आरएसएस एवं तमाम हिन्दूवादी संगठन इस बात को छिपाते फिरते हैं कि पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान का ससुराल भारत के एक उच्च ब्राह्मण परिवार में था. शीला पंत उर्फ पंडित मैडम खान कुशाग्र बुद्धि की थी. उन्होंने कई उच्च राजनीतिक पदों पर कार्यरत रही है और महिलाओं के बुनियादी अधिकारों के लिए ताउम्र संघर्षरत रही थी.
13 फरवरी 1905 को पैदा हुई शीला पन्त, अल्मोड़ा उत्तराखंड की रहने वाली थी. उन्होंने अपनी पढ़ाई नैनीताल व लखनऊ से पूरी की. उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश उत्तराखंड क्षेत्र में शिक्षा क्षेत्र में भारी बदलावों के लिए चर्चित ईसाई मिशनरियों में से एक सर हेनरी रेम्जे के शिक्षा सुधारों की न केवल चर्चा थी बल्कि ब्रिटिश भारत में हेनरी शिक्षा सुधारों को आनन-फानन में लागू भी किया जा रहा था.
हालांकि इस मुहिम की आड़ में भारतीयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना ईसाई मिशनरियों का खास मकसद शामिल था. ब्रिटिश मिशनरियों के इसी शिक्षा सुधार कार्यक्रम के मुरीद तमाम लोगों ने क्रिश्चियन धर्म अपना लिया था, जिसमें अल्मोड़ा उत्तराखंड से शीला पन्त का परिवार भी शामिल था. क्रिश्चियन धर्म अपनाने के बाद अब ये शीला आयरीन पन्त हो गईं.
वर्ष 1927 में पटना बिहार में एक राजनीतिक आंदोलन के दरमियान इनकी मुलाकात उस समय के युवा क्रांतिकारियों में से एक लियाकत अली खान से हुई. शीला पन्त, लियाकत अली खान से पहली मुलाकात में ही उनके राजनीतिक तेवरों की कायल हो गई और वर्ष 1933 में शीला पन्त ने लियाकत अली खान से शादी कर ली. शादी के बाद इनका नाम ‘राना लियाकत खान’ हो गया.
भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद लियाकत अली खान को पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया. अक्टूबर 1951 में आतंकवादियो ने लियाकत अली खान को गोली मार दी और उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इस घटना से मैडम खान अंदर से टूट गई थी.
लियाकत अली खान के पास कोई पुश्तैनी संपत्ति भी नहीं थी, जिससे मैडम खान अपने दो बच्चों का पालन पोषण कर सकती. बैंक में पता किया तो लियाकत अली खान के अकाउंट में सिर्फ 300 सौ रुपए थे. इसके बाद पाक सरकार ने लियाकत अली खान के पारिवारिक भरण पोषण के लिए 2000 रुपए हर महीने देने के लिए सुनिश्चित किए.
मैडम खान अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक महिला सुधारवादी कार्यकर्ता थी. इन्होंने स्त्री संघर्षों व स्त्री आंदोलनों के मद्देनजर कई देशों का दौरा भी किया. जीवन के आखिरी दम तक मैडम खान महिलाओं के जीवन में बुनियादी हकों के प्रभावी दखल के लिए संघर्षरत रहीं. हालांकि ये पाक सरकार की तरफ से विश्वविद्यालयों से लेकर दूतावासों तक के प्रमुख पदों पर रहीं लेकिन इनकी छवि एक महिला आंदोलनकारी की ही बनी रही.
85 साल की उम्र में 30 जून 1990 को कराची के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से इनकी मृत्यु हो गई. अपने निधन से पहले पाकिस्तान की प्रथम महिला होने का रुतबा रखने वाली मैडम खान ने अल्मोड़ा उत्तराखंड में रहने वाले अपने भाई को पत्र लिखते हुए लिखा था-
‘मुझे पहाड़ी व्यंजनों की बहुत याद आती है बचपन में मडुवा (Raagi) की रोटी और दाड़िम (खट्टा अनार) की चटनी का स्वाद मुझे सबसे ज्यादा याद आता है, मैं आप सब लोगों के खुशहाल जिन्दगी के लिए दुआ करती हूं.’
- ए. के. ब्राइट
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