राज्य हमारी मां नहीं है
और नहीं हम उसके बच्चे है
कि सिर्फ हमारे रो देने भर से वो हमें दुध पिला देगा
राज्य हमारा बाप भी नहीं है
कि जिद्द करने पर वो हमारे लिए
मिठाईयां और खिलौने ला देगा
राज्य तो परजीवी है
जो जोंक की तरह
हमारा खून पी कर जिन्दा है
जिसकी इस दुनिया में कोई जरूरत नहीं है
मनुष्य खुद से ही शासित होनेवाला जीव है
यह कोई जनवार नहीं है
कि इसे नियन्त्रित करने के लिए
बल की जरूरत पड़े
मनुष्य के पास मस्तिक के रूप में
ब्रह्माण्ड का सबसे विकसित पदार्थ है
जिसके रहते उसे किसी और चीज से
नियन्त्रित होने की जरूरत नहीं है
रज्य विहीन समाज की तरफ कदम बढ़ाना ही
मानवता की तरह कदम बढ़ाना है
उसके लिए मजदूरों-किसानों का राज्य लाना है
जो हमें राज्य विहीन,
वर्ग विहीन और
जाति विहीन समाज में ले जाएऐगा.
- विनोद शंकर
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