Home गेस्ट ब्लॉग स्टीफन हॉकिंग : वह आदमी जो ब्रह्मांड को जानता था…

स्टीफन हॉकिंग : वह आदमी जो ब्रह्मांड को जानता था…

18 second read
0
0
324
‘मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई. इसके रहस्य लोगों के सामने खोले और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया. मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है.’

– स्टीफन हॉकिंग

स्टीफन हॉकिंग : वह आदमी जो ब्रह्मांड को जानता था...
स्टीफन हॉकिंग : वह आदमी जो ब्रह्मांड को जानता था…

विश्व के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का 76 वर्ष की आयु में 14 मार्च 2018 को निधन हो गया था. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान और गणित के प्रोफेसर रहे स्टीफन हॉकिंग को अल्बर्ट आइंस्टाइन के बाद विश्व सबसे का सबसे बड़ा भौतिकशास्त्री माना जाता था. अपनी अद्भुत जिजीविषा, अपूर्व इच्छाशक्ति और अदम्य साहस के बल पर शारीरिक विकलांगता की बाधाओं को पार करते हुए प्रोफेसर हॉकिंग ने सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व खोजें की.

स्टीफन हॉकिंग अपने जीवनकाल में ही एक किंवदंती (आख्यान-पुरुष) बन गए थे. इसके कारणों को समझना ज्यादा कठिन नहीं है. पहला कारण तो यही है कि उन्होंने शारीरिक विकलांगता के बावजूद ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोधकार्य किए और कुछ क्रांतिकारी सिद्धांत प्रस्तावित किए. प्रत्येक विचारशील मनुष्य को ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विचार और सिद्धांत आकर्षित और प्रभावित करते रहें हैं, फिर चांहे वह व्यक्ति वैज्ञानिक हो, धर्माचार्य हो या आम मनुष्य.

हॉकिंग की बेतहाशा लोकप्रियता का दूसरा कारण उनकी लोकप्रिय पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ है. दरअसल, हॉकिंग का नाम उन विलक्षण वैज्ञानिकों में शुमार होता है, जिनका अनुसंधान भी पहले दर्जे का होता है और लेखन भी पहले दर्जे का ! हॉकिंग का यह मानना था कि किसी भी वैज्ञानिक के शोधकार्यों की पहुंच सामान्य जनमानस तक होनी चाहिए. इसी विचार से प्रेरित होकर उन्होंने जनसामान्य के लिए सरल-सहज भाषा में लेख और पुस्तकें लिखीं तथा सार्वजनिक व्याख्यान भी दियें.

उपर्युक्त बातों के आलावा हॉकिंग की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण था – उनका विलक्षण व्यक्तित्व, उनकी विनम्रता और अपनी बातों को व्यक्त करने का उनका अनूठा अंदाज. आइए, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक नज़र डालते हैं.

प्रारंभिक जीवन

स्टीफन विलियम हॉकिंग का जन्म 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड में फ्रेंक और इसाबेल हॉकिंग दंपत्ति के घर में हुआ था. इसे महज एक संयोग ही माना जा सकता है कि हॉकिंग का जन्म महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली के देहांत के ठीक तीन सौ वर्ष बाद हुआ था. आठ वर्ष की उम्र में जब स्टीफन विद्यालय जाने के योग्य हुए तो उनको प्राथमिक शिक्षा के लिए लड़कियों के एक स्कूल में उनका दाखिला दिला दिया गया. 11 वर्ष की उम्र के बाद हॉकिंग ने सेंट मेलबर्न नामक स्कूल में अपनी आगे की पढ़ाई की.

हॉकिंग को बचपन में उनके सहपाठी ‘आइंस्टाइन’ कहकर संबोधित करते थे. मगर आइंस्टाइन की ही तरह हॉकिंग भी बचपन में प्रतिभाशाली विद्यार्थी नहीं माने जाते थे. मगर हाईस्कूल के अंतिम दो वर्षों में गणित और भौतिक विज्ञान के अध्ययन में उनकी रूचि बढ़ने लगी थी. उनके पिता चाहते थे कि स्टीफन आगे की पढ़ाई जीव विज्ञान विषय लेकर करें, मगर स्टीफन की जीव विज्ञान में रूचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी रूचि के विषय गणित और भौतिक विज्ञान की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया.

