कोई किसी की नहीं सुन रहा है, न छाप रहा है, दिखाना तो भूल जाइये. CEL के कर्मचारियों ने पर्चा छपवा कर आज के अख़बारों के साथ भिजवाया है. आपको याद होगा. सरकार और जनता का ध्यान खींचने के लिए टेक्सटाइल उद्योग ने इंडियन एक्सप्रेस में पैसे देकर विज्ञापन छपवाया कि ग़लत नीतियों के कारण यह सेक्टर बर्बाद हो रहा है और लाखों की संख्या में रोज़गार जा रहे हैं. उसी तरह का यहां भी है.
CEL के कर्मचारी जान गए हैं कि मीडिया नहीं छापेगा तो ये तरीक़ा अपनाया जाए. बात है कि इसके बाद भी कितने लोगों ने पढ़ा होगा मगर यह भी सोचिए कि कितनी मुश्किल से चंदा कर यह पर्चा छपा होगा और घर घर बंटवाया होगा. उम्मीद है आप इसे पढेंगे – रविश कुमार
CEL को निजी हाथों में बेचना बंद करो
भारत सरकार अपने जन-विरोधी कामों से ‘हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और’ कहावत को लगातार सच साबित कर रही है. केन्द्र सरकार एक तरफ तो देश सेवा और आत्मनिर्भर भारत का नारा देती है दूसरी तरफ पिछली सरकारों द्वारा उठाये गये निजीकरण की योजनाओं को अंजाम देती है. इसी के चलते सरकार बड़े-बड़े सार्वजनिक संस्थानों को अपने चहेते पूंजीपतियों को औने-पौने दामों में बेच रही है, जिसकी ताजा मिसाल सरकार द्वारा सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सी०ई०एल०) का बेचा जाना है.
सीईएल के बारे में
सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (भारत सरकार का उद्यम) विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत अकेला सार्वजनिक संस्थान है, जो 50 एकड़ जमीन के साथ 26 जून 1974 से साइट-4, औद्योगिक क्षेत्र, साहिबाबाद, गाजियाबाद में स्थित है.
सीईएल रक्षा के क्षेत्र में (रडार व मिसाइल तकनीक) सेना के लिए यंत्र बनाने वाला देश का एकमात्र संस्थान है. रेलवे ट्रैक-सेफ्टी से जुड़ी कार्य प्रणाली का विकास करने वाली देश की एक मात्र सरकारी क्षेत्र की कम्पनी है. इसके अलावा सौर ऊर्जा यंत्र बनाने वाला यह देश का पहला संस्थान है. अपने शोध कार्य से सीईएल ने सुरक्षा निगरानी रेलवे और सौर ऊर्जा में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों और तकनीकों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है.
इसके अलावा रक्षा सम्बन्धी नये उत्पाद जिन पर सीईएल काम कर रही है, जिनमें सीजैडटी कॉम्पोनेन्ट (एसएसपीएल के लिए), सर्विलेंस सिस्टम (सुरक्षा के लिए), सिरेमिक आर्मर बुलेट प्रूफ जैकेट, फेराइट सर्कुलेटर और आइसोलेटर, लेजर फैन्सिग, एलएफ-एचएफ सर्किट फ्यूज, दिव्य नयन प्रोजेक्ट, दृष्टि प्रोजेक्ट पीजो बेस्ट सोनार सिस्टम इत्यादि हैं.
सीईएल आर्थिक रूप से भी एक मजबूत कम्पनी है. इस पर कोई बाहरी देनदारी नहीं है बल्कि इसके पास रु. 1592 करोड़ का आर्डर है और रु. 150 करोड़ बकाया धनराशि बाजार से प्राप्त करना अभी बाकी है. पिछले कई सालों से लाभ अर्जित कर रही है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में 296 करोड़ टर्न ओवर के साथ इसने रु. 23.65 करोड़ का नेट मुनाफा कमाया है.
नीति आयोग के परामर्श पर ‘निवेश एवं लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग’ (दीपम) द्वारा सीईएल को जिसकी जमीन 2,02,018 वर्ग मीटर है और जो औद्योगिक क्षेत्र, साहिबाबाद के सर्किल रेट के हिसाब से ही रु. 440 करोड़ की है एवं संपत्ति का एक स्वतंत्र मूल्यांकन रु. 957 करोड़ है, उसे मात्र रु. 210 करोड़ में बेचने का निर्णय कर लिया है. इतने कम दाम में सरकार द्वारा सीईएल का निजीकरण किया जाना घोटाले का संकेत है.
