जिस राष्ट्र में एक पर्व विजयदशमी विशेष रूप से शस्त्र-पूजन के लिए हो, उस राष्ट्र में शस्त्र रखना एवं उसका निर्माण करना क़ानूनी रूप से अवैध है, क्या ये एक मजाक नहीं है ? इससे साफ़ है इस राष्ट्र में चल रहे नियम कानून एवं संविधान इस देश के नहीं हैं.
ब्रिटिशों के संविधान और संसदीय व्यवस्था के साथ ही भारत जिन सबसे खतरनाक काले कानूनों को ढ़ो रहा है उनमें से एक है ’’Indian Arms Act 1878’’ जो ब्रिटिश डकैतों के तत्कालीन गिरोह सरगना Robert Lytton ने लागू किया था.
1857 में भारतीयों के साथ हुए युद्ध में (1857 विद्रोह गलत शब्द है) करारी हार के बाद जब ब्रिटिश पुनः भारत में मजबूत हुए तो उन्होंने सबसे महत्त्वपूर्ण काम भारतीयों को शस्त्रहीन करने का किया. घर-घर में शस्त्र ही भारतीयों का ताकत था, जिसके चलते ब्रिटिशों का 1857 में भारत के एक बड़े हिस्से से सफाया कर दिया गया था लेकिन Indian Arms Act 1878 लागू कर ब्रिटिशों ने भारतीयों को शस्त्र रखने और शस्त्र निर्माण करने से वंचित कर दिया जबकि ब्रिटिशों के लिए बनाना, रखना सब वैध था. यही कारण है कि किसी समय अमेरिका यूरोप को शस्त्र सप्लाई करने वाला देश आज छोटे-छोटे हथियारों के लिए रूस-अमेरिका पर निर्भर है.
मैकाले शिक्षा पद्धति से पढ़कर निकले मानसिक गुलाम जो कहते हैं, भारत सुई तक नहीं बना पाता था, उन्हें अमेरिका की सबसे पुरानी हथियार निर्माता कंपनी DuPont के ऐतिहासिक दस्तावेज खंगालने चाहिए जहां कंपनी खुद कहती है उसने 1802 में भारत से हथियार निर्माण के लिए Raw Materials Import करना शुरू किये थे, भारत से ही हथियार आयात करके DuPont उसे अमेरिका में बेचा करती थी.
Manhattan Project द्वारा अमेरिका के लिए परमाणु बम और हाइड्रोजन बम विकसित करने में योगदान देने वाली कंपनी DuPont के डाक्यूमेंट्स को देखने पर हमें पता चलता है, 19वीं सदी तक दुनिया हथियार और गोला बारूदों के लिए भारत पर निर्भर थी.
भारत को पुनः संपन्न और सशक्त बनाने के लिए आवश्यक है भारत में शस्त्र निर्माण और शस्त्र रखने दोनों को वैध किया जाय, भारतीयों के दिमाग को मैकाले शिक्षा पद्धति ने ऐसा दूषित किया है, जब भी भारत में शस्त्र को वैध किये जाने की बात होती है तो मैकालेपुत्र यह तर्क देते हैं कि, ‘अगर हथियार रखना सबके लिए वैध कर दिया गया तो क्राइम बढ़ेगा.’
दुनिया के सबसे शांतिप्रिय देशों में से एक माने जाने वाले Iceland में हर घर राइफल और माउजर मिल जाएगी, जहां क्राइम रेट लगभग जीरो (0.30) है. अपराध का कारण गलत शिक्षा प्रणाली, संविधान-कानून और व्यवस्थाएं हैं, हथियार नहीं, जो बदलने की जरूरत है उसमें बदलाव के बजाय कुतर्क करना आधुनिक शिक्षा का दोष है, जिसमें भी बदलाव की जरूरत है.
जो भी जागरूक वकील हों वो सुप्रीम कोर्ट में Indian Arms Act 1878 (Currently Arms Act, 1959) रद्द करने की याचिका लगायें और सुप्रीम कोर्ट से मांग करें कि, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 377-497 जैसे ब्रिटिशों के काले कानून खत्म किये, उसी तरह Arms Act 1959 को भी रद्द करे.
जिस दिन ये कानून रद्द हुआ उसके कुछ वर्षों पश्चात् भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में शामिल होगा. भारतीयों को अगर हथियार निर्माण में छूट मिले तो जितनी हथियार निर्माता कंपनियां पूरी दुनिया में मिलाकर हैं उतनी सिर्फ यूपी-बिहार में होंगी. भारत को कभी भी हथियार के लिए अमेरिका रूस और इजराइल की तरफ नहीं देखना होगा.
भारतीय लोहारों में इतना टैलेंट है कि वो आज भी बिना किसी प्रोफेशनल ट्रेनिंग के कुछ घंटो में पिस्टल और राइफल तैयार कर देते हैं. उदाहरण देखना हो तो खैबर में देखा जा सकता है जहां Traditional Manufacturing Techniques से
पठानी लोहार बड़े-बड़े हथियार तैयार कर देते हैं, खैबर निवासी अपने Indigenous Gunsmith Tradition पर गर्व करते हैं और यहां Indigenous लोग अपनी हथियार निर्माण परंपरा के खिलाफ कानून बनाकर बैठे हैं.
सिर्फ शास्त्र ही हमारी संस्कृति नहीं है, शस्त्र भी हमारी संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा हैं, असली विजयदशमी तब होगी जब भारत में ब्रिटिशों के Indian Arms Act 1878 जैसे काले कानून रद्द होंगे, जागरूक वकीलों से विनम्र निवेदन है वो इस कानून को कोर्ट में चुनौती दें, जब 377/497 जैसे कानून हट सकते हैं और सबरीमाला की हजारों वर्ष पुरानी परंपराए कोर्ट निरस्त कर सकता है तो इस कानून को निरस्त करना बड़ी बात नहीं है !!
- कमलेश नाहर
Read Also –
हथियारबंद समाज की स्थापना ही एक आखिरी रास्ता है
बम का दर्शन
भारत की सम्प्रभुता आखिर कहां है ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]