यह प्रतीकात्मक तस्वीर है
जब कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) संसद में पेश की गयी अपनी रिपोर्ट में कहता है कि ‘‘यदि पड़ोसी मुल्कों से जंग की स्थिति पैदा हुई तो भारत के पास लगातार 10 दिन तक लड़ने के लिए भी आर्मामेंट नहीं है’’ तो यह सेना की कमजोर और हताशा को ही दर्शाती है, जिसे वर्तमान सर्वाधिक भ्रष्ट मोदी सरकार ने सेना के सामने पैदा कर दिया है. मोदी सरकार ने अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा (अंबानी-अदानी की सेवा करने में) साधने में सेना का भरपूर इस्तेमाल किया पर सेना को शर्मनाक हालात में भी ढकेल किया है. सेना के विभिन्न स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने के वजाय आरोप लगाने वाले सैनिकों की ही हत्या करने से लेकर बर्खास्त करने तक की पूरी प्रक्रिया ने सेना को देशवासियों की नजर में संदिग्ध बनाने का ही काम किया है.
परन्तु अब जब यह साफ हो गया है कि सेना की हालत इतनी खराब है कि वह महज 10 दिन भी लगातार युद्ध नहीं कर सकती तब ऐसे भी 56 ईंची सीना रखने का क्या फायदा ? वहीं जब एयर चीफ मार्शल जब यह कहते हैं कि ‘‘दो मोर्चो पर लड़ाई लड़ने के लए हमारे पास उतनी ताकत नहीं है, जितनी होनी चाहिए’’ तब यह भी साफ जाहिर हो जाता है कि युद्ध की हुंकारे भरना और युद्ध करना दोनों दो बाते हैं, जो भाजपाईयों को समझ में नहीं आती है और लगातार उग्र राष्ट्रवाद – जो वास्तव में नकली और शुद्ध ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद है, जिसमें देश की बहुतायत दलित, आदिवासी और मुस्लिमों का दमन और उत्पीड़न ही है – को हवा देते हुए कभी पाकिस्तान तो ललकारता है, जो आये दिन सैनिकों की बलि लेता रहता है तो वहीं चीन के साथ युद्ध के हुंकार भरता है.
चीन के साथ 1962 के युद्ध ने भारतीय सेना की जहां कमर तोड़ दी थी, वहीं बाद के प्रधानमंत्री शास्त्री और इंदिरा गांधी ने इस हार से सबक लेते हुए सैन्य ताकत को मजबूत किया. जो बाद में पाकिस्तान के साथ युद्ध में विजय के साथ सामने आया. परन्तु बाद की प्रक्रिया में शैनः-शैनः सेना लगतार कमजोर ही होती गई जो अटल बिहारी वाजपेयी के शासनावधि में साफ तौर पर जाहिर हुई. दरअसल कारगिल युद्ध में भारत की शर्मनाक हालत ने सेना को बदहवास करके रख दिया. हालत इतनी ज्यादा खराब हो गई थी कि अमेरिका को दखलंदाजी कर युद्ध को रोकवाना पडा.
कैग की ससंद में पेश वर्तमान रिपोर्ट के मुताबिक आर्मी हेडक्वाॅर्टर ने 2009 से 2013 के बीच खरीददारी के जिन मामलों की शुरूआत की थी, उसमें से अधिकतर जनवरी, 2017 तक पेंडिंग थे. वही आॅर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की ओर से सप्लाई किये जाने वाले गोला-बारूद की गुणवत्ता और मात्रा में बेहद कमी दर्ज की गई है.
कारगिल युद्ध ने भारतीय सेना की अन्दरूनी हालत और भयावह भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी जब सैनिकों को दिये गये गोला-बारूद फटते ही नहीं थे. जांच करने पर मालूम हुआ कि उसमें बारूद की जगह आटे या सत्तु को भर दिया गया था. ऐसे में भाजपा प्रयोजित बोफोर्स तोप घोटाले वाले तोप को ही बाहर निकाला गया, तब जाकर पराजय की शर्मनाक हार से सेना की थोड़ी इज्जत बच पाई. इससे साफ जाहिर है भारतीय शासक वर्ग अपनी सेना को लूट-खसोट का अखारा बना दिया है, जो केवल राजनैतिक स्वार्थ पूर्ति का साधन बन गया है.
जाहिरा तौर पर सेना को मजबूत बनाने के लिए सैनिकों के साथ बेहतर व्यवहार और भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध करना होगा, जो देश की सर्वाधिक भ्रष्ट मोदी सरकार के लिए नामुमकिन ही है. मोदी सरकार सेना का इस्तेमाल केवल देशवासियों के खिलाफ की करना चाहती है जो सेना को न केवल बेहद कमजोर ही बनायेगी बल्कि यह सेना देश का भरोसा भी खो देगी. भ्रष्ट और देश का भरोसा खो चुकी सेना, केवल अराजकता को ही जन्म देगी जो देश को अंधकारपूर्ण ही बनायेगी. इससे पहले कि यह सब हो सेना को राजनैतिक जुमलों से मुक्त कर उसे उसके निर्धारित कामों में ही महारत हासिल करने दी जाये.
