जगदीश्वर चतुर्वेदी
साइबर युग में हिंदी दिवस का वही महत्व नहीं है जो आज से चालीस साल पहले था. संचार क्रांति ने पहलीबार भाषा विशेष के वर्चस्व की विदाई की घोषणा कर दी है. संचार क्रांति के पहले भाषा विशेष का वर्चस्व हुआ करता था, संचार क्रांति के बाद भाषा विशेष का वर्चस्व स्थापित करना संभव नहीं है. अब किसी भी भाषा को हाशिए पर बहुत ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता.
अब भारत की सभी 22 राजकाज की भाषाओं का फॉण्ट मुफ्त में उपलब्ध है. भारतीय भाषाओं का साफ्टवेयर बनना स्वयं में भाषायी वर्चस्व की समाप्ति की घोषणा है. संचार क्रांति ने यह संदेश दिया है कि भाषा अब लोकल अथवा स्थानीय नहीं ग्लोबल होगी. भाषा की स्थानीयता की जगह भाषा की ग्लोबल पहचान ने ले ली है. अब प्रत्येक भाषा ग्लोबल है. कोई भाषा राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा आंचलिक नहीं है.
उपग्रह क्राति के साथ ही संचार क्रांति हुई और हम सब नए भाषायी पैराडाइम में दाखिल हुए हैं. भाषा की स्थानीयता खत्म हुई है. बहुभाषिकता का प्रसार हुआ है. अब विभिन्न भाषाओं में लोग आसानी के साथ संवाद कर रहे हैं. एक-दूसरे को संदेश और सामग्री संप्रेषित कर रहे हैं. अब हिंदी की स्थानीय अथवा राष्ट्रीय स्वीकृति की समस्या नहीं है बल्कि संचार क्रांति ने हिंदी और अन्य सभी भाषाओं को ग्लोबल स्वीकृति दिलायी है.
आज वे कंपनियां और कारपोरेट घराने हिंदी का कारोबार करने के लिए मजबूर हैं, जो कभी यह मानते थे कि वे सिर्फ अंग्रेजी का ही व्यवसाय करेंगे. इस प्रसंग में रूपक मडरॉक के स्वामित्व वाले ‘न्यूज कारपोरेशन’ का उदाहरण देना समीचीन होगा. इस कंपनी की प्रतिज्ञा थी कि वह समाचारों का सिर्फ अंग्रेजी में ही प्रसारण करेगा, और उसने सारी दुनिया में अंग्रेजी के ही न्यूज चैनल खोले, लेकिन भारत में आने के बाद पहलीबार उसे अपनी प्रतिज्ञा हिंदी के आगे तोड़नी पड़ी और स्टार न्यूज का हिंदी में पहलीबार प्रसारण शुरू हुआ.
हिंदी सत्ता और महत्ता का लोहा एमटीवी संगीत चैनल ने भी माना. एमटीवी के सारी दुनिया में अंग्रेजी संगीत चैनल हैं, इस कंपनी ने भारत में जब संगीत चैनल खोलने का फैसला किया तो हिंदी संगीत चैनल के रूप में एमटीवी आया. संचार क्रांति के दबावों के कारण ही भारत सरकार ने तकरीबन 1300 करोड़ रूपया भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेयर के निर्माण और मुफ्त सप्लाई पर खर्च किया है.
भाषाओं के उत्थान के लिए इतना ज्यादा पैसा पहले कभी खर्च नहीं किया गया. इसका सुफल जल्दी ही सामने आने वाला है. अब तेजी से हिंदी और भारतीय भाषाओं में भाषान्तरण हो रहा है. भाषाओं का पहले की तुलना में आज भाषान्तरण और संवाद तेजी से हो रहा है. आप सहज ही अपनी भाषा में लिखी सामग्री को किसी भी देशी विदेशी भाषा में रूपान्तरित कर सकते हैं. सिर्फ कम्प्यूटर चलाना आता हो और इंटरनेट कनेक्शन हो.
उपग्रह क्रांति ने भाषाओं रीयल टाइम में संवाद और संचार को जन्म दिया है. भाषाओं में तत्क्षण संवाद की संभावना पहले कभी नहीं थीं. व्यक्ति के मिलने के बाद ही संवाद होता था, अब तो व्यक्ति नहीं भाषाएं मिल रही हैं. भाषाओं के लिए संचार क्रांति रैनेसां लेकर आयी है.
उपग्रह क्रांति के कारण यह संभव हो पाया है कि आज भारतीय भाषाओं के टीवी और रेडियो चैनल विश्वभर में कहीं पर भी डीटीएच सेवाओं के जरिए देखे और सुने जा सकते हैं. इंटरनेट के जरिए भाषायी प्रेस सारी दुनिया में पढा जाता है. इस प्रक्रिया में भाषाओं की स्थानीयता खत्म हुई है. भाषाओं के रैनेसां का युग है. हिंदी आज स्वाभाविक तौर पर भारत की पहचान का मूलाधार बन गयी है. यह सब संचार क्रांति के कारण संभव हुआ है.
