एक-साथ सब मुर्दे बोले ‘सबकुछ चंगा-चंगा’,
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
ख़तम हुए श्मशान तुम्हारे,
ख़तम काष्ठ की बोरी;
थके हमारे कंधे सारे,
आंखें रह गयीं कोरी;
दर-दर जाकर यमदूत खेलें–
मौत का नाच बेढंगा.
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
नित्य निरंतर जलती चिताएं
राहत मांगें पल-भर;
नित्य निरंतर टूटती चूड़ियां,
कुटती छाती घर-घर;
देख लपटों को फ़िडल बजाते–
वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’!
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
सा’ब, तुम्हारे दिव्य वस्त्र,
दिव्यत् तुम्हारी ज्योति;
काश, असलियत लोग समझते,
हो तुम पत्थर, ना मोती;
हो हिम्मत तो आके बोलो–
‘मेरा साहब नंगा’.
सा’ब, तुम्हारे रामराज में शववाहिनी गंगा.
- पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास)
- गुजराती-कवयित्री पारुल खख्खर द्वारा रचित यह गीत दरअसल मौजूदा कोरोना-काल के दौरान गंगा में बहायी जा रही बेशुमार लाशों के बहाने मोदी-सरकार की नाकामियों को नंगा करता है.
- इस गीत ने गुजरात में आजकल इस क़दर तूफ़ान मचा रखा है कि इसकी मुद्रित-प्रतियों तथा सॉफ्ट-संस्करणों को तो लोग बांट और साझा कर ही रहे हैं, साथ ही बहुतेरे लोग इसे संगीतबद्ध करके शहरों-गांवों में गा-सुना भी रहे हैं.
- इस बहुचर्चित तथा बहुप्रसारित गीत को यहां उसके मूलरूप, गुजराती लिपि, में प्रस्तुत करने के साथ ही उसके हिन्दी-अनुवाद को भी दिया जा रहा है.
- इस गीत का सीधे गुजराती से हिन्दी-अनुवाद भी अनेक लोगों ने किया है, लेकिन यहां इलियास का किया हुआ अनुवाद ही प्रस्तुत किया जा रहा है, जो इतना सटीक बन पड़ा है कि मूल-रचना सरीखा ही आस्वाद देता है.
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