Jaipal Nehra
July 28, 2017 at 4:32 am
सब कुछ फिक्स है । कारपोरेटस का चौकीदार चूं भी नहीं कर सकता ।
यह सर्वविदित है कि सेना में शामिल लोग राजनेताओं, कारपोरेट घरानों, व्यापारियों और धर्म के ठेकेदारों के परिवारों से नहीं होते । हाँ; सेना को आदेश देने वाले सेना के बड़े अधिकारी ज़रूर उनसे संबंधित होते हैं और विकास के नाम पर दमन पूर्वक आम लोगों की ज़मीन व उनके श्रम को लूटकर मुनाफा कमाते हैं और मुनाफे के बीच आने वाली हर रूकावट को खत्म करने के लिए साम-दाम, दंड-भेद अपनाने में इन्हें कोई हिचक नहीं होती।
इसीलिए जब इस लूट व दमन के खिलाफ़ जनता आंदोलित होती है तब उस आंदोलन को कुचलने और नेतृत्व को खत्म करने के लिए कारपोरेट घरानों, व्यापारियों व धर्म के ठेकेदारों का गठबंधन सत्ता के माध्यम से पुलिस बल व सेना के जवानों के रूप में उसी शोषित-दमित जनता के एक छोटे हिस्से को बंदूक पकड़ाकर सामने कर देता है, ताकि दोनों तरफ से आम लोग ही मारे जायें और मरने वालों की हत्या का तोहमत भी उन्हीं पर लगा दिया जाये, ताकि सरकार मृतक परिवारों के प्रति झूठी सम्वेदनाएँ जता कर और आम लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा हासिल कर सके।
यही कारण है कि सत्ता से जुड़े गठबंधन के इस घृणित खेल में हर बार मात आम जनता को ही मिलती है कभी मजदूरों-किसानों के रुप में, तो कभी छात्र-नौजवानों के रूप में, कभी दलित-आदिवासियों के रूप में ,तो कभी पुलिस व सेना के जवानों के रूप में। और जब लोग सत्ता के इस घृणित खेल में मारे जाते हैं तब राज्य-सत्ता द्वारा झूठी संवेदना जताते हुए खरीदे हुए दलाल मीडिया के माध्यम से बड़ी चालाकी से आंदोलनकारी किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों या दलितों को ही हत्यारों व विकास के दुश्मनों के रूप में प्रचारित कर जहाँ उन्हें बदनाम कर आम जनता के बड़े हिस्से से काटने की कोशिश की जाती है, वहीं आम जनता के उस बड़े हिस्से को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जाती है।
इस प्रकार स्वाभाविक रूप से अमन-चैन व शांति चाहने वाली आम जनता के मन में शोषण, दमन, लूट के खिलाफ़ आंदोलित अपने ही लोगों के विरूद्ध ऐसा नफ़रत फैलाया जाता है कि आम लोगों की नज़रों में सत्ता का हत्यारा चरित्र छुप जाता है और आंदोलनकारियों पर लगाया गया झूठा हत्यारा चरित्र ही दिखाई देने लगता है।
Jaipal Nehra
July 28, 2017 at 4:35 am
संता ने बंता को थप्पड़ मार दिया।
बंता ने तुरंत कड़े शब्दों में इसकी निंदा कर दी।
संता ने बंता को फिर थप्पड़ मारा।
बंता ने और कड़े शब्दों में इसकी निंदा कर दी।
संता ने बंता को फिर से थप्पड़ मारा।
बंता ने और कड़े शब्दों में इसकी निंदा की और इन हरकतों से बाज आने की चेतावनी जारी कर दिया।
संता ने बंता को फिर थप्पड़ मारा।
बंता ने इसे निंदनीय कृत्य निरूपित किया और कहा कि यह हमला संता के हताशा का परिचायक है।
संता ने बंता को फिर से थप्पड़ मारा।
अबकी बार बंता ने अपने चारों ओर सुरक्षा कड़ी करने के निर्देश जारी कर दिया, और दो टूक शब्दों में संता को बता दिया कि यह हमला कायराना हरकत है।
संता ने बंता को फिर से थप्पड़ मारा।
अबकी बार बंता ने फौरन मीटिंग बुला कर सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की और आवश्यक निर्देश जारी कर दिया और संता को उचित समय पर कार्यवाही की चेतावनी दी।
संता ने बंता को फिर से थप्पड़ मारा।
अबकी बार बंता अपने सुरक्षा कर्मियों को संता के घर के चारों तरफ तैनात की हमले के लिए तैयार रहने का निर्देश देता है।