इसके बाद वे ‘ब्रह्मांड विज्ञान’ (कॉस्मोलॉजी) में उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गये. वे अपनी पी.एच.डी. उस समय के प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक सर फ्रेड हॉयल के मार्गदर्शन में करना चाहते थे, मगर गुरु के रूप में उन्हें हॉयल का सानिध्य नहीं मिला बल्कि उन्हें डॉ. डेनिश शियामा नामक एक कम जानेमाने भौतिकविद का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ.

असाध्य बीमारी

जब स्टीफन 21 वर्ष के थे तो एक बार छुट्टियां मनाने के लिए अपने घर पर आये हुए थे. वे सीढ़ियों से उतर रहे थे कि तभी उन्हें बेहोशी का एहसास हुआ और वे तुरंत ही नीचे गिर पड़े. उन्हें फैमली डॉक्टर के पास ले जाया गया. शुरू में उन्होंने उसे मात्र एक कमजोरी के कारण हुई घटना मानी, मगर बार-बार ऐसा होने पर उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास ले जाया गया, जहां यह पता चला कि वे अमायो‍ट्राफिक लेटरल स्‍कलेरोसिस (मोटर न्यूरॉन) नामक एक दुर्लभ और असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं.

इस बीमारी में शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं, जिसके कारण शरीर के सारे अंग बेकाम हो जाते हैं और अंतत: मरीज घुट-घुट कर मर जाता है. डॉक्टरों का कहना था कि चूंकि इस बीमारी का कोई भी इलाज मौजूद नहीं है इसलिए हॉकिंग बस एक-दो साल ही जीवित रह पाएंगें. स्टीफन को यह लगने लगा था कि इस बीमारी के कारण अपनी पी.एच.डी. पूरी नहीं कर पाएंगे. वे यह भी सोचने लगे कि ‘यदि अनुसंधान कार्य पूरा भी हो जाता है, तो मैं जीवित ही नहीं रहूंगा तो डिग्री का क्या फायदा ?’

लेकिन कुछ समय डिप्रेशन में रहने के बाद आखिरकार स्टीफन की सोच और कार्यशैली में जबरदस्त बदलाव आया. धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वे कई अच्छे कार्य कर सकते हैं. हॉकिंग ने कहा भी था कि हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं, लेकिन हमें उन चीजों के लिए पछताना नहीं चाहिए जो हमारे वश में नहीं है. उन्होंने ऐसा ही किया और अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा.

इधर स्टीफन का सौभाग्य कि डॉक्टरों की भविष्यवाणी के दो वर्ष बीत गए और उन्हें कुछ भी नहीं हुआ तथा बिमारी की बढ़त भी धीमी होती गई, जिससे उनका उत्साह और मनोबल बढ़ता गया. इसी बीच जेन वाइल्ड नामक एक लड़की से स्टीफन को प्रेम हो गया. वे दोनों शादी करना चाहते थे, मगर शादी के बाद जीवनयापन के लिए स्टीफन को नौकरी की जरूरत थी और नौकरी के लिए पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त करना अनिवार्य जरूरत थी. अत: वह अपने अनुसंधान कार्य के प्रति गंभीर हो गए और अपने काम में पूर्णतया तल्लीन हो गए.

इसी दौरान जॉनविले एंड क्यूस कॉलेज में उन्हें रिसर्च फेलोशिप मिल गई. यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इसके बाद हॉकिंग ने अपनी प्रेमिका जेन वाइल्ड से विवाह किया, तब तक हॉकिंग के शरीर का दाहिना हिस्सा पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो चुका था. दिन-ब-दिन उनकी परेशानियां बढ़ती ही गई. अब वे लाठी के सहारे ही चल सकते थे. मगर साथ में, विज्ञान के प्रति हॉकिंग की ललक में भी दिन-ब-दिन बढ़ोत्तरी होती गई.

इस बीमारी के चलते उन्हें बाद में बोलने में भी काफी परेशानी होने लगी, इसी कारण वे स्पीच जनरेटिंग डिवाइस का उपयोग करने लगे. बीमारी बढ़ने पर जब वे चलने-फिरने में पूर्णत: असमर्थ हो गये, तो उन्‍होंने तकनीकी रूप से सुसज्जित व्‍हील चेयर का इस्‍तेमाल शुरू कर दिया.

