Home पुस्तक / फिल्म समीक्षा शापित कब्र के अंदर दस करोड़ लोग

शापित कब्र के अंदर दस करोड़ लोग

3 second read
0
0
794

शापित कब्र के अंदर दस करोड़ लोग

Manmeetमनमीत, यायावर

क्या कोई ऐसी सभ्यता हो सकती है, जिसके बच्चों, जवान, बूढ़ों और औरतों को इंसान मानने से ही इंकार कर दिया गया हो ? ये मान लिया गया हो कि अगर इन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाए तो इन्हें दर्द ही नहीं होगा. इनके अंदर संवेदना नहीं ही होगी और भावनायें तो बिल्कुल भी नहीं. आमतौर पर आज के वक्त में हमें कोई इस तरह का किस्सा सुनाये तो हम उसे तत्काल खारीज कर देंगे.

लेकिन ऐसा था। और ये सभ्यता कोई सैकड़ों, लाखों में नहीं बल्कि लगभग दस करोड़ लातिन अमेरिकी थे. एदुआर्दो गालियानों की किताब ‘ओपेन वेन्स ऑफ लैटिन अमेरिका’ का हिन्दी अनुवाद ‘लातिन अमरीका के रिसते जख्म पढ़ रहा हूं.’

‘ओपन वेन्स ऑफ लैटिन अमेरिका’ के हर पन्ने को पढ़ने के बाद बेचैनी इतनी बढ़ जाती है कि कुछ देर किताब को बंद करना मजबूरी-सी हो जाती है. एदुआर्दो की ये किताब, एक किताब भर नहीं है. ये एक जीवंत आरोप भी है उस सामंतवादी और सम्राज्यवादी समाज पर, जिसने लातिन अमेरिका के लगभग दस करोड़ जनता का इस कदर खून चूसा, कि वो महज चार सदियों में पचास लाख से भी कम हो गई.

अमेरिकी महाद्वीप से ठीक नीचे लातिन अमेरिकी परिक्षेत्र में 26 देश है, जिनमें, मुख्य रूप से क्यूबा, बालीविया, मैक्सिको, कोलंबिया, ब्राजिल, चीली, अर्जेटीना, वेनेज्यूला है. 14 वीं शताब्दी तक इन देशों की अपनी खुशहाल सभ्यतायें थी और अपने देवता.

लातिन अमेरिकावासी इसलिये भी खुश थे, क्योंकि उनके पास प्रकृति का दिया हुआ सब कुछ था. जो नहीं था, वो थी महत्वकांक्षायें लेकिन, एक अगस्त 1492 को एक दिशा से भटका हुआ जहाज लातिन अमेरिकी महाद्वीप पहुंचा. इस जहाज को स्पेन से जाना तो जापान था, लेकिन ये तुफान में दिशा भटक कर बिल्कुल विपरीत यहां पहुंच गया.

इस जहाज में था, स्पेनी सम्राज्य का शाही सेना का उप कमांडर और कैथोमिक चर्च का एजेंट क्रिस्टोफर कोलंबस. समुद्र किनारे जहाज से उतरते ही कोलबंस ने वहां की महिलाओं के कानों और हाथों में सोने-चांदी के अभूषण देखा तो भौंचका रह गया. वो सूखा मांंस और चमड़े की सप्लाई लेने जापान की यात्रा पर था लेकिन नियती को शायद कुछ और मंजूर था. उसने लौटकर ये बात अपने देश में सरकार को बताई. उसके कुछ समय बाद लैतिन अमेरिका में सेना उतार दी गई.

एक सभ्यता कितनी मासूम हो सकती है, वो इस बात से भी पता चलता है कि जब स्पेनिश सेना समुद्री किनारों में पहुंची तो उनके बड़े बड़े जहाजों को देखकर वहां के राजा ने सोचा कि साक्षात देवता आ गये है. स्पेनिश जवान इतने गौरे और उनके बाल सुनहरे थे कि लातिन लोगों ने उन्हें स्वर्ग से उतरे देवता समझा. स्पेनिश जवानों ने इन लोगों के पेट पर सटाकर अपनी बारूद भरी बंदूक से फायर किया तो भी इन्हें समझ नहीं आया कि ये हो क्या रहा है.

बहरहाल, उसके बाद शुरू हुआ लातिन अमेरिका में सोने और चांदी की लूट का चार सदी का काला अध्याय. लातिन अमेरिका के ही करोड़ों लोगों से पहले खाने खुदवाई गई. इस दौरान ही जहरीली गैस निकालने से लाखों लोग मारे गये. जब लोग खदानों के अंदर जाने से डरने लगे तो बंदूक के बल में उन्हें अंदर भेजा जाता थे. हालत इस कदर बुरे हो गये थे कि मां अपनी औलादों को खुद ही मार देती थी.

सैकड़ों फीट नीचे नंगे बदन मजदूर चट्टान तोड़ने जाता था. चट्टान तोड़कर अपनी नंगी पीठ पर मोमबत्ती जला कर ऊपर तक आता था. इस दौरान कई दब कर मर जाते थे. कोई भाग कर ऊपर आने की कोशिश करता था तो उसे गर्म तेल डाल कर मार दिया जाता था. जो बच गये वो मलेरिया, हेजा और फ्लेग से मर जाते थे.

जब चांदी और सोना खत्म हो गया तो फिर इन लोगों से कोको, रबर, गन्ना, कॉफी की खेती करवाई गई. ये वो ही वक्त था, जब यूरोप के कैथोलिक चर्च के जुल्म अपने चरम पर थे. स्पेनिश सेना के बाद यूरोप के तमाम सम्राज्यवादी देश यहां लूट के लिये पहुंचे. इन देशों के साथ कैथोलिक चर्च के पोप भी पहुंचे, जिन्होंने यहां पर धर्म परिवर्तन के नाम पर हत्याओं का नंगा नाच किया.

एक दूसरे के धर्म को सबसे ज्यादा हिंसात्मक ठहराने वाले भी इस किताब को पढ़कर जान सकते हैं कि क्यों आखिरकार सैकड़ों साल बाद फ्रांस की क्रांति की जरूरत पड़ी, जिसने धर्म और सत्ता को पहली बार अलग किया और एक आदर्श समाज की परिकल्पनाओं के बीज बोये, जिसका फल आज भारत भी खा रहा है.

बहरहाल, एदुआर्दो गालियानों का गुस्सा वाजिब है. असल में, ‘ओपेन वेन्स ऑफ लैटिन अमेरिका’ उन दस करोड़ लातिन अमेरिकियों का गुस्सा भी है, जो इतिहास की शापित क्रबों में दफन है. ओपेन वेन्स ऑफ लैटिन अमेरिका पूंजीवादी जुल्म का वो खूनी दस्तावेज भी है, जिसे पढ़कर धर्म और मुनाफे के कॉकटेल का असली रूप सामने भी आता है.

Read Also –

पुस्तक समीक्षा : पलामू की धरती पर 

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In पुस्तक / फिल्म समीक्षा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…