इतिहास और दर्शन शास्त्र के ज्ञान के अतिरिक्त उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों, सैन्य विज्ञान और तुलनात्मक भाषाशास्त्र का खोजपूर्ण अध्ययन किया था. मार्क्स की तरह ही वे एक अच्छे भाषाविद् थे. वह दस भाषाएं जानते थे और सत्तर वर्ष की आयु में उन्होंने नार्वे की भाषा सीखी ताकि इब्सन की कृतियों का मूल पाठ पढ़ सकें. उनके व्यक्तित्व और रूप-रंग का वर्णन, लेसनर ने – जो उन्हें अच्छी तरह जानते थे – इस प्रकार किया है :
‘एंगेल्स लंबे और छरहरे बदन के थे. उनकी चाल तेज़ और फुर्तीली थी. उनके वक्तव्य संक्षिप्त और सटीक हुआ करते थे और उनका आचरण सीधा और सैनिक प्रभाव लिए हुए था. वह अत्यंत वाक्-पटु और हंसमुख प्रकृति के थे. जो भी उनके संपर्क में आया उसने तुरंत महसूस किया कि वह एक असाधारण प्रतिभा वाले व्यक्ति के साथ बात कर रहा है.’
जीवन-पर्यन्त मार्क्स के साथ उनके सम्बन्ध अत्यंत स्नेहपूर्ण और अंतरंग रहे. अपनी चालीस वर्षों की मित्रता के दौरान तथा उन सफलताओं और निराशाओं के दौरान, जिनसे वे अनेक बार गुजरे, अनबन की छाया तक उनके बीच नहीं आई. एक मौके को छोड़कर जो ग़लतफ़हमी का परिणाम था, उनकी मित्रता कभी ढ़ीली नहीं पड़ी.
1845 में जब मार्क्स को पेरिस से निष्कासित कर दिया जाता है, तो एंगेल्स मार्क्स को लिखते हैं –
‘मैं नहीं जानता कि यह (चंदा में जमा की गई रकम) तुम्हारे ब्रसेल्स में टिकने के लिए पर्याप्त होगी या नहीं. यह कहने की ज़रूरत नहीं कि अपनी पहली अंग्रेजी कृति (इंग्लैण्ड में श्रमिक वर्गों की दशा) से मुझे आंशिक रूप में कुछ मानदेय मिलने की आशा है. वह राशि अत्यंत प्रसन्नता के साथ तुम्हारे अधिकार में दे दी जाएगी. कमीने लोग कम से कम अपनी दुष्टता द्वारा तुम पर आर्थिक तंगहाली लादने का आनंद तो नहीं उठा पाएंगे.’
मार्क्स के साथ उनकी मित्रता बेमिसाल थी. वह सदा मार्क्स की हर तरह से सहायता करने को तैयार रहते थे. 1881 में मार्क्स की पत्नी जेनी और उनकी पुत्री बीमार पड़ी. मार्क्स अपनी पत्नी के साथ जब पेरिस गए (उनकी पत्नी की अपनी पुत्रियों से यह आखिरी मुलाक़ात थी) तो एंगेल्स ने उन्हें लिखा कि वह बताएं कि उन्हें किस चीज़ की आवश्यकता है. जितनी भी रकम की ज़रूरत हो, बताने में वह तनिक भी न हिचकें.
29 जुलाई 1881 को एंगेल्स ने लिखा – ‘तुम्हारी पत्नी को किसी भी चीज़ से बंचित नहीं रखा जाना चाहिए. वह जो कुछ भी चाहती हैं और जो कुछ तुम समझो कि उन्हें आनंद दे सकता है, उन्हें ज़रूर मिलना चाहिए.’
एंगेल्स सदा बहुत विनम्र रहते थे. वे अपने सत्तरवें जन्मदिवस पर बधाइयों के सम्बन्ध में लिखते हैं – ‘काश ! यह सबकुछ खत्म हो जाता. मैं जन्मदिन मनाने की मनोदशा में तनिक भी नहीं हूं … और तमाम बातों के बावजूद, मैं तो केवल मार्क्स की प्रसिद्धि का लाभ उठा रहा हूं.’