वर्ष 1965 में उनका पहला शोधपत्र ‘ऑन द हॉयल-नार्लीकर थ्‍योरी ऑफ ग्रेविटेशन’ प्रोसीडिंग ऑफ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ. मार्च 1966 में हॉकिंग को पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई. डॉक्टरेट की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने सापेक्षता सिद्धांत और क्वांटम भौतिकी पर शोधकार्य शुरू कर दिया. उन्होंने गणितज्ञ रोजर पेनरोज के साथ मिलकर ब्‍लैक होल पर शोधकार्य प्रारम्‍भ किया और वर्ष 1970 में उन्हें क्‍वांटम यांत्रिकी और आइंस्टाइन के सामान्‍य सापेक्षता सिद्धांत का उपयोग करके ब्‍लैक होल से विकिरण उत्‍सर्जन का प्रदर्शन करने में सफलता प्राप्‍त हुई. इस प्रकार से हॉकिंग ने अपने वैज्ञानिक जीवन का सफ़र शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि पूरी दुनिया में फैलने लगी.

हॉकिंग के प्रमुख अनुसंधान कार्य

वर्ष 1966 में रोजर पेनरोज के साथ मिलकर ब्लैक होल पर अनुसंधान कार्य शुरुआत करने से लेकर 1990 दशक के मध्य तक स्टीफन हॉकिंग गणित और मूलभूत भौतिकी की संधि पर गंभीरतम काम में जुटे रहे. 1960 के दशक में स्टीफन हॉकिंग, जार्ज एलिस और रोजर पेनरोज ने आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को दिक् और काल की गणना में प्रयुक्त करते हुए यह बताया कि दिक् और काल सदैव से विद्यमान नहीं थे, बल्कि उनकी उत्पत्ति ‘महाविस्फोट’ के साथ हुई. हॉकिंग को एहसास हुआ कि महाविस्फोट दरअसल ब्लैक होल का उलटा पतन ही है.

स्टीफ़न हॉकिंग ने पेनरोज के साथ मिलकर इस विचार को और विकसित किया और दोनों ने 1970 में एक संयुक्त शोधपत्र प्रकाशित किया और यह दर्शाया कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्लैक होल के केंद्रभाग में होने वाली ‘विलक्षणता’ (सिंगुलैरिटी) जैसी स्थिति से ही हुई होगी. दोनों ने यह दावा किया कि महाविस्फोट से पहले ब्रह्मांड का समस्त द्रव्यमान एक ही जगह पर एकत्रित रहा होगा. उस समय ब्रह्मांड का घनत्व असीमित था तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक अति-सूक्ष्म बिंदू में समाहित था.

इस स्थिति को परिभाषित करने में विज्ञान एवं गणित के समस्त नियम-सिद्धांत निष्फल सिद्ध हो जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को विलक्षणता नाम दिया है. किसी अज्ञात कारण से इसी सूक्ष्म बिन्दू से एक तीव्र विस्फोट हुआ तथा समस्त द्रव्य इधर-उधर छिटक गया. इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार शुरू हुआ और दिक्-काल की भी उत्पत्ति हुई. इस परिघटना को सर फ्रेड हॉयल द्वारा ‘बिग बैंग’ का नाम दिया गया.

सूर्य से लगभग 10 गुना अधिक द्रव्यमान वाले तारों का जब हाइड्रोजन और हीलियम खत्म हो जाता है, तब वे अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़कर अत्यधिक सघन पिंड ब्लैक होल बन जाते हैं. ब्लैक होल अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो आकार में तो बहुत छोटे होते हैं, मगर इनके अंदर गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि इसके चंगुल से प्रकाश की किरणों का निकलना भी असंभव होता हैं. चूंकि यह प्रकाश की किरणों को भी अवशोषित कर लेता है, इसीलिए यह हमारे लिए सदैव अदृश्य बना रहता है.

