गुरूचरण सिंह
बिल्कुल सही पढ़ा है आपने क्योंकि रूपए पैसे की बात होने के बावजूद आर्थिक नजरिए जैसी कोई चीज़ तो थी ही नहीं इस बजटीय भाषण में ! ऐतिहासिक इसलिए कि यह सदन में दिया गया सबसे लंबा भाषण था, जिसे बुलंद आवाज़ में बोलती वित्त मंत्री पूरा पढ़ भी नहीं पाई !
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक बजट भाषण इसलिए कहा कि इसका एक बड़ा हिस्सा नए नामकरण वाली ‘सरस्वती- सिंधु घाटी सभ्यता’ के महिमा मंडन को समर्पित है, यानी यहां आर्यों की आमेलन प्रतिभा (inclusive talent) पूरे उभार पर दिखाई दे रही है लेकिन इस पर चर्चा तो कल ही होगी, आज तो बस पारंपरिक बजट ही हमारी चिंता का विषय है. तीन बातों में ही समेटा जा सकता है बजटीय भाषण : इतिहास से छेड़छाड़ करता सांस्कृतिक झुकाव, विकास का पीपीपी मॉडल (मूलमंत्र) और शक्तियों का केंद्रीयकरण.
बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तमिल कवि तिरुवल्लुवर का जिक्र करते हुए कहा कि एक अच्छे देश के लिए 5 जरूरी चीजें हैं, बीमारी न हों, समृद्धि हो, अच्छी फसल हो, जीना आसान हो और सुरक्षा हो. महान संत कवि ने तो यहां एक आदर्श स्थिति की बात की है, जिसे आम आदमी की भाषा में स्वर्ग कहा जाता है. आप कम से कम से तीन बुनियादी जरूरतों की ही चर्चा करें तो भी गनीमत है, वे भी तो नहीं मिल पा रही हैं एक बड़ी आबादी को – रोटी, कपड़ा और मकान. ये तीनों होंगे तो यकीनन रोजगार भी होगा ही, और बाकी सारी बातें तो खुद बाखुद सुनिश्चित हो जाएंगी लेकिन आसान बात समझ कहां आती है नार्थ ब्लॉक के महान अर्थशास्त्रियों को !!
समझा जा रहा था कि यह बजट मंदी की चपेट में आ रही अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने का कोई गंभीर प्रयास करेगा लेकिन ‘पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था’ की ओर ले जाने का दावा करते हुए इस बजट में तो हुआ उल्टा ही है. निराश देसी विदेशी निवेशकों ने बजट के दौरान ही धड़ाधड़ अपना पैसा निकालना आरंभ कर दिया था और संसेक्स 1000 अंक लुढ़क गया; इसके साथ ही डूब गया मज़बूरी में म्युचल फंड में निवेश करते रिटायर्ड और रिटेल निवेशकों का एक चौथाई पैसा भी. समझ नहीं आ रहा था किसे खुश करने की कोशिश हो रही है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के हिसाब से तो यह बजट था नहीं; कोई और छिपा एजेंडा हो तो मैं टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा.
मांग बढ़ाने के लिए आयकर छूट का दावा भी छलना है क्योंकि एक हाथ से देकर दूसरे से ले लिया गया है क्योंकि पहले मिलने वाली सारी छूटें खतम कर दी गई हैं. समझ तो यह भी नहीं आ रहा था बजट भाषण के लिए शेक्सपियर के मशहूर नाटक मैकबेथ की यह उक्ति सही बैठती है –
‘Life is a tale, told by an idiot, full of sounds and fury, signifying nothing.’ या
फिर चचा ग़ालिब का यह शेर :
बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का,
चीरा तो कतराए खूं भी न निकला !
खैर, बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए 99300 करोड़ रु और कौशल विकास के लिए 3000 करोड़ रु. का ऐलान किया है. यह भी बताया गया है कि शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए विदेशों से कर्ज और एफडीआई के उपाय किए जाएंगे, ऑनलाइन डिग्री लेवल प्रोग्राम चलाए जाएंगे और इसके लिए सरकार जल्द ही नई शिक्षा नीति का ऐलान करेगी. बजट के मूलमंत्र पीपीपी मॉडल पर सभी जिला अस्पतालों में मेडिकल कॉलेज बनाने की योजना भी बनाने की बात भी कही गई है.
देश में नर्सों, पैरामेडिकल स्टॉफ़ की काफ़ी मांग है, उनका कौशल सुधारने के लिए एक ब्रिज कोर्स शुरू किया जाएगा, जिसमें विदेशी भाषाओं को भी शामिल किया जाएगा. युवा इंजीनियर्स को इंटर्नशिप की सुविधा भी दी जाएगी.
पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर जिला अस्पतालों के साथ मेडिकल का एक अर्थ यह भी हुआ कि पहले से आम जनता की पहुंच से दूर स्वास्थ्य सुविधाएं कुछ और दूर हो जाएंगी. वहां घाटे-मुनाफे का हिसाब होने लगेगा. दूसरे शब्दों में, पूरे देश को ही एक बड़ी-सी दुकानदारी में बदलने की योजना है.
पीपीपी के ज़रिए रेलवे और अधिक प्राइवेट ट्रेन चलाएगी. पर्यटन केंद्रों को जोड़ने के लिए तेजस जैसी गाड़ियां और चलाई जाएंगी. मज़ेदार बात तो यह है कि ये प्राइवेट ट्रेन जिस रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करेंगी उसके लिए एक पाई तक नहीं चुकानी पड़ेगी इन्हें. इसके साथ ही 2024 तक 100 और नए हवाई अड्डों का निर्माण किए जाने की घोषणा की गई है !
साफ है कि सरकार की दृष्टि शहरोनुमुखी है ! सिंधु घाटी सभ्यता का उल्लेख और पिछले 100 स्मार्ट सिटी की बात भुला कर पीपीपी मॉडल पर पांच नए स्मार्ट सिटी की घोषणा इसका सबूत है. किसानों के लिए प्रचारित इस बजट में किसानों के लिए न तो कोई सम्यक दृष्टि वाली नीति का ही कोई संकेत है और न ही फौरी राहत पहुंचाने वाली कोई योजना है.
जल्द ख़राब होने वाले कृषि उत्पादों को बाज़ारों तक पहुंचाने के लिए किसान रेल और किसान उड़ान जैसी योजनाएं शुरू करने की बात जरूर की गई है. आने वाले तीन सालों के भीतर प्रि-पेड बिजली मीटर लगाए जाएंगे. किसान का नाम लेना तो वैसे भी सरकार की सियासी मज़बूरी है, इसीलिए खाते में छ: हजार रुपए सालाना वाली किसान के खाते में सीधा जमा योजना के आठ करोड़ पात्र किसानों में से तीन करोड़ के लिए ही प्रावधान किया गया है इस बजट में. मतलब यह कि पांच करोड़ किसान अब नहीं पा रहे यह अनुदान !
लेकिन असल समस्या तो बटाई पर खेती करने वाले और खेतिहर मजदूरों की है. देश भर में खेती तो बटाईदार करेंगे और छः हजार की राशि जमा होगी रजिस्टर मालिकों के खाते में. सिंचाई के लिए सौर उर्जाचालित पंपों के लिए धन के आवंटन का उद्देश्य भी किसानों की कीमत पर ऐसे पंप बनाने वाली कंपनियों को फायदा पहुंचाने का ही अधिक है.
ग़ैर-राजपत्रित कर्मचारियों की भर्ती के लिए सरकार एक नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी का गठन करेगी. ये एजेंसी उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए ऑनलाइन टेस्ट लेगी. मतलब यह हुआ कि दूसरी सांविधिक संस्थाओं की तरह पूरे देश के कर्मचारियों की भर्ती भी केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगी. ऐसे ही एक दिन राज्यों के लोक सेवा आयोग भी खतम हो जाएंगे, फिर तो सारा टंटा ही खतम. कोई राज्य सरकार अपनी पार्टी की है या विपक्ष की, इससे क्या फर्क पड़ता है ? सब कुछ करना तो केंद्र को ही है, नाम भले किसी भी एजेंसी का क्यों न हो ??
डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स ख़त्म कर दिया गया है. ये वो टैक्स है जो कंपनियां शेयर होल्डर्स को दिए जाने वाले लाभांश पर चुकाया करती थी. अब यह टैक्स शेयरधारकों को देना होगा तो सरकार ने छूट क्या दी ? कान सीधे हाथ से न पकड़ कर उल्टे हाथ से पकड़ लिया, बस !
बजट भाषण सुनने के बाद यही लगा कि यह एक दिशाहीन बजट है जिसमें बड़ी-बड़ी बातों के पीछे नाकामियों को छिपाने की कोशिश भर है. अगर तिरुवल्लुवर का उल्लेख दिशा निर्धारण के लिए किया गया है तो स्वास्थ्य, समृद्धि, अच्छी फसल, सुखमय जीवन और सुरक्षा वाली पांच बातों के दायरे में ही बजट को रखा जाना चाहिए था. लेकिन किसी बात को लेकर तमिल सांसदों के हल्ले के मद्देनजर पीएम का हस्तक्षेप (कम से कम वे आपकी भाषा में तो बोल रही हैं) तो बजट भाषण की छद्म गम्भीरता को पूरी तरह उजागर कर देता है.
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