वाराणसी से कलकत्ता तक पानी वाले जहाज का संचालन शुरू हो गया है. अभी सिर्फ मालवाहक जहाज ही चल रहे हैं और दो एक साल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी शुरू हो जाएगा.
बीते 30 मार्च को एक जहाज वाराणसी से बनारसी लंगड़े आमों की खेप लेकर कलकत्ता के लिए निकला. जहाज पर लगभग तीस हजार टन आम लदे हुए थे. हालांकि उस जहाज की क्षमता पच्चीस हजार टन ही थी लेकिन कैलकुलेशन मिस्टेक की वजह से ज़्यादा वजन लोड हो गया और इस कारण उथले पानी में जहाज फंसने की आशंका थी. जहाज के संचालकों ने जब इस ओवर लोड की जांच किया तो पता चला कि जहाज का अबतक निर्धारित न्यूनतम जलस्तर सात मीटर से अभी भी सुरक्षित लेवल पर ही है तो जहाज को रवाना कर दिया गया.
दिक्कत सिर्फ वाराणसी से पटना के बीच तक ही थी क्योंकि इसी क्षेत्र में कहीं-कहीं गंगा उथली है. पटना से आगे बढ़ते ही कूचविहार से लेकर हल्दिया तक गंगा नदी खूब चौड़ी और गहरी भी है. जहाज के कप्तान जहाज को सावधानी पूर्वक पटना तक ले जाने में कामयाब रहे. लेकिन जब वो दरभंगा बेसिन को क्रॉस कर रहे थे तभी जहाज अचानक से खड़ा हो गया. क्रू मेंबर घबड़ा गए और उन्होंने वाटर लेबल नापा तो जहाज अभी भी नदी तल से बारह मीटर ऊपर था.
कैप्टन जहाज को बार बार आगे बढ़ाने को कोशिश करता लेकिन जहाज टस से मस नहीं हो रहा था. यह बहुत ही असाधारण स्थिति थी. अंततः कप्तान ने गोताखोरों का मदद लिया और उन्हें जहाज की तली में भेजा गया. गोताखोर जब नीचे गए तो उन्हे तली में एक विचित्र पत्थर मिला. फिर उन्होंने जहाज की तली का पूरा निरीक्षण परीक्षण किया. उन्हें कोई समस्या नहीं दिखी तो वो लोग वापस जहाज पर आ गए. इस बीच सिर्फ कौतूहलवश उन लोगों ने उस पत्थर को साथ रख लिया.
एक बार जहाज को दुबारा स्टार्ट किया गया और चलाने का प्रयास किया गया. आश्चर्यजनक रूप से वो भारी भरकम जहाज चल पड़ा. तब इन लोगों को उस पत्थर का ध्यान आया कि हो न हो जहाज को रोकने में इस पत्थर का ही हाथ था. सब लोग उलट पुलट कर पत्थर को देखने लगे. दिखने में तो पत्थर बिल्कुल सामान्य-सा था लेकिन उस पर किसी प्राचीन भाषा में कुछ लिखा हुआ था. उन लोगों ने लाख यत्न किया लेकिन पत्थर पर लिखे शब्दों को वो लोग डिकोड नहीं कर पाए. अंततः उन लोगों ने पत्थर को वापस नदी में फेंक दिया.
लेकिन यह क्या ? पत्थर फेंकते ही जहाज फिर से रुक गया. मजबूरन दोबारा गोताखोर नदी में उतरे और पत्थर को वापस खोज कर डेक पर लाया गया. आश्चर्यजनक रूप से जहाज दुबारा चल पड़ा. अब सभी की दिलचस्पी पत्थर में हो चुकी थी. कलकत्ता पहुंचने पर पत्थर लेकर कप्तान सबसे पहले जहाज से उतरा और सीधे हावड़ा ब्रिज के नीचे बैठे एक वृद्ध औघड़ के पास पहुंच पत्थर पर लिखे वाक्य कि अर्थ जानना चाहा.
औघड़ ने बताया कि इस पर दो लाइनें लिखी हुई हैं. पहली लाइन तो यह है कि ’24 में भी आएगा तो मोदी ही’ और दूसरी लाइन है, ‘अबकी बार 400 पार.’
- ऋषि शुक्ला
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