोषण और संरक्षण प्राप्त, देश का तथाकथित मुख्य धारा का मीडिया, मुख्य दंगाई और आतंकी की भूमिका निभा रहा है. रंग-बिरंगी ओ बी वेन, मणिपुर पहुंच गई हैं और पिछले कुछ सालों की कुख्यात रणनीति, ‘पीड़ित को ही कसूरवार ठहराओ’ नीति पर काम शुरू हो चुका है. झूठे और फ़र्ज़ी विडियो की भरमार है. हमलावर मैतेई समाज की बाईट ठेली जा रही हैं.
फ़र्ज़ी वीडियो चलाकर दंगे गढ़ना, हिंसा भड़क उठने पर उसमें पेट्रोल डालने का काम करते उन्मादी एंकरों से संचालित ये दंगाई मीडिया, कई बार रंगे हाथों पकड़ा जा चुका है. लेकिन क्या 2014 से पहले कोई सोच सकता था कि ये घृणित काम सरकारी की सबसे प्रमुख न्यूज़ एजेंसी, ‘एएनआई’ भी कर सकती है ? एएनआई ने एक वीडियो ज़ारी किया, जिसमें ये कहा जा रहा है कि महिलाओं की नग्न परेड कराने वाले दिमाग को झकझोर डालने वाले कुकृत्य में एक ‘अब्दुल हलीम’ नाम के व्यक्ति को देखा गया है. बाद में पता चला कि वह व्यक्ति अब्दुल नहीं बल्कि दीपक है.
इस बेहद शातिराना हरक़त के बाद एएनआई ने उस विडियो को हटा लिया. क्या ये कोई सामान्य चूक है ? क्या ये बहुत शातिराना दंगाई जैसी हरक़त नहीं है ? इसके लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों को क्या तुरंत गिरफ्तार नहीं कर लिया जाना चाहिए था ? सरकार ने क्या कार्यवाही की ? क्या इस खेल को लोग नहीं समझते ? सबसे जघन्य अपराधी वह ब्रिगेड है, जो अवर्णनीय बर्बरता झेलती उन महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठा रहे हैं. मोदी सरकार इन लोगों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं करती.
‘मैं बहुत क्रोधित हूं’, कहकर मोदी ने कौन-सा तीर मारा ? जो मुख्यमंत्री ख़ुद दंगाई गिरोह के लीडर की तरह काम कर रहा है, जो निर्लज्जता से कह रहा है कि ऐसे विडियो तो बहुत सारे देखने को मिलेंगे, जिसकी पुलिस ने खुद, दिमाग सुन्न कर डालने वाली इस घटना की पीड़ित महिलाओं को दंगाईयों को सौंपा था, उसके ख़िलाफ़ क्या कार्यवाही हुई ? हत्यारा मुख्यमंत्री अभी भी अपनी कुर्सी में धंसा हुआ है.
‘ऐसी हिंसा मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी. क़ानून व्यवस्था पूरी तरह ठप्प है. हम इन सारी घटनाओं की लिखित रिपोर्ट, दिल्ली में उच्च स्तर तक भेजते रहे हैं’, मणिपुर की राज्यपाल महोदया के इस बयान के बाद ‘उच्च स्तर’ पर विराजमान लोगों ने क्या कार्यवाही की, कौन से क़दम उठाए ? 160 लोगों की हत्या हो चुकने के बाद भी क्या यह जानकारी देश को नहीं दी जानी चाहिए ? और अगर कुछ नहीं किया तो उस ‘उच्च स्तर’ को इस अपराध में भागीदार, इसका सूत्रधार क्यों ना माना जाए ?
महिला आयोग के पास 38 दिन से इसी घृणित-घिनौनी घटना की रिपोर्ट पड़ी हुई थी, कुछ नहीं किया. आज, भोलेपन का पाखंड करते हुए कहा जा रहा है कि हमने स्वत:संज्ञान लेते हुए डीजीपी, मणिपुर को कड़ी कार्यवाही करने को कह दिया है !! यही है मोदी का ‘अमृत काल’ और यह है उनके भावी ‘हिन्दू-राष्ट्र’ की असली तस्वीर !!
साथियों, ये सारे लक्षण एक गंभीर रोग की गवाही दे रहे हैं, उस रोग का नाम है – फ़ासीवाद. ये रोग पूंजीवाद की सड़न से उत्पन्न कीड़ों से पैदा होता है. इसमें जनवाद का ऊपरी आकर्षक आवरण फाड़कर सत्ता अपने असली खूंख्वार रूप में, ख़ुद को बचाने के अंतिम प्रयास के तहत अपने ही लोगों पर षडयंत्रकारी घृणित रूप में टूट पड़ती है. हिटलर और मुसोलिनी भले मर गए हों, सड़ता पूंजीवाद अभी तक जीवित है. वही सड़न, वही रोग पैदा करेगी और तब तक करती रहेगी जब तक की इस कैंसर की कीमोथेरेपी नहीं होगी.
‘पूंजीवाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ और ‘फ़ासीवाद पर हल्ला बोल’ के ज़ोरदार नारों से सभा का समापन हुआ.
- फरीदाबाद से सत्यवीर सिंह की रिपोर्ट
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