एंगेल्स के व्यक्तित्व के बारे में चार्टिस्ट नेताओं में से एक और चार्टिस्ट पत्र ‘नॉर्दर्न स्टार’ के संपादक जूलियन हार्ने लेसनर के शब्द :
‘मैं उनसे परिचित रहा हूं. वह मेरे मित्र थे और कई वर्षों तक यदाकदा मुझे पत्र लिखते रहे. 1843 में वह ब्रैडफोर्ड से लीड्स आए और नॉर्दर्न स्टार कार्यालय में मेरे सम्बन्ध में पूछताछ की … मैंने प्रायः बालसुलभ चेहरेवाले एक लंबे और भव्य युवक को अपने सामने खड़ा पाया. जर्मनी में शिक्षा के बावजूद उस समय उनकी अंग्रेजी प्रायः त्रुटिहीन थी.
‘एंगेल्स ने मुझे बताया कि नॉर्दर्न स्टार के वह नियमित पाठक हैं और अत्यंत दिलचस्पी के साथ चार्टिस्ट आंदोलन को देख रहे हैं. इस तरह 32 वर्ष पहले हमारी मित्रता शुरू हुई. अपने सारे काम और कठिनाइयों के बावजूद, एंगेल्स ने अपने मित्रों को याद रखने, उनको सलाह – और आवश्यकता पड़ने पर सहायता – देने के लिए सदा समय निकाला.
‘उनके अथाह ज्ञान और प्रभाव ने उन्हें कभी घमंडी नहीं बनने दिया. इसके विपरीत, 55 वर्ष के बाद भी वह उतने ही विनम्र और दूसरे के काम के श्रेय को स्वीकार करने में उतने ही तत्पर थे, जितने 22 वर्ष की उम्र में. वह बेहद मेहमाननवाज़ और चुटकी लेने वाले थे. उनका मज़ाक संक्रामक रोग की तरह किसी को अछूता नहीं छोड़ता था. वे आतिथ्य सत्कार की आत्मा थे. अपने अतिथियों को प्रसन्न रखने के लिए – जिसमें उस समय अधिकतर ओवेनवादी, चार्टिस्ट, श्रमिक संघ वाले और सोसलिस्ट थे – वह सदा तत्पर रहते थे.’
1893 में उन्होंने जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया की यात्रा की. ऐसे आंदोलन के, जो प्रतिदिन शक्तिशाली होता जा रहा था, संस्थापक, नेता और पथ-प्रदर्शक होने के नाते उनका हार्दिक और ज़ोरदार स्वागत होना स्वाभाविक था. इसके बारे में 7 अक्टूबर 1893 को एक पत्र में उन्होंने जो कुछ लिखा उसकी विनम्रता द्रष्टव्य है. वह लिखते हैं –
‘सचमुच यह लोगों की सहृदयता का सुफल था, परंतु यह मेरे अनुरूप नहीं है. मैं प्रसन्न हूं कि यह समाप्त हो गया है. अगली बार मैं लिखित वादा करा लूंगा कि मुझे जनता के सामने परेड कराने की आवश्यकता नहीं … मैं जहां कहीं भी गया, अपने स्वागत की तैयारी के पैमाने को देखकर चकित रह गया और अबतक चकित हूं. इस तरह का इंतज़ाम तो संसद सदस्यों के लिए छोड़ देना चाहिए – किन्तु मेरे लिए यह उपयुक्त नहीं.’
तो कुछ ऐसे थे विश्व सर्वहारा के महान शिक्षक और प्रिय नेता – फ्रेडरिक एंगेल्स !
(सारे अंश जेल्डा के. कोट्स की पुस्तक ‘फ्रेडरिक एंगेल्स : जीवन और कृतित्व’ से )
- आदित्य कमल
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