सौमित्र राय
सिलक्यारा टनल में 41 मजदूरों को दफन करने की साज़िश नवयुग इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड ने रची थी. बीते 15 दिन ने तमाशा देख रहा हूं. बंदरों की तरह सब उछल–कूद कर रहे हैं, लेकिन किसी पत्तलकार (गोदी पत्रकार) की हिम्मत नहीं हो रही है यह बोलने की कि अदानी सेठ ने 2020 में नवयुग को खरीदा था. भयंकर कमज़ोर कलेजा है पत्तलकारों का.
नवयुग इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और उसके मालिक गौतम अदानी की पोल खुलते ही उत्तरकाशी के सिलक्यारा में तम्बू गाड़े तमाम पत्तलचाट भाग खड़े हुए हैं. सिलक्यारा टनल हादसे का असल जिम्मेदार गौतम अदानी है. नरेंद्र मोदी सहभागी है. ठीक उस मोरबी ब्रिज हादसे की तरह, जिसका जिम्मेदार एक घड़ीसाज़ था.
हां, तो कहानी कुछ यूं है– 26 अक्टूबर 2018 को इनकम टैक्स ‘नवयुग इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड’ के दफ्तर पर छापा मारता है. केस वहीं रफा–दफा कर दिया जाता है. कारण आप जानते हैं. लेन–देन कितना, किसको–यह भी जानते ही होंगे. दो साल बाद, जुलाई 2020 को भारत का महालेखा नियंत्रक अदानी पोर्ट्स को नवयुग इंजीनियरिंग के 75% शेयर्स खरीदने की अनुमति देता है. 2021 को गौतम अदानी इस कंपनी के 100% शेयर्स खरीद लेता है. इस तरह नवयुग इंजीनियरिंग देश की मल्टी करोड़ कंपनी बन जाती है.
हैदराबाद की यह कंपनी अपने बाप अदानी और देश के प्रधान सेवक की मेहरबानी से चुनावी साल में अरबों के ठेके जुगाड़ लेती है. अगस्त 2023 में नागपुर–मुंबई समृद्धि एक्सप्रेस वे पर ठाणे के पास एक क्रेन 20 इंजीनियर, मजदूरों पर जा गिरती है. सारे मजदूर मारे जाते हैं. दलाल गोदी मीडिया, एनजीओ और मजदूर संगठन चूं तक नहीं करते. कोई उस हादसे के पीछे नवयुग इंजीनियरिंग की काबिलियत और अदानी के पैसे, प्रधान सेवक की भूमिका पर कुछ नहीं बोलता. कोई जिम्मेदारी नहीं. कोई एक्शन नहीं.
पनौती राज के श्रम कानूनों में मजदूर जानवर बना दिए गए हैं. न वे न्यूनतम मजदूरी मांग सकते हैं, न छुट्टी और न हड़ताल कर सकते हैं. उसी नवयुग ने सिलक्यारा टनल बनाई है. चार धाम प्रोजेक्ट भी उसी को मिला है. पनौती के नाम से मशहूर प्रधान सेवक ने नवयुग को पहाड़ खोदने का ठेका दिया है यानी उत्तराखंड को तबाह करने का. 41 मजदूरों की जिंदगी दांव पर रखकर तमाशा, इवेंट–जो कहें, 17 दिन से चल रहा था. जिम्मेदारी किसकी है ?
ये सिर्फ हादसा नहीं, नवयुग के पीछे खड़े अदानी और प्रधान सेवक की आपराधिक गलती है. ऐसे पच्चीसों बड़े प्रोजेक्ट्स नवयुग के पास हैं, यानी अदानी के पास. लाशें बिछ रही हैं, जिंदगियां दांव पर हैं. घर की नौकरानी के एक दिन छुट्टी लेने पर, दवा–इलाज़ के लिए पैसे मांगने पर जानवर बन जाने वाला भारतीय समाज चुपचाप तमाशा देख रहा था. वही पाखंडी, दोगला समाज आज मजदूरों की जिंदगी के लिए दुआ कर रहा था.
