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असम में बाल विवाह विरोधी मुहिम का संघी आतंक

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असम में बाल विवाह विरोधी मुहिम का संघी आतंक
असम में बाल विवाह विरोधी मुहिम का संघी आतंक

अच्छे काम को बुरे ढंग से कैसे किया जाता है, भाजपा-आरएसएस एक मिसाल है. वह हर काम को ऐसे करती है कि लोगों में आतंक फैल जाता है, फलतः लोग विरोध में खड़े हो जाते हैं. लोग थूकने लगते हैं तब वह जनता को ही देशद्रोही बताने लगता है या यू-टर्न मार लेता है. दरअसल भाजपा का उद्देश्य उस समस्या को हल करना नहीं, बल्कि उसके सहारे अपना ऐजेंडा सेट करना होता है.

ठीक यही चीज हमने भाजपा का प्रसिद्ध ऐजेंडा गोमांस के बारे में देख सकते हैं, जहां एक ओर गोमांस के नाम पर हत्याकांडों का आतंक मचा दिया तो दूसरी ओर देश को गोमांस के निर्यात मामले में विश्व भर में अब्बल पर पहुंचा दिया. वहीं, रोमांस/प्रेम के खिलाफ रोमियो स्क्वायड बनाकर प्रेमियों पर आतंक बनकर टुटता है तो दूसरी ओर पोर्नोग्राफी का विशाल बाजार खड़ा कर दिया. अब इसी कड़ी में असम में बाल विवाह रोकने के नाम पर समूचे असम में आतंक बरपा दिया है.

असम में भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रमोद स्वामी कहते हैं, ‘कोई भी निर्वाचित सरकार ये नहीं देख सकती कि उनके राज्य में जो कम उम्र की बच्चियां हैं, उनकी मौत बाल विवाह की वजह से हो. आज पूरे भारत में बाल विवाह का अनुपात 23 फ़ीसदी है और असम में ये अनुपात 32 फ़ीसदी है. यह एक चिंताजनक विषय है और जो लोग महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, उनके लिए भी ये सोचने का विषय है कि जब भी सरकार कोई सुधार लेकर आती है तो फिर उसमें वो जाति और धर्म ढूंढने लग जाते हैं.’

सुनने में बढ़ियां लगने वाला यह वक्तव्य व्यवहार में कितना भयानक है, 70 वर्ष की परिजान बेगम की दुःख भरी इस व्यथा से समझ सकते हैं –

‘मेरा बेटा दिहाड़ी पर काम करता है और रोज़ के 300 रुपये कमाता है. मेरे पति ठेला चलाते हैं. कभी कमाई होती है, कभी नहीं. अब जब बेटे को ही जेल में डाल दिया तो मुक़दमा लड़ने के लिए पैसा कहां से लाएं ? हमें नहीं पता कि सरकार ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया ? इससे अच्छा होता कि हमें मार डालते.’

गुवाहाटी से क़रीब 50 किलोमीटर दूर मुकलमुआ में रहने वाली परिजान बेग़म के बेटे मोइनुल अली को कुछ ही दिन पहले असम पुलिस ने एक नाबालिग़ लड़की से शादी करने के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया. ये कार्रवाई असम सरकार के उस अभियान के तहत की गई जिसमें बाल-विवाह करने वाले या उसमें शामिल होने वाले हजारों लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.

भाजपा के ये बेशर्म नेता प्रमोद स्वामी कहते हैं, ‘सामाजिक जागरूकता की ज़रूरत है लेकिन देश तो संविधान और क़ानून से चलेगा. तो देश में जो संविधान और क़ानून है क्या उसका पालन नहीं किया जाना चाहिए ? इसका मतलब तो ये हो जायेगा कि अगर देश में कोई हत्या करता है तो उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, कोई क़ानून ही नहीं होना चाहिए. तो जब देश में एक क़ानून है और सरकार उसका पालन करती है तो उस पर इतनी हाय तौबा मचाने की तो कोई आवश्यकता नहीं है.’

