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खुलकर अपने लोकतंत्र, अपने संविधान और अपने देश के मुसलमानों के साथ खड़े हों !

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कृष्ण कांत

मुसलमानों के प्रति भाजपा-आरएसएस की बेतुकी नफरत अब देश के लिए नासूर बन रही है। मौजूदा नूपुर शर्मा मामले के बहाने सरकार एक बार फिर बर्बरता पर उतर आई है। मुसलमानों पर जान-बूझकर जुल्म किया जा रहा है। जाहिर है कि ऐसा हिंदू ​तुष्टीकरण के चलते किया जा रहा है, जबकि यह मसला पहले ही भारत के लिए राष्ट्रीय शर्म का विषय बन गया है। हिंसा का कोई भी स्वरूप स्वीकार्य नहीं है। हिंसा हर हाल में निंदनीय है। लेकिन जो सवाल पूछे जाने चाहिए, वे न पूछे जा रहे हैं, न कभी पूछे जाएंगे.

यह हिंसा नूपुर और नवीन नाम के दो कथित फ्रिंज के बयानों की वजह से हुई। उनके बयान के बाद हम 17 देशों का विरोध झेल चुके हैं, उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या नूपुर और नवीन जैसे लोगों को सरकार की तरफ से 8 साल से लगातार बढ़ावा नहीं दिया गया? क्या धर्म संसदों में जो अधर्म हुए, उनको सरकारी संरक्षण नहीं था? क्या राष्ट्रपिता को गाली देने और मुसलमान बहनों का सरेआम बलात्कार करने की धमकी देने वाले घिनौने लोगों को बचाया नहीं गया?

हत्या करने, बलात्कार करने, सिर कलम करने जैसी बातें जघन्य और अस्वीकार्य हैं। ऐसी नौबत क्यों आई? क्या दिन भर चैनलों पर यह जहर प्रसारित करके इसे बढ़ावा नहीं दिया गया?

कई मुसलमानों को इस कल्पना के आधार पर जेल में डाला गया है कि उनके भाषण से दंगा भड़क सकता था, उनका भाषण देशविरोधी था। कोई में कुछ साबित नहीं होने के बाद उन्हें जेल में क्यों रखा गया है?

 

देश के 12 राज्यों में एक ही दिन हिंसक प्रदर्शन हुए। क्या ये प्रदर्शन बिना किसी पूर्व तैयारी के थे? अगर तैयारी हुई तो सरकार क्या कर रही थी? क्या केंद्र सरकार, राज्य सरकार और खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही तय होगी? ये प्रदर्शन पूर्व नियोजित थे तो क्या सरकार को इनकी खबर नहीं थी?

बकौल अभय दुबे, भाजपा आईटी सेल के मुताबिक जिन 38 भाजपाइयों को भड़काने वाले बयान देने के ​लिए चिन्हित किया गया है, उन्होंने अब तक 5000 से ज्यादा ऐसे बयान दिए हैं? क्या उनके घर भी गिराए जाएंगे?

भारतीय दंड संहिता में बिना अदालती कार्रवाई के, बिना अपराध सिद्ध हुए दंड देने का अधिकार कब शामिल किया गया? क्या अब हर ​किसी पर आरोप लगते ही प्रशासन उसका घर ढहा देगा? क्या आजतक किसी भाजपाई का भी घर ढहाया गया? देश में सैकड़ों लिंचिंग हुईं, कितने हत्यारों का घर ढहाया गया?

क्या यह सही नहीं है कि अरब देशों की प्रतिक्रिया पाकर आठ साल से प्रताड़ित हो रहे मुसलमानों का दुस्साहस बढ़ा कि वे हिंसा करें? सरकार ने ऐसी प्रतिक्रिया रोकने के लिए क्या किया? सरकार ने इस मामले में लीपापोती की कार्रवाई क्यों की?

नूपुर और नवीन पर जो मुकदमे हुए, उनमें अन्य लोगों के नाम घसीटकर क्या उस केस को कमजोर नहीं किया? वजह कोई भी हो, हिंसा नहीं होने देने या हिंसा रोकने का काम किसका है? क्या जिन जिलों में हिंसा हुई है, उन सभी जिलों के ​अधिकारियों के घर भी ढहाए जाएंगे?

क्या अब इस देश में हत्यारा, दंगाई और दारोगा सब एक ही साधन अपनाएंगे? क्या हिंदुओं के बर्बर तुष्टिकरण की यह कार्रवाई हिंदुओं से उनका लोकतंत्र नहीं छीन रही है? यह जो पागलपन है

हिंदू राज को पागलपन भरा विचार बताने वाले सरदान पटेल ने 1950 में एक सभा में कहा था, “हमारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। यहां हर मुसलमान को यह महसूस करना चाहिए कि वह भारत का नागरिक है और भारतीय होने के नाते उसका समान अधिकार है। यदि हम उसे ऐसा महसूस नहीं करा सकते तो हम अपनी विरासत और अपने देश के लायक नहीं हैं।”

कोई अपराधी मुसलमान है या हिंदू, उसे कानून के मुताबिक सजा मिलनी चाहिए लेकिन सरकारी कार्रवाई साफ दिखाती है कि इस देश में अभियान चलाकर मुसलमानों के साथ अन्याय किया जा रहा है। सरदार पटेल ने जिस पागलपन की ओर इशारा किया था, वह यही पागलपन था। यह वक्त ऐसा है जब मुसलमानों के बहाने भारत के संविधान पर हमला बोला जा रहा है. आज समय है कि हम खुलकर अपने लोकतंत्र, अपने संविधान और अपने देश के मुसलमानों के साथ खड़े हों !

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