[विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों के प्रेस काम्फ्रेंस ने देश को हिला कर रख दिया. इन जजों ने देश भर में न्यायिक प्रक्रिया की पोल खोलकर रख दी है, जिस कारण देश भर में यह बहस तेज हो गया है कि क्या हमारा संविधान सुरक्षित हाथों में हैं ?
विगत दिनों जिस प्रकार भाजपा के एक सांसद ने देेश के संविधान को बदलने की बात कही, वह इसी ओर ईशारा कर रहा है. यह अलग बात हो सकती है कि उक्त सांसद ने माफी मांग ली. पर क्या उनका बयान भाजपा के असली एजेंडा को साफगोई से बयान नहीं करता.
देश भर में न्यायपालिका की स्वतंत्रता की शाख पहले से ही दाव पर लगी थी, पर वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के जजों की आम जनता के बीच बेबाक तरीके से रखे गये मांग ने न्यायपालिका सहित देश के संविधन की सुरक्षा की बहसों को तेज कर दिया है.
सोशल मीडिया पर छाये इन बहसों के बीच प्रसारित यह आलेख हम अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं.]
देश के सर्वोच्च न्यायालय का प्रकरण इतना सरल नहीं है जितना मीडिया बता रहा है या हम समझ रहे हैं. इसके पीछे घिनौना और घातक षड्यंत्र काम कर रहा है, जो इस प्रकार है:
1. वर्तमान मुख्य न्यायाधीश व केंद्र सरकार में अंदरूनी साठ-गांठ है.
2. केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में आरएसएस/मनुवादी विचारधारा के जजों को ही रखना चाहती है.
3. केंद्र सरकार के इशारे पर मुख्य न्यायाधीश केसों के आवंटन में ऐसे जजों की जान बूझकर उपेक्षा कर रहे थे जो वरिष्ठ और योग्य तो हैं, मगर आरएसएस के/मनुवादी नहीं हैं.
4. ये एक सोची-समझी रणनीति के तहत इसलिए किया जा रहा था कि ये चार वरिष्ठ जज हैं और इनमें से जस्टिस गोगोई मुख्य न्यायाधीश बनने की पात्रता रखते हैं. स्वस्थ परम्परा के अनुसार अक्टूबर में वो मुख्य न्यायाधीश बनते, जो केंद्र सरकार की पसन्द के नहीं हैं.
5. चारों योग्य विद्वान व वरिष्ठ जजों को योजनाबद्ध तरीके से उकसाने के मकसद से इनकी उपेक्षाकर अपमानित महसूस कराया गया.
6. सोच समझकर बीजेपी व आरएसएस और इनका सगा मीडिया इन जजों को प्रमोशन से वंचित करने के लिए इस प्रकरण को बहाना बनायेगा.
7. केंद्र की बीजेपी सरकार को ये पता है कि ये न्यायिक चरित्र के ईमानदार जज मुख्य न्यायाधीश बने और कॉलेजियम में इनका वर्चस्व रहा तो ये निष्पक्ष तरीके से आरएसएस/बीजेपी के पक्षपाती प्रभाव को नकारते हुए योग्य और धर्मनिरपेक्ष छवि के जजों की नियुक्ति हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कराएंगे.
8. ऐसा होने से आरएसएस/बीजेपी का देश के विषय में वर्णव्यवस्था लागु करने, संविधान बदलने व सामाजिक न्याय (आरक्षण) खत्म करने का घिनौना मकसद कामयाब नहीं होगा.
9. अब बीजेपी का मकसद इन जजों को निष्प्रभावी व प्रमोशन से वंचित करना होगा.
10. ऐसा करने के लिए देश के राष्ट्रपति का इस्तेमाल किया जायेगा.
वैसे इन चारों जजों ने सही समय पर देश की चेतना को जगाने व अंतर्मन को झकझोरने का सही काम किया है. इन वीर-धीर गंभीर लोकतंत्र के सच्चे प्रहरियों को हर भारतवासी का साथ अपनी स्वयं की व लोकतंत्र की रक्षा हेतु भरपूर समर्थन जुटाकर मिलना चाहिए.
साथियो, मैं ये तथ्य न्यायपालिका की अवमानना के आरोप का जोखिम उठाते हुए जनसामान्य की भाषा हिंदी में लिख रहा हूं ताकि ये सत्य हर भारतीय तक पहुंचे.
सिद्धांत गौतम
अधिवक्ता
दिल्ली उच्च न्यायालय