भाजपा नेता प्रमोद स्वामी का बेशर्मी भरा यह बयान का पूरे देश में भाजपाइयों के नंगे आतंक से तुलना कर देखिए, आप पायेंगे कि हत्या, बलात्कार जैसे घृणित कुकर्म से भाजपाइयों का चेहरा दागदार है. मानो, हत्या, बलात्कार समेत हजारों कुकर्म करने का कॉपीराइट भाजपाईयों के पास है, अपराध तभी है अगर उसमें भाजपाई शामिल न हो. उत्तर प्रदेश की रामराज वाली सरकार में दिनदहाड़े पांच किसानों को कुचल देने वाला टेनी इसका साफ उदाहरण है.

गौरतलब है कि इन दिनों असम में बाल विवाह के खिलाफ भाजपा की राज्य सरकार की कार्रवाई काफी चर्चा में है. सरकार की इस कार्रवाई पर गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी की है. अदालत ने कहा है कि सरकार के इस अभियान ने लोगों की निजी जिंदगी तबाह कर दी है. विदित हो कि बाल विवाह के खिलाफ असम सरकार के हाल में शुरू किए गए अभियान पर गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बेहद तल्ख, मगर जायज टिप्पणी की है.

हाईकोर्ट ने ठीक ही कहा कि इस अभियान ने लोगों की निजी जिंदगी में तबाही ला दी है. राज्य में बड़े पैमाने पर हो रही गिरफ्तारी के मद्देनजर हाईकोर्ट का यह कहना महत्वपूर्ण है कि इन मामलों में हिरासत में पूछताछ की कोई जरूरत ही नहीं है.

नवभारत टाइम्स की एक खबर के अनुसार इसी महीने की तीन तारीख से शुरू किए गए इस अभियान के तहत पिछले करीब एक पखवाड़े में 3000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. कई मामलों में बाल विवाह करने वाले आरोपियों के न मिलने की स्थिति में पुलिस परिवार के दूसरे सदस्यों को पकड़ रही है.

पुलिस का कहना है कि वह उन्हीं रिश्तेदारों को पकड़ रही है, जिनकी बाल विवाह कराने में भूमिका रही है लेकिन व्यवहार में यह हो रहा है कि लोगों को पता ही नहीं कि पुलिस किसे उठा ले जाएगी. इस वजह से परिवार में एक भी बाल विवाह हुआ हो तो तमाम रिश्तेदार छुपते फिर रहे हैं. गिरफ्तारी के बाद कई प्रभावित परिवारों में कोई कमाने वाला नहीं रह गया है.

कई मामलों में मां हिरासत में चली गई तो बच्चों पर ही छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी आ गई है. और यह सब क्यों ? सरकार भी मान रही है कि चाहे जितने लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाए, ये शादियां वैध बनी रहेंगी.

इन शादियों को निरस्त करने का इस कानून (प्रॉहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट 2006) में बताया गया एकमात्र रास्ता यह है कि शादी के समझौते में पार्टी रहा कोई पक्ष जो शादी के समय नाबालिग रहा हो, जिला अदालत में ऐसी याचिका दायर करे.

जिन लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है और जो इस गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, उनमें से कोई तो ऐसी अर्जी देने से रहा. हालांकि इन बातों का मतलब बाल विवाह की इस कुरीति का बचाव करना नहीं है. सवाल सिर्फ यह है कि इसे समाप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है.

पूरे देश की बात करें तो नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार 1992-93 में 20 से 24 साल उम्र की विवाहित महिलाओं में 54 फीसदी की शादी 18 साल से कम उम्र में हुई होती थी. यह अनुपात 2005-06 तक 47 फीसदी और 2019-21 तक 23 फीसदी पर आ गया.

आखिर, बाल विवाह को रोकने के लिए पहले से कानून है, उसके बाद भी यह समस्या बनी हुई है. यानी सिर्फ कानून से इस मर्ज को दूर नहीं किया जा सकता. एक्सपर्ट्स कहते भी रहे हैं कि शिक्षा और आर्थिक विकास के साथ ऐसी शादियों का चलन कम होता जाता है. बेहतर होगा असम सरकार भी इन्हीं उपायों को अपनाए, जिनके पहले अच्छे नतीजे मिल चुके हैं.

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