एक छोटे गांव में एक विधवा स्त्री पेलाग्रे रहती थी, जिसका बेटा पावेल मजदूरों की हड़ताल में शामिल हो गया था. गांव के जमींदार और पुलिस उसे ‘गद्दार’ कहते थे.
पेलाग्रे पहले डरती थी, उसे लगता था कि उसका बेटा गलत रास्ते पर है. लेकिन एक रात पावेल घर आया, उसकी आंखों में चमक थी. उसने मां से कहा, ‘हम सिर्फ रोटी नहीं मांग रहे, हम इंसाफ मांग रहे हैं.’
उसने एक किताब दी, जिसमें मजदूरों की एकता और क्रांति की बात थी. पेलाग्रे जो कभी पढ़ी नहीं थी, रात भर मोमबत्ती जलाकर उसे समझने की कोशिश करती रही.
अगले दिन पुलिस पावेल को पकड़ने आई. पेलाग्रे ने दरवाजा बंद कर दिया और चिल्लाई, ‘मेरे बेटे को नहीं ले जाओगे !’ पुलिस ने उसे पीटा, लेकिन गांव के लोग जमा हो गए. एक औरत चीखी, ‘हम सब पावेल हैं !’
भीड़ बढ़ती गई. पेलाग्रे के हाथ में वही किताब थी, जिसे उसने हवा में लहराया. पुलिस भाग खड़ी हुई. उस रात गांव में आग का एक बीज बोया गया, जो धीरे-धीरे जंगल की आग बनने वाला था.
पावेल जेल में था, लेकिन पेलाग्रे अब चुप नहीं थी. वह गांव-गांव गई, किताबें बांटी और बोली, ‘यह मेरे बेटे की लड़ाई नहीं, हम सबकी लड़ाई है.’
- मैक्सिम गोर्की
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