अच्छा किया तमिल कवयित्री
सुकीरथरणी ने
जो अडानी समूह द्वारा प्रायोजित देवी पुरस्कार
लेने से साफ इंकार कर गयीं
नहीं तो वह उन्हें भी अपनी जागीर समझता
उनसे कहता
मुझे कविता में रचो
बखानो मेरे नायकत्व को
आपको लग सकता है
कि मैं कुछ बढ़ा चढ़ाकर कह रहा हूं
लेकिन आप उसे नहीं जानते
संसद में सुनिए उसे
एक सिलेंडर देकर वह हमें अपना
ज़रख़रीद ग़ुलाम समझ रहा है
सच को सच
और झूठ को झूठ नहीं कहनेवाला
बेगैरत इंसान समझ रहा है
अपना तरफदार समझ रहा है
जनता नहीं बिका हुआ गवाह समझ रहा है
बसंत के हत्यारे ने
पूरी फरवरी बर्बाद कर दी
अपने शातिर दिमाग़ से
एक चौदह तारीख ही नहीं थी
पूरे अट्ठाइस दिन थे यहां
प्रेम बचाने के
ले जाओ अपना सिलेंडर
जो उल्टा पड़ा है कोने में उस ओर
अपना नल भी लेते जाओ
जिसमें जल कभी आया ही नहीं
और घर का क्या है
कहीं दीवारें हैं तो छत नहीं
दरवाज़े हैं तो खिड़की नहीं
कहीं कहीं तो कुछ भी नहीं
मेरा शरीर
मेरा घर है
और आत्मा मेरा जल
यह जो आग है
तुम्हारे पास
उसे तुमने मुझसे ही चुरायी है
ईमानदारी की बात तो यह है
कि तुम्हें बहुत पहले ही
देश के नक्शे से बाहर
कर दिया जाना चाहिए था
- रंजीत वर्मा
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