कथित बुद्धिजीवी सुरंग के मुहाने से लाइव रिपोर्टिंग कर रहे हैं. गोदी मीडिया के दलाल लाइट, कैमरा, एक्शन के साथ रोज बकवास करते हैं और प्रधान सेवक तेजस में कैमरा बिठाकर उड़ रहे हैं. बस, मजदूर अंधेरी सुरंग में धंसते, फंसते, मरते जा रहे थे. यही इस देश का प्रपंच है. लेकिन, इस आपराधिक कृत्य में समाज भी प्रधान सेवक, अदानी के साथ भागीदार है.
फिर भी कांग्रेस और उनके महान राहुल गांधी ऐसे सभी मुद्दों पर चुप रहेंगे. कांग्रेस की एक भी गारंटी मजदूरों के लिए नहीं है. श्रम कानून की पाश्विकता को खत्म करने की बात जिस दिन राहुल ने कर ली, चंदा आना बंद हो जायेगा. इस दोगलेपन का नतीज़ा सबको भुगतना होगा.
सोशल मीडिया के दबाव में एक बार फिर अदानी सेठ को झूठ बोलना पड़ा. सिल्क्यारा टनल त्रासदी के जिस मामले में एफआईआर हुई है, वह नवयुग इंजीनियरिंग और एक अन्य कंपनी के नाम पर है. नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड अदानी सेठ की कंपनी है, यह बात कागजों पर साबित होती है. और खुद प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी इस मौत की सुरंग का ठेका देने के आरोपों से नहीं बच सकते. चाहे दोनों रोज सैकड़ों झूठ बोलेंं, कागज झूठ नहीं बोलेंगे. सारे लिंक हाजिर हैं. गिरफ्तारी के डर से अदानी डर गया है. दम हो तो लड़ ले कोर्ट में.
418 घंटे की उछल–कूद और 21 घंटे की खुदाई, सब सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि अदानी सेठ की सुरंग तबाह न हो जाए. अब आगे इस नपुंसक समाज को एक और सिलक्यारा का इंतजार रहेगा.
ये चांद पर पहुंचने से भी बड़ी तस्वीर है. इसलिए, क्योंकि ये रैट माइनिंग, यानी चूहों की तरह खुदाई से मुमकिन हुआ है. मेघालय और झारखंड में रैट माइनिंग होती थी. कोयले की चोरी के लिए सुरंगें खोदी गई. एनजीटी ने बैन लगाया लेकिन इंसानी हाथों से खुदाई का यह तरीका आज भी कायम है. भीमकाय मशीनें नहीं, सिर्फ फावड़ा और कुदाल. एनडीएमए और सेना ने इसे याद रखा. आप भी याद रखिए, क्योंकि सरकार बेबस है. सिलक्यारा की तरह भारत अंधेरी सुरंग में धंसता जा रहा है. बाहर आने के लिए चूहे की तरह खोदना सीखिए. पनौती राज में कुछ भी नामुमकिन नहीं.
कोई वकील खान था, तो कोई मुन्ना कुरैशी और कोई अब्दुल. झारखंड के उन दलितों को भी न भूलें, जिन्होंने फावड़ा–कुदाल लेकर अपने हाथों से सुरंग खोद डाली. भारत का हिंदू समाज मुसलमानों से नफरत करता है. दलितों, आदिवासियों पर पेशाब करता है. इन सबके बावजूद 41 जिंदगियों को बचाने वाले इन हीरोज को देश आज सलाम कर रहा है. नहीं, अब्दुल सिर्फ़ पंक्चर नहीं बनाता, वह जिंदगी बचाता है. कहां थे वे आरएसएस वाले स्वयंसेवक ? क्यों नहीं घुसे सुरंग में ? जान लेने वाले जान कैसे बचाएंगे ?
कोई खान है, कोई कुरैशी
काम बस जान बचाना है
तुम तो रोज़ उनकी जान ले रहे हो
पालतू मीडिया
तुम हर बार गलत क्यों हो ?
क्योंकि तुम फर्क करते हो
इंसानों में, अपने मालिक के कहे पर,
क्योंकि तुम पालतू हो
थू है तुम पर !
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