नाइन इलेवन की घटना के बाद अमेरिका में जिस तरह के सुरक्षा उपाय किए गए हैं, उसके कारण वहां पर सुपर कम्प्यूटर में सारी दुनिया के सभी भाषाओं के ईमेल और तमाम किस्म की सामग्री की छानबीन अहर्निश चलती रहती है. इसके कारण अमेरिका ने तय किया कि वह अपने देश के स्कूलों में चीनी, हिंदी, रूसी आदि भाषाओं के पठन-पाठन की खास व्यवस्था करेगा.
सुरक्षा कारणों और सैन्य वर्चस्व को बनाए रखने के लिहाज से अमेरिका में हिंदी के अध्यापन की व्यापक व्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है. न्यूज कारपोरेशन, डिजनी, सीएनएन, सोनी, एमटीवी आदि कंपनियां भारत के मीडिया बाजार में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले हिंदी में चैनल, प्रेस और मीडिया प्रोडक्ट लेकर आई हैं. अब वे देशी समाचारपत्रों में पैसा लगा रहे हैं.
बांग्ला के आनंद बाजार प्रकाशन, जागरण प्रकाशन, अमर उजाला प्रकाशन, हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया आदि में विदेशी कंपनियों का पूंजी निवेश इस बात का संकेत है कि भाषायी मीडिया में बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियां नतमस्तक होकर पैसा लगाने आ रही हैं और अंग्रेजी की तुलना में देशज भाषाओं की महत्ता को स्वीकार कर रही हैं. साथ ही मीडिया और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद का विस्तार हुआ है.
इस क्रम में हिंदी को स्वाभाविक बढ़त मिली है, अन्य भाषाएं भी इस प्रक्रिया में अपना विकास करेंगी. इस अर्थ में यह भाषाओं के नवजागरण का दौर है. हिंदी में अनुवाद और डबिंग का इतना व्यापक बाजार पैदा हुआ है, इसके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं था.
अनुवाद का ही तकरीबन 12 हजार करोड़ रूपये का भारत में बाजार है. कई हजार करोड़ रूपये का डबिंग का बाजार है. अभी तो कई बाल चैनल 24 घंटे हिंदी में डब किए गए कार्यक्रम दिखाते रहते हैं. विज्ञापनों में हिंदी विज्ञापन अकेले 7-8 हजार करोड़ के बाजार को घेरे हुए हैं. पहले अनूदित विज्ञापन होते थे, अब हिंदी के मौलिक विज्ञापन तैयार हो रहे हैं.
कोई भाषा कितनी ताकतवर है यह इस बात से तय होता है कि व्यापार और आर्थिक मीडिया उसमें है या नहीं. अंग्रेजी के बाद हिंदी अकेली भाषा है, जिसमें व्यापारिक चैनल और अखबार हैं, जैसे एनडीटीवी प्रोफिट,जी बिजनेस, सीएनबीसी आवाज आदि. इसी तरह बिजनेस स्टैंडर्ड, इकोनॉमिक टाइम्स जैसे आर्थिक अखबार सस्ते दामों पर हिंदी में निकल रहे हैं.
आर्थिक अखबार और टीवी चैनलों का हिंदी में आना, हिंदी में धड़ाधड़ इंटरनेट सामग्री का आना, तेजी से ब्लॉग संस्कृति का विकास इस बात का संकेत हैं कि हिंदी अब ग्लोबल भाषा है. सही अर्थों में देशी विदेशी नागरिकों की विश्वभाषा है. सैटेलाइट हिंदी चैनलों के करोड़ों दर्शक भारत के बाहर हैं. यह सब संभव हुआ है संचार क्रांति, उपग्रह क्रांति, कम्प्यूटर और डिजिटलाईजेशन के कारण.
कहने का तात्पर्य यह है हिंदी आज वास्तव अर्थों में ग्लोबल भाषा है. हिंदी मीडिया ग्लोबल स्तर पर संचार कर रहा है. यह हिंदी का नया पैराडाइम है. यह राज्य, कारपोरेट जगत और तकनीकी कैद से मुक्त एक नए रैनेसां की शुरूआत है. आओ हम संचार क्रांति का स्वागत करें और अपने को हिंदी संस्कृति के साथ ‘ई’ साक्षर भी बनाएं. ‘ई’ साक्षरता के बिना हम और हमारी भाषाएं नहीं बचेगी. आज प्रत्येक हिंदीभाषी की यह जिम्मेदारी है कि वह अपने को संचार क्रांति से जोड़े और अपने को ‘ई’ साक्षर बनाए.
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