सर्वहारा के चौथे महान शिक्षक जोसेफ स्टालिन पर साम्राज्यवादी व अंंधराष्ट्रवादी लगातार हमले कर रहा है. मानवता के निकृष्टतम शत्रु साम्राज्यवाद और अंधराष्ट्रवाद द्वारा स्टालिन के खिलाफ दुश्प्रचार यह बताने के लिए काफी है कि वह स्टालिन से किस कदर भयाक्रांत है.
स्टालिन पर सबसे बड़ा आरोप यह लगाता है कि वे तानाशाह थे. इन अंधकूपमंडुक यह बताना नहीं चा ते हैं कि तानाशाही यानी, सर्वहारा तानाशाही के सबसे बड़े समर्थक व इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने यहां तक कहा था कि जो सर्वहारा अधिनायकवादी सत्ता को मानने से इंकार करता है, वह मार्क्सवादी नहीं हो सकता. बस, मार्क्स को सर्वहारा वर्ग की तानाशाही लागू नहीं कर पाये.
वर्गों के इतिहास में सर्वहारा वर्ग की तानाशाही को लागू करने का उत्तरदायित्व सर्वहारा के महान शिक्षक स्टालिन के कंधे पर आया, जिसे उन्होंने उसे बखूबी निभाया भी. यह सच है कि स्टालिन से इस उत्तरदायित्व को निभाने में कुछ त्रुटियां भी हुई है, इसका कारण ऐतिहासिक है, जिससे बचना बहुत मुश्किल होता है, वह भी तब जब सर्वथा नवीन रास्ते पर चलना हो.
परन्तु, स्टालिन की कुछेक कमजोरियों को उनकी विशाल उपलब्धि के सामने नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वह भी तब जब भविष्य का उत्तरदायित्व कंधे पर हो, परन्तु इससे उनकी विशालता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता, जिसके लिए साम्राज्यवादी और अंधराष्ट्रवादी कूपमंडूक पानी पी पीकर स्टालिन को कोसते हैं.
इसी संदर्भ में स्टालिन के समक्ष ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल के लिखित पुस्तक में स्टालिन के बारे में दिये गये ब्यौरों को देखा जा सकता है. जो सर्वहारा के महान शिक्षक स्टालिन के व्यक्तित्व को उजागर करता है.
चर्चिल दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर के फासीवादी इरादों को नाकाम करने के लिए मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व करने वाले इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंसटन चर्चिल प्रसिद्ध कूटनीतिज्ञ और प्रखर वक्ता थे. सेना में अधिकारी रह चुके थे, चर्चिल एक इतिहासकार, लेखक और कलाकार भी थे. वही एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिसे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
चर्चिल की एक बहुचर्चित पुस्तक है ‘Memoirs of Second World war’ उनकी इस पुस्तक में कॉमरेड स्तालिन को लेकर एक संस्मरण भी दर्ज है जो उनके साथ साथ दुनियाभर के लोगों में स्तालिन के बारे प्रचलित अनेक गलतपहमियों का निराकरण हो जाता है.
चर्चिल अपनी पुस्तक में लिखते हैं : ‘आंग्ल-रूसी संधि (Anglo-Russian Treaty) पर हस्ताक्षर हेतु मैं मास्को गया था. मास्को छोड़ने के एक दिन पहले अचानक मेरे कमरे में स्तालिन और मलोटोव हाजिर हुए. स्तालिन ने कहा लड़ाई-वड़ाई तो काफी हुई, एक अच्छा-सा समझौता भी हो गया है. आप तो कल चले ही जाएंगे, तो क्यों न आज हम थोड़ा मस्ती कर लें. आप मेरे मकान में चलिए.’
चर्चिल आगे लिखते हैं, ‘मैंने सोचा रूस के महान तानाशाह जब अपने यहां आने का न्योता दे रहे हैं, तो जरूर आज कोई खास चीज देखने को मिलेगी.’
‘स्तालिन ने कहा, ‘आपको कोई बॉडीगार्ड ले चलने की जरुरत नहीं है, मेरे पास तो वैसे भी नहीं है, आप बस अकेले ही चले चलें मेरे साथ.’
‘हम क्रेमलिन के अन्दर जा रहे हैं, संतरियों का अभिवादन मिल रहा है. थोड़ी देर ही बाद एक छोटे, पीले से रंग के दोतल्ले मकान के सामने हमारी गाड़ी रुक गई. स्तालिन उस मकान की निचली मंजिल में मुझे ले गए.
‘उन्होंने बताया, ‘ऊपरी मंजिल में मेरे गुरु यानी ‘लेनिन’ रहते थे, इसलिए मैं उसका इस्तेमाल नहीं करता, बल्कि हमने उसे एक म्युजियम बनवा दिया है. निचली मंजिल में तीन कमरे हैं, एक में मैं और मेरी पत्नी, दूसरे में बेटी रहती है और तीसरे में पार्टी सदस्यों के बैठकी चलती है.’
चर्चिल लिखते हैं, ‘मुझे तो यह सब सुन कर एक जोर का झटका लगा. महान रूस का महान तानाशाह केवल तीन कमरों के फ्लैट में रहता है. उन तीनों में से भी केवल एक ही कमरा उनके और उनकी पत्नी के लिए अलग से रखा हुआ है.’
‘बहरहाल स्तालिन ने कहा, ‘मुझे कुछ वक्त के लिए इजाजत दे दें, मुझे आपके लिए खाना बनाना है.’
‘मैंने पूछ ही लिया, ‘आपके पास कोई रसोइया नहीं है..?’
‘स्तालिन ने कहा नहीं, ‘मैं और मेरी पत्नी मिलकर खाना बनाते हैं.’
‘मेरे लिए फिर एक झटका ! महान रूस का महान तानाशाह अपना खाना खुद बनाता है..!
चर्चिल आगे लिखते हैं कि इस पर मैंने उनसे कहा, ‘अच्छी बात है. तो फिर आज आपकी पत्नी अकेले ही खाना बना ले और आप मेरे पास बैठ जाएं.’
‘जैसे इतना ही शॉक काफी नहीं था, अभी तो और भी हैरान होना बाकी था.
‘स्तालिन ने कहा, ‘माफी चाहता हूं, मैं लाचार हूंं. पत्नी घर पर नहीं हैं, कारखाने गई हैं काम करने. कपड़ा मिल में काम करती हैं. शाम को पांच बजे छुट्टी होगी, तब घर आएंगी.’
‘यह सुनकर मैं तो बिल्कुल चारों खाने चित्त हो गया. ग्रेट डिक्टेटर की पत्नी कारखाने में काम करती हैं !’
आज जब एक टुच्चा-सा व्यक्ति किसी भी पद पर चुनकर आता है, उसके बंगले, महल चंद वर्षों में ही जनता के धन को लूटकर तैयार हो जाता है. यहां तक कि वह राजभोग और अय्याशी का नया-नया कीर्तिमान स्थापित करने लगता है. वहीं महान स्टालिन अपने साधारण से श्रमसाध्य जीवनशैली को अपनाकर सर्वहारा का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया. आखिर सर्वहारा वर्ग अपने महान शिक्षक स्टालिन पर यों ही रश्क नहीं करता.
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