ईसा के बाद भारत में दलित-पिछड़े (90%) शूद्र वर्गों के लोग, 16वीं शदी के मुगल काल तक गुलाम रहे इन्हें गुलामी महसूस नहीं हुई क्योंकि मुगलों के प्रशासन में बैठे हुए लोग इन वर्गों से आसानी से गुलामी कराते रहे, जिन्हें कभी कठिनाई नहीं हुई. लेकिन जब अंग्रेजो को भारतीय दासता के दलदल के बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने दलित-पिछड़े वर्गों को गुलामी से मुक्त कराने के लिये निम्नलिखित प्रयास किया –
- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा शूद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया.
- 1773 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी.
- 1804 अधिनियम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई. (पहले लडकियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपकाकर, मां के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था.)
- 1813 में ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अधिकार दिया.
- 1813 में दास प्रथा का अंत कानून बनाकर किया.
- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया, 1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था. ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी और शुद्र को कठोर दंड दिया जाता था, अंग्रेजों ने सजा का प्रावधान समान कर दिया.
- 1819 में अधि- नियम नम्बर 7 द्वारा द्वारा शूद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई.
- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक – (देवी देवता को प्रसन्न करने के लिए शुद्रों, स्त्री व् पुरुष दोनों को सिर पटक पटक कर चढ़ा देता था.)
- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नहीं रखा जा सकता है.
- 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ. कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का प्रमुख उद्देश्य था.
- 1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक. पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है, यह बच्चा श्रेष्ठ न हो जाये इसलिए पैदा होते ही गंगा को दान करवा देते थे.)
- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय कानून बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया, (और आज की सरकारों ने शिक्षा का निजीकरण करके वापस आम लोगों से शिक्षा का अधिकार छीन लिया है.)
- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया.
- दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत किया.
- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई. 1921 को जातिवार जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी. यह प्रथा आज भी दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है.
- 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया.
- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया.
- 1854 में अंग्रेजों ने तीन विश्वविद्यालय कलकत्ता मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये. 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया.
- 6 अक्टूबर 1860 को अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया.
- 1863 अंग्रेजों ने कानून बनाकर चरक पूजा पर रोक लगा दिया. (आलिशान भवन एवं पुल निर्माण पर शुद्रों को पकड़ कर जिन्दा चुनवा दिया जाता था. इस पूजा में मान्यता थी क़ि भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें.)
- 1867 में बहू विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित किया.
- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की. यह जनगणना 1941 तक हुई, लेकिन 1948 में पण्डित नेहरू ने कानून बनाकर जातिवार गणना पर रोक लगा दी.
- 1872 में सिविल मैरिज एक्ट द्वारा 14 वर्ष से कम आयु की कन्याओं एवम् 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों का विवाह वर्जित करके बाल विवाह पर रोक लगाई.
- अंग्रेजों ने महार और चमार रेजिमेंट बनाकर इन जातियों को सेना में भर्ती किया.
- रैयत वाणी पद्धति अंग्रेजों ने बनाकर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया.
- 1918 में साऊथ बरो कमेटी को भारत में अंग्रेजों ने भेजा. यह कमेटी भारत में सभी जातियों का विधि मण्डल (कानून बनाने की संस्था) में भागीदारी के लिए आया था.
- अंग्रेजों ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया.
- 1919 में अंग्रेजो ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी और कहा था की इनके अंदर न्यायिक चरित्र नही होता है.
- 25 दिसम्बर 1927 को डा. अम्बेडकर द्वारा मनु समृति का दहन किया.
- 1 मार्च 1930 को डा अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर (नासिक) प्रवेश का आंदोलन चलाया.
- 1927 को अंग्रेजों ने कानून बनाकर शुद्रों के सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार दिया.
- नवम्बर 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की जो 1928 में भारत के अछूत लोगों की स्थिति का सर्वे करने और उनको अतिरिक्त अधिकार देने के लिए आया लेकिन भारत के शूद्र वर्ण के लोगों को अंग्रेज अधिकार न दे सके इसलिए इस कमीशन के भारत पहुंचते ही विरोध के कारण साइमन कमीशन अधूरी रिपोर्ट लेकर वापस चला गया.
- 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजों ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिसमें प्रमुख अधिकार निम्न दिए – A. वयस्क मताधिकार. B. विधान मण्डलों और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतों को आरक्षण का अधिकार. C. सिक्ख, ईसाई और मुसलमानों की तरह अछूतों (SC/ST) को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला. जिन क्षेत्रों में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उनका चुनाव केवल अछूत ही करेगें. D. प्रतिनिधियों को चुनने के लिए दो बार वोट का अधिकार मिला, जिसमें एक बार सिर्फ अपने प्रतिनिधियों को वोट देंगे दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देगे.
- 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरुद्ध डा. अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई, जिसके बाद अंग्रेजों ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया.
- अंग्रेजों ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 तक डाॅ. अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया. मजदूरों को डा. अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया.
- 1937 में अंग्रेजों ने भारत में प्रोविंशियल गवर्नमेंट का चुनाव करवाया.
- 1942 में अंग्रेजों से डा. अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतों एवं पिछङों में बांट देने के लिए अपील किया, अंग्रेजों ने 20 वर्षों की समय सीमा तय किया था.
- अंग्रेजों ने शासन प्रसासन में ब्राह्मणों की भागीदारी को 100% से 2.5% पर लाकर खड़ा कर दिया था.
जिस दलदल में धंसे हुए दलित-पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये जीवन जीने के लिये हक-अधिकार दिया, उन्ही के खिलाफ यह वर्ग मोर्चा खोल दिया और आज फिर जिनके चंगुल में फंसकर अपना भविष्य तलाश रहे हैं शत प्रतिशत हैं कि यह वर्ग पुनः गुलामी की दलदल में धंसेगा. वह फिर से इन सभी प्रथाओं और परम्पराओं के अधीन अपने भविष्य को ले जाने में लगा हुआ है.
- अश्विन सिंह
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