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मंदिरों में श्लोक, भजन, दानकर्ताओं के नाम उर्दू लेखन में

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मंदिरों में श्लोक, भजन, दानकर्ताओं के नाम उर्दू लेखन में
कनॉट प्लेस, नई दिल्ली का शिव मंदिर

आरएसएस की बुनियाद ही नफरत पर आधारित है. वह हर अच्छी चीजों, अच्छे विचारों और उसके प्रणेताओं से नफरत करती है. दरअसल वह जिस मनुस्मृति आधारित ब्राह्मणवादी समाज की स्थापना करना चाहता है, वह नफरत पर टिका हुआ है. आज आरएसएस और उसका अनुषांगिक संगठन जब देश की सत्ता पर काबिज हो चुका है, उसने समाज के हर वर्ग के बीच नफरतों के जिस बीज को बोया था आज वह बीज वटवृक्ष बनकर लहलहा रहा है.

आरएसएस के नफरत का ब्राह्मणवादी वटवृक्ष न केवल मुसलमानों को निशाना बना रही है अपितु उसके ब्राह्मणवादी व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर मौजूद दलित, पिछड़ों, आदिवासियों, स्त्रियों को भी निशाना बना रहा है, जिसे वह शुद्र कहकर सम्बोधित करता है. मौजूदा समय में उसकी रणनीति एक-एक कर आगे बढ़ने की है, इसलिए वह अपने निशाना को मुसलमानों के खिलाफ केन्द्रित कर रखा है. ज्यों ही वह मुसलमानों को खत्म करने में सफल होगा, उसका अगला कदम शुद्र और आदिवासी होंगे.

मंदिरों में उर्दू लेखन

आरएसएस मुसलमानों के नाम पर उर्दू को निशाना बनाता आया है. उसका मानना है कि जहां उर्दू वहां मुसलमान. आरएसएस के इसी तर्क पर चला जाये तो भारत के अनेकों ऐसे मंदिर है जहां श्लोक, भजन ही नहीं बल्कि दानदाताओं के नाम तक उर्दू में दर्ज है. विवेक शुक्ला सोशल मीडिया के अपने पेज पर लिखते हैं –

कनॉट प्लेस के शिव मंदिर में श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना के लिए आना-जाना लगा रहता है. कुछ श्रद्धालु मंदिर के गेट पर संगमरमर के पत्थर पर लिखे शिव चालीसा को भी पढ़ रहे थे. उसके ठीक ऊपर एक पत्थर पर शिव मंदिर का इतिहास उर्दू और हिन्दी में लिखा है. दिल्ली के पांच-छह दशक पहले बने मंदिरों में उर्दू भी दिखाई देती है. उर्दू में श्लोक, भजन, दानकर्ताओं के नाम वगैरह लिखे होते हैं.

शिव मंदिर से दो-तीन किलोमीटर दूर मंदिर मार्ग पर है लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर), यहां पर भी उर्दू जगह-जगह दिखाई देती हैं. यहां के वाटिका क्षेत्र की दिवारों पर उर्दू में शिव पुराण और शिव चालीसा पढ़ा जा सकता है. महात्मा गांधी ने बिड़ला मंदिर का उदघाटन 12 मार्च, 1939 को इस शर्त पर किया था कि यहां पर दलितों के प्रवेश पर रोक नहीं होगी. उनकी शर्त मानी गई तो वे यहां आए. हां, वे उदघाटन के कार्यक्रम के बाद फिर कभी बिड़ला मंदिर में नहीं गए हालांकि वे इसके करीब बाल्मिकी मंदिर के एक कमरे में रहते थे. बाल्मिकी मंदिर में उर्दू देखने को नहीं मिलती.

दिल्ली-6 के नई सड़क में है रोशनपुरा. यहां पर चित्रगुप्त मंदिर है. यह प्राचीन मंदिर माना जाता है. इधर राधा की मूर्ति के नीचे इसे बनवाने वाले सज्जन बाबू शिव प्रसाद का नाम भी उर्दू में लिखा है. इस मंदिर के प्रति राजधानी के कायस्थ समाज की आस्था अटूट है. इसी में प्ले बैक सिंगर मुकेश ने भी शिवरात्रि और जन्माष्टमी में बहुत भजन गाए हैं. मुकेश का पुश्तैनी घर नई सड़क के नजदीक चहलपुरी में अब भी आबाद है.

मुकेश जिन दिनों मंदिर मार्ग के एम. बी. स्कूल में पढ़ा करते थे, वे तब बिड़ला मंदिर में भी जन्माष्टमी पर अपने मित्रों के साथ पहुंचकर अवश्य भजन सुनते-सुनाते थे. एक तरह से यहां से ही उनकी गायन की शुरूआत हुई थी. अब चलेंगे चांदनी चौक के कटरा नील में घंटेश्वर महादेव मंदिर है. यहां भी कोरोना के कारण, दो सालों के बाद शिवरात्रि मनाई गई. इधर भी उर्दू में अनेक धार्मिक इबारतें लिखी हुई हैं. अब भी कुछ बुजुर्ग इन इबारतों को देखकर कोई भजन आदि पढ़ते हुए मिल जाते हैं. पुरानी दिल्ली के खत्री कहीं चले जाएं पर वे घंटेश्वर महादेव मंदिर में मौका मिलते ही पहुंचते हैं. वे इधर आकर अपनी जड़ों से जुड़ते हैं.

कौन सा दिल्ली वाला होगा जिसने चांदनी चौक के गौरी-शंकर मंदिर के अंदर या बाहर से दर्शन ना किए हों. एक मान्यता है कि यह करीब 800 साल पुराना है. मराठा सैनिक आपा गंगाधर ने वर्ष 1761 में गौरी शंकर मंदिर के भवन का निर्माण करवाया. इधर भी दीवारों पर दानकर्ताओं के नाम और कुछ श्लोक उर्दू में लिखे मिलते हैं. गौरी और शिव की पूजा-अर्चना के लिए यहां सुबह 5 बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लगी होती हैं.

दिल्ली को शारदीय और चैत्र नवरात्रों में कालकाजी मंदिर में जाना पसंद है. यहां इस दौरान लाखों भक्त पहुंचने लगते हैं. बेशक, ये दिल्ली के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक हैं. आज जिस कालकाजी मंदिर को हम देखते हैं, उसका निर्माण सन 1764 में हुआ था. इसे तब मराठा शासकों ने बनवाया था. इसका विस्तार सन 1816 में किया गया था. यहां पर देवी की मूर्ति के आसपास भी कई श्लोक और भजन उर्दू में लिखे मिलेंगे.

जिस तरह आरएसएस गिरोह देश के तमाम ऐतिहासिक इमारतों में फर्जी तरीके से गुपचुप मूर्तियों को घुसा कर या शिवलिंग नुमा किसी भी संरचना को आधार बनाकर मंदिर होने का दावा कल तोड़फोड़ कर रहा है, बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी मस्जिद इसका ताजा उदाहरण है, और ताजमहल को मंदिर बताने का दावा जारी है.

इसी आधार पर अगर मुसलमान भी हिन्दू मंदिरों को मस्जिद होने का दावा करने लगे तो न जाने कितने सारे मंदिरों को मस्जिद में तब्दील करना पड़ जाये क्योंकि उर्दू मुसलमानों की भाषा है और बहुतेरे मंदिरों में उर्दू भाषा का इस्तेमाल किया गया है.

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