Home कविताएं बुद्धिलाल पाल की कुछ कविताएं

बुद्धिलाल पाल की कुछ कविताएं

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प्रासंगिकता

कबीलाई युद्धों में
कबीले के सरदार
राजा होते हैं

जातियों में उनके सामंत
राजा होते हैं

धर्मों में उनके महानायक
राजा होते हैं

इन सबके बीच
गरीब आदमी
कहीं नहीं होता है

2

डर

डर
कुंडली मार कर
जब बैठ जाये
तब फुंफकारने लगता है
सांप जैसा

डर
जब पेट के अंदर सिकुड़ता है
तो सरपट भागता
खोजता सुरक्षित स्थान
कोई अंधेरी सुरंग
या बिल में घुस जाता है
चूहे जैसा

डर
डरकर समूह बनाता
या उकसाता लोगों को
कबीलाई युद्धों के लिए

डर
राजा भी बनना चाहता है
अपनी जीत के लिये
फासीवाद की तरह
उन्मादी होता है

डर
अपनी जीत पर
बहुत महत्वाकांक्षी
साम्राज्यवादी होता है

डर
खतरनाक होता है
डर के जबड़ों में
जहरीले दांत भी होते हैं
काट लेता है
निर्दोष को भी

डर कहता तो है
वह जंगल के खिलाफ है
पर बदहवाश होता है
रचता है दूसरा जंगल

डर को
डर दिखाकर
दिग्भ्रमित किया जाता है
डर की राजनीति
खूब फलती-फूलती है

डर से
मुक्ति आवश्यक है
डर से मुक्ति की चिंता करना
दुनिया की चिंता करना है

3

जनता

जनता !
जिसने कभी
कोई सुख भोगा नहीं

नून, तेल, लकड़ी के लिये
भागती रही, भागती रही
खटती रही उम्र भर
कोल्हू के बैल की तरह
उनके लिये
क्या आसक्ति क्या विरक्ति
क्या वानप्रस्थ

उनकी आंखें
मृत्यु देवता के दर्शन तक
रोटी में, लंगोटी में
छप्पर में टंगी रही

4

किस्सा

राजतंत्र की
मूल व्यवस्था
समर्थों की रक्षा होती है
जो पास हुए उनके हुए
उन्हे वर-वरदान
प्रमाणपत्र, पुरुस्कार भी

फेल हुए तो दुश्मन
निशाने पर शंबूक से

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