एक राजा अपनी प्रजा की हर आंख का हर आंसू पोंछना चाहता था. इरादा बहुत नेक था, इसलिए इसे फौरन लागू करना जरूरी था.
उसने यह संकल्प लिया तो पता चला कि आंसू तो उसकी आंखों से भी लगातार बहते रहते हैं. पहले उसे अपने आंसू पोंछने होंगे. तभी वह प्रजा की आंखों के आंसू पोंछने का अधिकारी बन सकता है.
उसने दो दरबारियों को अपने आंसू पोंछने के काम पर लगाया..एक दाहिनी आंख के आंसू पोंछता था, दूसरा बायीं आंख के.
दरबारी रोज आंसू पोंछ-पोंछ कर परेशान थे मगर राजा के आंसू थमते ही नहीं थे. राजा भी पुंछवा-पुंछवा कर थक चुका था.
‘संवेदनशील राजा’ ने महसूस किया कि जब उसकी अपनी आंखों में इतने आंसू हो सकते हैं, तो प्रजा का क्या हाल होता होगा ? इस हालत में क्या हर आंख का हर आंसू पोंछना संभव है ? नहीं.
एक ही उपाय है कि प्रजा की आंखें निकलवा दी जाएं ताकि न आंखें रहें, न आंसू !
- विष्णु नागर
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