चौका देने वाली बात यह है कि कोई अन्य सरकारी संस्थान सीईएल को नहीं खरीद सकता, क्योंकि सरकार ने सरकारी संस्थानों को बोली लगाने से मना किया हुआ है. मोदी सरकार निजी व्यावसायिक घरानों के सामने घुटने टेक कर, राष्ट्रीय संपत्ति को मनमाने दामों पर अपने चहेते पूंजीपतियों को बेचकर लाभ पहुंचा रही है.
आम जनता को जाति, धर्म एवं भाषा के आधार पर बांटकर आपस में लड़वाकर, यह सरकार हमारा ध्यान जनहित के मुद्दों से लगातार भटका रही है. इस सरकार की हमेशा से रणनीति रही है कि जनता व्यर्थ के मुद्दों में उलझी रहे और बढ़ती महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी जैसे मुद्दों की हकीकत पर सवाल न खड़ा कर सके.
केन्द्र सरकार की मंशा
भारत सरकार के द्वारा लाभ अर्जित करने वाली सीईएल कम्पनी को शारदा टेक की एक सिस्टर कनसर्न कम्पनी नन्दल फाइनेंस एंड लीजिंग प्राइवेट लिमिटेड को बहुत कम दामों में बेचना एक षडयंत्र का हिस्सा है. यह ऐसी फाइनेंस कम्पनी है जो सिर्फ कागजों में ही है, धरातल पर उसका कोई भी अस्तित्व नहीं है और न ही कम्पनी को चलाने का तकनीकी व औद्योगिक अनुभव है.
यह कम्पनी समापन (WindUp) की प्रक्रिया में है और रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनी (ROC) ने नेशनल कम्पनी लॉ ट्रीबुनल (NCLAT) के पास केस लंबित है और बन्द करने की मांग की गई है, जिसके कर्मचारियों का ब्यौरा तक मौजूद नहीं है और कर्मचारियों का कुल वेतन सिर्फ रु. 60,000 वार्षिक दर्शाया गया है एवं कम्पनी में एक भी कर्मचारी ऐसा नहीं है, जिसने कम्पनी में पूरे 05 साल तक कार्य किया हो. कम्पनी के पास कोई भी भूमि, भवन, कंप्यूटर एवं लैपटॉप इत्यादि तक नहीं है, जो कम्पनी और उसके व्यवसाय के लिए मूल रूप में उपयोग की जाने वाली आवश्यक सामग्री का अभाव है.
सीईएल के लिए बोली (आरक्षित मूल्य रु. 194 करोड़) में भाग लेने वाले मेसर्स नन्दल फाइनेंस एंड लीजिंग प्राइवेट लिमिटेड (रु. 210 करोड़ के साथ) एवं मेसर्स जे.पी.एम. इंडस्ट्रीज लिमिटेड (रु. 190 करोड़ के साथ) दोनों बोलीदाता अपनी मूल कम्पनी (मैसर्स शारदा टेक) के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होना मिलीभगत को दर्शाता है, जिसमें दोनों ने आरक्षित मूल्य (रु. 194 करोड़) के आस-पास बोली लगाई है, यह सरकार द्वारा सी०ई०एल० के कर्मचारियों के साथ सरासर धोखा है.
सीईएल द्वारा किये गये शोध और सुरक्षा से सम्बन्धित उत्पादों को निजी हाथों में सौंपना देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है, जो खतरे को आमंत्रित करना है. इससे यह साफ झलकता है कि सरकार का मकसद निजी कम्पनी को फायदा पहुंचना है न कि देश अथवा जनता को लाभ पहुंचाना.
भारत सरकार ने अपनी रिपोर्ट में सीईएल में 284 स्थाई कर्मचारी, 52 कान्ट्रेक्चुअल कर्मचारी और 11 दैनिक कर्मचारी दिखाये हैं, जबकि सीईएल में 284 स्थाई कर्मचारियों के साथ-साथ लगभग 750 दैनिक कर्मचारी ठेके पर काम कर रहे हैं. सरकार के इस अनैतिक व जनविरोधी कदम से लगभग 1100 कर्मचारियों के परिवारों तथा इससे जुड़े वेंडरों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा.
सीईएल के सभी कर्मचारियों की जीविका पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. सीईएल एम्प्लाइज यूनियन (सम्बद्ध-सीआईटीयू) एवं सीईएल एग्जीक्यूटिव एसोसिएशन आम जनता से देश हित में सार्वजनिक क्षेत्रों को बचाने के लिए एक बड़ा जन आन्दोलन चलाने की इस मुहिम में तन मन से पूर्ण सहयोग की अपील करती है. सीईएल जैसी कम्पनी को निजी हाथों में बेचना देश और कर्मचारियों के साथ धोखा है
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