सोता हुआ आदमी
शोर नहीं मचाता
नारे नहीं लगाता
प्रतिवाद की मुठ्ठियां बांधे
सड़कों पर नहीं निकलता
सोता हुआ आदमी
किसी को नहीं खटकता
कतार में खड़े होकर वह
अपनी बारी का ईंतज़ार करता
चाहे वोट देने का हो
या राशन उठाने का
वह गुस्से में नहीं आता
किसीका कुछ नहीं बिगाड़ता
कोई उसको छेड़ नहीं पाता
कोई उसको जगा नहीं पाता
किसीकी तारीफ़ या उलाहना
उसके कानों में नहीं पड़ता
फिर भी एक दिन
रात के तीसरे पहर में
ठीक सुबह होने से पहले
बेमौत मारा जाता है
वही सोता हुआ आदमी
- सुब्रतो चटर्जी
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