जो बेचा, जानता है
क्या बेचा
जो खरीदा, जानता है
क्या खरीदा
बात जब राष्ट्र की हो
तो बेहतर है जो गुप्त है, गुप्त ही रहे
राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं होता
राष्ट्र एक खूबसूरत चादर है
देह के कई ऐब जिससे ढंक जाते हैं
भोले भाले
इलाकाई जाने न जाने
बाकी बची सारी दुनिया
सब जानती है
वे इतना जरुर समझते हैं कि
पानी कहीं ऊपर रोक लिया गया है
जितना मिलना है नहीं मिल रहा है
दिल्ली और दौलताबाद के बीच
जो गुप्त है
वही दलास और न्यूयॉर्क में आम है
पेरिस का मुस्कुराना जायज है
देश अब सुरक्षित है और दुश्मनों में दहशत का खौफ, साफ तारी है
प्रगति मैदान की व्यापारिक प्रदर्शनी
ज्यादा दूर नहीं, वाकैबल है
एमआरपी सहित
डिस्काउंट के टैग टंगे हैं
शर्तों सहित लंबी अवधि के
आसान किश्तों पर कर्ज की संपूर्ण सुविधा
एक ही खिड़की पर उपलब्ध है
डेमो पर डेमो, चल रहा है
ये तो बादलों की गरज है
ढोल मजीरों की धमक है
और इसी शोर में तय होना है
किसके हाथ खिलौना
किसके हाथ युद्धक है
बंद पिंजरे
प्रयोगशाला में लाये
बेचारे इन चिम्पांजियों का
क्या कसूर
वह शिशु जो कभी बस सोया रहता था
घुटनों के बल, खुशी है चलने लगा है
चेहरों के इशारे और अंगुलियों की नृत्य शैली कुछ कुछ समझने लगा है
समझने लगा है कि सिर्फ़
अंगुलियां चूसने से पेट नहीं भरता
कि ठगी एक पुरानी
गौरवशाली कला है
जो अद्यतन मान्य है
- राम प्रसाद यादव
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]