संता माहौल को भांप कर बंता को शांति वार्ता के लिए नियंत्रण देता है।
अगले दिन बंता संता की बीवी के लिए सूट कहां कपड़ा, शाल तथा बच्चों के लिए मिठाई लेकर शांतिवार्ता के लिए पहुंच जाता है, वार्ता सौहार्दपूर्ण माहौल में संपन्न होती है।
बंता सीना फुलाकर वापस आ जाता है।
अगले दिन बंता को फिर थप्पड़ पड़ता है
और मेरे पास घटना का वर्णन करने के लिए शब्द खत्म हो गये , लेकिन सिलसिला जारी है और जब तक जारी रहेगा तब तक global सरकार नहीं बन जाए । यह बङे गेम का मामला है । मोदी और शरीफ सरकार मात्र कटपुतलियाँ भर ही है ।
Jaipal Nehra
July 28, 2017 at 4:36 am
सबकुछ फिक्स है । दोनों तरफ की सरकारें कारपोरेटस की कटपुतलियों की सरकारें हैं ।
पाकिस्तान में 2018 में चुनाव होने हैं तब तक पाक को आक्रामक होने की छूट है। बीच बीच में सिनेमाई फोटोग्राफी दोनों तरफ से जारी रखी जाऐगी कभी कभी दो चार लोग इधर के या उधर के मारे जायेंगे ताकि देशभक्ति का भ्रम जिंदा रहे। पाक के चूनावों के बाद भारतीय 56 ईंची कटपुतली के अंधभक्तों के दंभ भरकर हुंकार फुंकार और ललकार का दौर आ जाएगा ।जनता नारों में उलझी रहेगी और राजनीति चलती रहेगी ।
पाकिस्तान में 2018 में आम चुनाव हैं।पनामा पेपर्स और दूसरे भ्रष्टाचार के प्रकरणों के कारण नवाज शरीफ की इमेज अभी ख़राब है।उसको सही करने का तात्कालिक उपाय क्या है ? हिंदुस्तानी सैनिकों की लाशें ! कुलभूषण जाधव का भी इस्तेमाल किया जा रहा है नवाज शरीफ की इमेज सुधारने के लिए। जैसे-जैसे उधर चुनाव पास आयेगा इधर हिंदुस्तानी सैनिकों की लाशें गिरती जाएँगी।सरकार कोई कड़ा कदम नहीँ उठाएगी। न डिप्लोमेसी के स्तर पर और न ही सैन्य स्तर पर।
जैसे ही पाकिस्तान का आम चुनाव गुज़रेगा, वैसे ही भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगेगा।मोदी सरकार तब तक भी रोजगार,शिक्षा और स्वास्थ के मसले पर कुछ हासिल न कर पायेगी।तब फिर पाकिस्तानी सैनिकों के मरने की बारी आयेगी।जैसे पाँच राज्यों के चुनाव से पहले सर्जिकल स्ट्राइक वाला चैप्टर लिखा गया, वैसा ही कुछ फिर होगा। इस तरीके से मोदी की नैय्या भी पार होगी ।
बाकी अगर आप सोचते हैं कि पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित किया जायेगा, उससे नाता रखने वालों से सम्बन्ध तोड़े जायेंगें तो आप गलतफहमी में हैं। मोदी शरीफ की नैय्या पार लगायेंगें और शरीफ मोदी की।यही तो दो अच्छे दोस्तों की निशानी होती है; यही कारपोरेटस की कटपुतलियाँ होने की बङी पहचान भी है । संकट के समय एक दूसरे के काम आना अपने कारपोरेटस मालिकों के अहसान उतारने के लिए अनिवार्य भी है ।
बाकी हथियारों का कारोबार फलता फूलता रहेगा। नेताओं और दलालों को कमीशन भी मिलता रहेगा । कॉरपोरेट्स को डिफेंस की लगातार बढ़ती हुई माँगों को पूरा करने का ठेका मिलेगा । सरकारी डिफेन्स डीलें या तो कॉर्पोर्टेस को मिल जायेंगीं या फिर लोबीयिंग होगी।उनके मीडिया चैनेल्स को भी भरपूर टीआरपी मिलेगी, इसका फायदा अलग । और इन सबके बीच गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले बस कुछ सैनिक मारे जायेंगें दोनों तरफ।बाकी शिक्षा और स्वास्थ का बजट भी लगातार कम होता रहेगा, डिफेन्स का बजट बढ़ता रहेगा। यही मज़ा है राष्ट्रवाद का। राष्ट्रवाद को ढोने का सारा जिम्मा दबे-कुचले लोगों पर ही है बस।
cours de theatre paris
September 30, 2017 at 5:14 pm
Major thanks for the post.Really thank you! Great.