ब्लैक होल के बारे में हमारी वर्तमान समझ स्टीफन हॉकिंग के कार्यों पर ही आधारित है. हॉकिंग ने वर्ष 1974 में ‘ब्लैक होल इतने काले नहीं’ शीर्षक से एक शोधपत्र प्रकाशित करवाया. इस शोधपत्र में हॉकिंग ने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत एवं क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों के आधार पर यह दर्शाया कि ब्लैक होल पूरे काले नहीं होते, बल्कि ये अल्प मात्रा में विकिरणों को उत्सर्जित करतें हैं. हाकिंग ने यह भी प्रदर्शित किया कि ब्लैक होल से उत्सर्जित होने वाली विकिरणें क्वांटम प्रभावों के कारण धीरे-धीरे बाहर निकलती हैं. इस प्रभाव को हॉकिंग विकिरण (हॉकिंग रेडिएशन) के नाम से जाना जाता है.

हॉकिंग विकिरण प्रभाव के कारण ब्लैक होल अपने द्रव्यमान को धीरे-धीरे खोने लगते हैं, तथा ऊर्जा का भी क्षय होता है. यह प्रक्रिया लम्बें अंतराल तक चलने के बाद आखिरकार ब्लैक होल वाष्पन को प्राप्त होता है. दिलचस्प बात यह है कि विशालकाय ब्लैक हालों से कम मात्रा में विकिरणों का उत्सर्जन होता है, जबकि लघु ब्लैक होल बहुत तेजी से विकिरणों का उत्सर्जन करके वाष्प बन जाते हैं.

आधुनिक खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मांड की व्याख्या दो मूल किंतु अधूरे सिद्धांतों की सहायता से करते हैं, पहला आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत और दूसरा क्वांटम सिद्धांत. सामान्य सापेक्षता सिद्धांत विराट ब्रह्मांड की संरचनाओं जैसे- तारों, ग्रहों और आकाशगंगाओं आदि पर लागू होती है. विशाल खगोलीय पिंडों पर गुरुत्वाकर्षण बल किस प्रकार से प्रभाव डालता है, का अध्ययन सामान्य सापेक्षता सिद्धांत द्वारा किया जाता है. वहीं क्वांटम सिद्धांत में बेहद सूक्ष्म चीज़ों जैसेकि परमाणु, इलेक्ट्रान आदि का अध्ययन किया जाता है.

मूल रूप से ये दोनों सिद्धांत एक दूसरे से असंगत लगते हैं. इसलिए स्टीफन हॉकिंग ने एक सार्वभौमिक सिद्धांत (थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग) के विकास का प्रयास किया, जो प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक स्थिति में लागू हो. हॉकिंग का मानना था कि ब्रह्मांड का निर्माण स्पष्ट रूप से परिभाषित सिद्धांतों के आधार पर हुआ है. उनका कहना था कि थ्योरी ऑफ़ एवरीथिंग हमें इस सवाल का जवाब देने के लिए काफ़ी होगा कि ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ, ये कहां जा रहा है और क्या इसका अंत होगा और अगर होगा तो कैसे होगा ? अगर हमें इन सवालों का जवाब मिल गया तो हम ईश्वर के मस्तिष्क को समझ जाएंगे.

स्टीफन हॉकिंग का मानना था कि परग्रही प्राणी यानी एलियन हमारे ब्रह्मांड में निश्चित रूप से मौजूद हैं, मगर उनका यह भी कहना था कि बेहतर होगा कि मानवजाति उनसे संपर्क करने का प्रयास न करें क्योंकि एलियंस हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं, वे संसाधनों के लिए पृथ्वी पर हमला कर सकते हैं और यदि वे तकनीकी दृष्टि से हमसे समृद्ध प्राणी हुए तो उनके कारण संपूर्ण मानवजाति संकट में पड़ सकती है. इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि ताकतवर ने हमेशा कम ताकतवर को अपने अधीन किया है, इसलिए हॉकिंग का कहना था कि हमें परग्रही प्राणियों से सावधान रहना चाहिए.

स्टीफन हॉकिंग ने लियोनार्ड म्लोदिनोव के साथ लिखी अपनी पुस्तक ‘द ग्रैंड डिजाइन’ में यह तर्क दिया था कि सदियों से यह विश्वास किया जाता रहा है कि ब्रह्मांड अनादि-अनंत है जिसके पीछे यह उद्देश्य था कि उसकी उत्पत्ति के बारे में कोई विवाद न हो. दूसरी ओर कुछ का विश्वास था कि इसकी एक निश्चित शुरुवात हुई थी और उन लोगों ने उस तर्क का प्रयोग ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने में किया.

आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान का यह विश्वास कि काल दिक् की तरह व्यवहार करता है, एक नया विकल्प प्रस्तुत करता प्रतीत होता है. इससे लंबे समय से चली आ रही यह आपत्ति तो दूर हो जाती है कि ब्रह्मांड की कोई शुरुवात हुई थी बल्कि इसका यह अभिप्राय भी है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति भौतिक विज्ञान या प्रकृति के मूलभूत नियमों के अधीन हुई थी, इसलिए इसको उत्पन्न करनेवाले किसी रचयिता या ईश्वर की कोई आवश्यकता नहीं है. हॉकिंग और लियोनार्ड म्लोदिनोव के उक्त विचारों से संपूर्ण विश्व में बड़ी खलबली मच गई थी और दोनों की काफी आलोचना भी हुई.

खुले मन के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग

हॉकिंग ने यह सिद्ध करने के बाद कि विलक्षणता (सिंगुलैरिटी) की स्थिति से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी, (इस सिद्धांत को तबतक विज्ञान जगत में सामान्य स्वीकृति मिल चुकी थी). उन्होंने यह मत प्रस्तुत किया कि चूंकि ब्रह्मांड की कोई भी सीमा नहीं है, इसलिए ब्रह्मांड अनादि-अनंत है. इसी कारण से विलक्षणता की स्थिति हो नहीं हो सकती ! ऐसे ही एक बार उन्होंने अपनी गणनाओं से यह निष्कर्ष निकाला था कि ब्लैक होल का आकार सिर्फ़ बढ़ सकता है और ये कभी भी घटता नहीं है, मगर बाद में उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने आपको गलत सिद्ध कर दिया.

स्टीफन हॉकिंग का दावा था कि हिग्स बोसॉन कभी भी खोजा नहीं जा सकेगा. बाद में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के एक प्रयोग में हिग्स बोसॉन को खोज लिया गया. हॉकिंग ने तुरंत अपनी गलती मान ली तथा हिग्स बोसॉन की खोज के लिए पीटर हिग्स को बधाई दी. हॉकिंग विज्ञान की निरंतर प्रगतिशीलता और मौलिकता में विश्वास करते थे, ‘मुझसे गलती हो गई’ यह कहना अपने आप में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का एक महत्वपूर्ण लक्षण है. हॉकिंग ने हमे बता दिया कि विज्ञान में कोई भी सर्वज्ञानी नहीं होता.

स्टीफन हॉकिंग को 13 मानद उपाधियां और अमेरीका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ था. उन्हें ब्रह्मांड विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए अल्बर्ट आइंस्टाइन पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए थे. मृत्यु के बाद हॉकिंग को आइजैक न्यूटन और चार्ल्स डार्विन जैसे महान वैज्ञानिकों के बेस्टमिस्टर एब्बे स्थित कब्र के बगल में दफनाया गया. आज स्टीफन हॉकिंग हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार प्रेरणा बनकर हमारे साथ सदैव जीवित रहेंगे. ब्रह्मांड की उत्पत्ति, ब्लैक होल, क्वांटम गुरुत्व पर अपने कार्यों के कारण वे विज्ञानप्रेमियों के बीच सदैव एक जिंदादिल, जीनियस और जांबाज के रूप में याद किये जायेंगे.

  • सागर राणा

Read Also –

सलाम स्टीफन हॉकिंग
स्टीफन हॉकिंगः सदी के महान वैज्ञानिक का यूं चला जाना
सत्ता शीर्ष से फैलाई जा रही अंधविश्वास और अवैज्ञानिक चिंतन की चपेट में देश
क्या हम भी वाया स्टीफेन-जेएनयू IAS बनने पर ताली बजाएं ?
‘वो गुज़रा ज़माना’: नमक के खंभों पर टिका समय…!
19 अप्रैल : चार्ल्स डार्विन की पुण्यतिथि के अवसर पर – वो व्यक्ति जिसके सिद्धांतों ने दुनिया बदल दी 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

ठगों का देश भारत : ठग अडानी के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट सख्त, दुनिया भर में भारत की किरकिरी

भारत में विकास के साथ गटर होना बहुत जरूरी है. आपको अपने पैदा किए कचरे की सड़ांध बराबर आनी …