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लोहिया और जेपी जैसे समाजवादियों ने अछूत जनसंघ को राजनीतिक स्वीकार्यता दी

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लोहिया और जेपी जैसे समाजवादियों ने अछूत जनसंघ को राजनीतिक स्वीकार्यता दी
लोहिया और जेपी जैसे समाजवादियों ने अछूत जनसंघ को राजनीतिक स्वीकार्यता दी
Subrato Chatterjeeसुब्रतो चटर्जी

नागार्जुन इतने बड़े समाजवादी जनकवि थे. जब उनसे पूछा गया कि वे फ़ासिस्ट संघियों के समर्थन में क्यों रहे, तो उनका जवाब था कि ‘अगर संघ फ़ासिस्ट है तो वे भी फ़ासिस्ट हैं.’ ये होता है लोहियावादी समाजवादी का असल चरित्र.

डॉ. राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण जैसे समाजवादियों ने जिस अछूत समझे जाने वाले जनसंघ को राजनीतिक स्वीकार्यता प्रदान की थी, उसी कड़ी में नीतीश कुमार हैं. आज जब मोदी और शाह ने भाजपा को अछूत बना दिया है, देखिए कि कौन लोग उसे अपना रहे हैं.

मुलायम सिंह यादव का मोदी को दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के आशीर्वाद को भी आप इसी कड़ी में जोड़ सकते हैं और मायावती के खुले समर्थन को भी.

दरअसल राम मनोहर लोहिया का समाजवाद नेहरू घृणा से उपजी हुई एक ऐसी कुंठा पर आधारित थी कि इसे आप संघियों की नेहरू घृणा से जोड़ कर देखेंगे तो परिदृश्य स्पष्ट हो जाता है. भारत के तथाकथित समाजवादी आंदोलन की दो मुख्य धाराएं रहीं हैं, एक राम मनोहर लोहिया वाली और दूसरी आचार्य कृपलानी वाली.

आचार्य कृपलानी वाली धारा से कांग्रेस के युवा तुर्क चंद्रशेखर भी प्रभावित थे और लालू यादव भी हैं. इसलिए ये लोग कभी भी भाजपा और संघ की सांप्रदायिक राजनीति के साथ आपको खड़े नहीं मिलेंगे. आचार्य कृपलानी की लाईन नेहरू घृणा पर आधारित नहीं थी, इसलिए वे वामपंथ के खिलाफ भी नहीं थे.

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कौन क्यों भाजपा और संघ के साथ खड़ा है, इसे समझने के लिए बस इतना ही समझना ज़रूरी है. एक और बात समझने की ज़रूरत है और वह यह है कि समाजवादी पलटू राम लोगों के भरोसे भाजपा 24 का चुनाव नहीं जीत पाएगी. कारण यह है कि ऐसे समाजवादी जनता में अपनी साख खो चुके हैं.

भाजपा न ही नीतीश कुमार के सहारे बिहार जीत पाएगी और न ही जयंत चौधरी के सहारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश. भाजपा चुनाव को इवीएम धांधली, वोटर लिस्ट में हेर फेर, विपक्षी वोटरों को जबरन बूथ पर जाने से रोक कर और कठपुतली चुनाव आयोग से ही चुनाव जीतने की अपेक्षा कर सकती है.

नीतीश और जयंत के भाजपा के साथ जाने से विपक्षी वोट नहीं बंटेंगे, वे सब के सब भाजपा के विरुद्ध जो जहां मज़बूत है, उसे वोट दे कर टैक्टिकल वोटिंग करेंगे.

सवाल ये है कि जनता अपना धर्म निभाएगी, लेकिन क्या कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों में सरकार की कारगुज़ारियों को जनता के समक्ष लाने की प्रतिबद्धता है ? मुझे तो राहुल गांधी के सिवा किसी में कोई दम नहीं दिखता है, चाहे वह दूसरे कांग्रेसी ही क्यों न हो.

इधर सुप्रीम कोठा संविधान के प्रस्तावना (preamble) से धर्म निरपेक्षता और समाजवाद (secular and socialist) शब्दों को तकनीकी आधार पर हटाने की तैयारी में है. सोच लीजिए, अगर भाजपा 24 का चुनाव जीत गई तो कैसा हिंदू राष्ट्र आपके लिए इंतज़ार कर रहा है !

कौन कहता है कि संविधान बदलने के लिए दो तिहाई मेजरिटी की ज़रूरत है ? यह काम तो एक समझौतावादी और भ्रष्ट न्यायपालिका (compromised and corrupt judiciary) भी कर सकती है, जिसका नारा है – सत्यमेव जयते !

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